अक्का और राक्षस राजा हिन्दी लोक कथा
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कर्नाटक की उत्तर दिशा में चंदन का एक घना जंगल था। इतना घना कि दिन में भी उसमें रात जैसा अंधेरा रहता। जंगल के बीचोंबीच एक प्राचीन मंदिर था। उसी में एक ओर उस मंदिर के पुजारी और उनकी पत्नी रहते थे। वे दोनों अंधे थे। उनके कोई संतान नहीं थी। इस बात का उन्हें बहुत दुख था।
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उन्हें जंगल के अंधेरे से कोई अंतर नहीं पड़ता था, परंतु सूर्य का प्रकाश नहीं मिलने से जंगल के फलदार वृक्ष सूखने लगे थे। पुजारी की पत्नी को दो लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था करना भी अब कठिन हो रहा था। जैसे-तैसे वे इस आशा के साथ समय बिता रहे थे कि जैसे सबके दिन बदलते हैं, कभी उनके भी दिन बदलेंगे। उनका पूरा समय मंदिर की देखभाल में ही बीतता।
एक दिन वहां एक संन्यासी आया। उसने पुजारी दंपती से भिक्षा मांगी। पुजारी की पत्नी जंगल में गई। जो भी फल मिले उसे लाई। घर में जो कुछ भी रुखा-सूखा था, उससे अतिथि का सत्कार किया। संन्यासी उनकी सेवा से प्रसन्न हुए और बोले, “वत्स! मैं तुम दोनों की सेवा से प्रसन्न हूं। तुम्हारी कोई इच्छा हो तो बताओ?”
अंधे पति-पत्नी ने एक साथ कहा, “अतिथि देवता, हम दोनों बूढ़े हो रहे हैं। हमारी देखरेख करने वाला कोई नहीं है। हमें संतान की कामना है।”
पलंगपोश लेकर सौदागर जंगल से दूर निकल आया। उसे जंगल के दूसरी ओर महल दिखाई दिया। उसे आश्चर्य हुआ कि यह महल कहां से आया! इसके पहले तो उसने इस महल को कभी नहीं देखा था। वास्तव में वह राक्षस राजा का माया-महल था। वह राजा बहुत क्रूर और दुराचारी था।
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लोगों को मारता-पीटता। जिसकी जो चीज़ उसे अच्छी लगती, उसे छीन लेता। जब लोग रोते-चिल्लाते तो वह ख़ूब हंसता। उसके महल के आसपास कोई पशु-पक्षी तक नहीं आते, क्योंकि वह सबको मारकर खा जाता। चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर वह क्रोध से भर जाता। इसीलिए लोग उसे राक्षस राजा कहते थे। अब इसे संयोग ही कहेंगे कि सोदागर सीधे इसी राजमहल में पहुंचा । वहां रानी ने जब पलंगपोश देखा तो वह उन्हें बहुत पसंद आया। उन्होंने उसे सौदागर से मुंहमांगे दाम देकर ख़रीद लिया। रात को जब राजा और रानी उस पर सोए तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न था। वे जिस ओर सोते उस ओर काढी गई ऋतु का उन्हें वैसा ही आभास होता। रानी की ओर ग्रीष्मऋतु थी, उन्हें पसीना आ रहा था। राजा की ओर सर्दी का दृश्य था, ठंड के मारे उनके दांत किटकिटाने लगे। उन्हें समझ में आ गया कि यह इस पलंगपोश पर बनाए गए दृश्य का ही कमाल है।
जैसे-तैसे सवेरा हुआ। राजा ने उस सौदागर को दरबार में लाने का हुक्म दिया, जिससे रानी ने उसे ख़रीदा था। राजा के सिपाही सौदागर को खोजने निकल पड़े। अंत में वे सौदागर को राजा के सामने ले आए। सौदागर डरते-डरते राजा के सामने खड़ा हो गया।
राजा ने पूछा, “तुम यह पलंगपोश कहां से लाए?”
सौदागर बोला, “चंदन के जंगल के बीच में एक प्राचीन मंदिर है। उसी मंदिर के अंधे पुजारी की कन्या ने इसे बनाया। मैंने उससे ही इसे ख़रीदा था।” राजा तो राक्षस था ही। उसके मन में यह बात आई कि जिसके हाथ की कशीदाकारी इतनी सुंदर है, वह स्वयं कितनी सुंदर होगी! मैं तो उसे अपनी रानी बनाऊंगा। उसने सैनिकों को आदेश दिया, “तुम्हें पता नहीं कि हमारे राज्य में इतना अच्छा काम करने वाली लड़की रहती है। जाओ! उस पुजारी की कन्या को हमारे सामने लेकर आओ।”
सैनिक जब जंगल के मंदिर में पहुंचे तो अक्का अपने माता-पिता को भोजन परोस रही थी। सैनिकों ने अक्का को राजा का आदेश सुनाया, “ऐ लड़की, झटपट तैयार हो जाओ। राजा ने तुम्हें राजमहल में बुलाया है।”
अक्का ने पूछा,“पर मुझे क्यों ?”
