नीति के विरुद्ध जब भी कोई काम करेंगे, उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।
नीति के विरुद्ध जब भी कोई काम करेंगे, उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। कायदे जब भी तोड़े जाएंगे, खुद का भी नुकसान करेंगे और दूसरों को भी हानि पहुंचाएंगे। उदाहरण के लिए यदि कोई ट्रैफिक नियम तोड़ा तो हो सकता है एक्सिडेंट हो जाए। उसमें आपका भी नुकसान हो सकता है और आप बच गए तो हो सकता है सामने वाले को हानि उठानी पड़ जाए। जीवन में भी ऐसा ही चलता है। रावण को उसके मंत्री लगातार गलतफहमी में रख रहे थे कि आप तो अजेय हैं, आपको कौन जीत सकता है? अहंकारी व्यक्ति प्रशंसा सुनकर और बावला हो जाता है। पत्नी मंदोदरी समझा चुकी थी, बाद में बेटा प्रहस्त समझा रहा था। इस दृश्य पर तुलसीदासजी लिखते हैं- ‘सबके बचन श्रवन सुनि कह प्रहस्त कर जोरि। नीति बिरोध न करिअ प्रभु मंत्रिन्ह मति अति थोरि।। सबकी बात सुनकर प्रहस्त हाथ जोड़ते हुए रावण से कहता है- मंत्रियों की बातों में आकर नीति के विरुद्ध मत जाइए। इनकी तो मति बहुत छोटी है। यहां रावण के बेटे ने हनुमानजी को याद किया था। बोला- यह मत भूलो कि एक वानर आया था और जो कुछ कर गया उसे आज तक हम याद कर रहे हैं। रावण के माध्यम से प्रहस्त हमें भी समझा रहा है कि जीवन में जब भी नीति पालने या समझने में दिक्कत हो तो हनुमानजी से जुड़े रहिए। आगे लिखते हैं, ‘सुनत नीक आगंे दुख पावा। सचिवन अस मत प्रभुहि सुनावा।।’ अर्थात मंत्रियों ने आपको जो भी सम्मति सुनाई है वह सुनने में तो अच्छी है पर आगे जाकर दुख ही देगी। प्रहस्त यदि हनुमान का उदाहरण दे रहे हैं तो आज हनुमानजी हमारे बड़े काम के हैं। नीति कभी न तोड़ें और जब कोई अच्छी बात बताई जा रही हो, आज भले ही कड़वी लगे लेकिन, भविष्य में आपके बड़े काम की हो सकती है। यह समझदारी जरूर रखें।