महिला और पुरुष एक-दूसरे के पूरक होते हैं और उनके बीच यौन संबंध एक सामान्य और स्वाभाविक क्रिया है. मगर विष्णु पुराण के ग्यारहवें अध्याय में गृहस्थ जीवन के लिए कुछ नियमों के अनुसार विशेष दिशानिर्देश दिए गए हैं. ये नियम बताते हैं कि कुछ विशेष परिस्थितियों में महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाने से पाप तो लगता ही है साथ ही आयु, धन और स्वास्थ्य की भी हानि होती है. इसलिए हर विवाहित व्यक्ति को इन बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए.
पत्नी जब अप्रसन्न हो तो खुद पर रखें काबू: किसी भी पुरुष का यौन संबंध की इच्छा जाहिर करने से पहले अपनी पत्नी की मनोवृत्ति को समझने का प्रयास करना चाहिए. यदि पत्नी किसी कारणवश अप्रन्न है तो संबंध बनाने की इच्छा त्याग देनी चाहिए.
पत्नी दुखी हो तो न बनाएं संबंध: पत्नी के दुखी होने की स्थिति में पति को उसकी मनोदशा को जानने का प्रयास करना चाहिए और उसके दुख को बांटना चाहिए. पत्नी के मान जाने की स्थिति में ही यौन संबंध बनाने के बारे में सोचना चाहिए.
रजस्वला पत्नी को न करें विवश: शास्त्रों में भी कहा गया है कि पत्नी के रजस्वला होने पर पति को उससे दूर रहने में ही दोनों का हित है. वैज्ञानिक तौर भी पति-पत्नी को ऐसे वक्त में यौन संबंध नहीं बनाने चाहिए. अन्यथा संक्रमण होने की पूरी आशंका रहती है.
इच्छाविहीन होने पर न करें जबर्दस्ती: पत्नी की इच्छा न होने पर यौन संबंध बनाना किसी पाप से कम नहीं है. ऐसे में बेहतर होगा कि आप पत्नी की रजामंदी का इंतजार करें.
क्रोधित पत्नी से रहें दूर: विष्णु पुराण के अनुसार, क्रोधित पत्नी से संबंध बनाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए. ऐसा करने पर आपके संबंधों में कड़वाहट आ सकती है.
बीमारी में भी न करें ये काम: पत्नी के बीमार होने पर पति को चाहिए कि वो अपनी पत्नी का ध्यान रखे न कि उस पर यौन संबंध बनाने के लिए दवाब बनाए.
गर्भवती महिला का करें सम्मान: पत्नी के बीमार होने पर पति को चाहिए कि वो अपनी पत्नी का ध्यान रखे न कि उस पर यौन संबंध बनाने के लिए दवाब बनाए.