“श्री” का अर्थ है “शक्ति” अर्थात “राधा जी” कृष्ण यदि शब्द हैं तो राधा अर्थ हैं। कृष्ण गीत हैं तो राधा संगीत हैं, कृष्ण वंशी हैं तो राधा स्वर हैं, कृष्ण समुद्र हैं तो राधा तरंग हैं, कृष्ण पुष्प हैं तोराधा उस पुष्प कि सुगंध हैं। राधा जी कृष्ण जी कि अल्हादिनी शक्ति हैं। वह दोनों एक दूसरे से अलग हैं ही नहीं। ठीक वैसे जैसे शिव और हरि एक ही हैं | भक्तों के लिए वे अलग-अलग रूप धारण करते हैं, अलग-अलगलीलाएं करते हैं।
राधा एक आध्यात्मिक पृष्ठ हैं जहां द्वैत-अद्वैत का मिलन है। राधा एक सम्पूर्ण काल का उद्गम है जो कृष्ण रुपी समुद्र से मिलती हैं। श्री कृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ति बनकर आईं। जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा जी ने ही रखी थी। संपूर्ण ब्रह्मांड की आत्मा भगवान कृष्ण हैं और कृष्ण की आत्मा राधा हैं। आत्मा को देखा है किसी ने तो राधा को कैसे देख लोगे। राधा रहस्यथीं और रहेंगी।