“बस कोई सवाल मत करो, जल्दी चलो।”
अक्का ने कुछ सोचा और उत्तर दिया, “मैं अभी अपने अम्मा-अप्पा को भोजन करा रही हूं। इसके बाद मुझे उनके लिए संध्या के भोजन की व्यवस्था भी करनी है। ये सब करने के बाद ही मैं आप लोगों के साथ चल्रूंगी।” सैनिकों ने उसकी एक न सुनी। वे उसे ज़बरदस्ती उठाकर ले आए।
राजा ने जब अक्का को देखा तो उसकी सुंदरता पर चकित रह गया। उसने तुरंत उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। उसका हाथ पकड़कर चूमते हुए बोला, “तुम्हारे हाथों में जादू है। तुम्हारी उंगलियां कितनी कोमल हैं! तुम इतनी सुंदर हो, इतनी अच्छी कढ़ाई करती हो। अब तक मुझे तुम्हारे बारे में पता क्यों नहीं चला? मैं तुमसे अभी विवाह करना चाहता हूं।”
अक्का निर्भीक और निडर थी। उसने अपना हाथ ज़ोर से छुड़ाते हुए कहा, “व्यर्थ की बातें मत करो। मुझे घर जाने दो। मेरे अंधे माता-पिता मेरी राह देख रहे होंगे। मुझे घर में बहुत काम है।”
राजा कहां मानने वाला था। उसे तो कोमलांगी अक्का को अपनी दुल्हन बनाने की धुन सवार थी। उसने अक्का को कैद कर लिया। अक्का बहुत रोई, गिड़गिड़ाई, पर राजा न माना। राजा की पहली रानी ने अपने पति को समझाने की कोशिश की तो राक्षस राजा को गुस्सा आया। उसने रानी को भी क़ैद में डाल दिया। राक्षस राजा बार-बार अक्का के सामने विवाह का प्रस्ताव रखता, और अक्का उसे ठुकरा देती। समय बीतने के साथ ही बंदी कोमलांगी की चिंता बढ़ती जा रही थी। वह अपने माता-पिता को याद करके विलाप करने लगी।
बार-बार कहने-सुनने पर भी अक्का ने उस राजा की बात न मानी। अंत में उस दुराचारी राजा को एक युक्ति सूझी। उसने बेल-बूटे बनाने की पूरी सामग्री अक्का को देते हुए कहा, “मुझे बहुत दिन हुए कोई मुर्गा देखे हुए। तुम मेरे लिए सात दिनों के अंदर ऐसा मुर्गा काढ़कर दो जो बिल्कुल सजीव लगे। ऐसा कर सको तो तुम आज़ाद हो जाओगी।”
भूखी-प्यासी रहकर अक्का ने मुर्गा बनाना शुरू किया। सातवें दिन काम पूरा हुआ। अक्का को अपने माता-पिता की याद आ रही थी, इसी सोच में इसके हाथ में सुई चुभ गई। उंगली से खून बहने लगा। खून की एक बूंद मुर्गे की क़लगी पर पड़ी तो मुर्गे ने उसे मोती समझकर मुंह में डाला। उसी समय वह सचमुच जीवित होकर इधर-उधर उड़ने लगा।
राजा आठवें दिन मुर्गा देखने गया। एक मुर्गे को इधर-उधर कूदते- फांदते देखकर राजा को आश्चर्य तो हुआ पर उसके मन में बेईमानी आ गई। उसने सोचा, यदि मैंने मान लिया कि यह धागे से कढ़ाई करके बनाया गया मुर्गा है, तो यह सुंदर कोमलांगी कन्या लौट जाएगी और मुझसे विवाह न करेगी। वह अक्का को अपनी ओर खींचकर बोला, “यह मुर्गा तो पहले से ही महल के आसपास घूमता-फिरता था। तुम्हारा कशीदेकारी वाला मुर्गा कहां है?” राजा की बात सुनकर मुर्गें को बहुत गुस्सा आया। वह ज़ोर-ज़ोर से बांग देते हुए इधर-उधर कूदने लगा। इस पर भी राजा ने अक्का को नहीं छोड़ा तो मुर्गा राजा की दाढ़ी पर झपटा और उसे नोचने लगा। राजा ने अक्का को छोड़ते हुए कहा, “अभी तो मैं तुम्हें छोड़ देता हूं। तुम्हें एक हफ़्ते का समय देता हूं। इस बीच हमारे लिए जंगल में घूमता-नाचता मोर बनाकर दो। तभी तुम्हें छोड़ूँगा नहीं तो ज़िंदगी भर तुम्हें यहीं कैद में रहना होगा। तुम्हारे अंधे माता-पिता को भी कैद में डाल दूंगा।”
बेचारी अक्का रात-दिन लगकर फिर से मोर बनाने में जुट गई। सात दिनों में मोर बन गया। अक्का को अपने माता-पिता की याद आई तो आंखों से आंसू बहने लगे। उसने अपने आंसुओं से एक लकीर खींची ही थी कि तभी राक्षस राजा आया। उसने देखा कि अक्का का बनाया मोर इतना सजीव था कि लग रहा था, जैसे वह सचमुच नाच रहा है। इस पर भी राजा का मन नहीं भरा। वह बोला, “यह कोई मोर है? यह तो सांप जैसा है। मैंने तुम्हें मोर बनाने को कहा था। अब या तो यहीं बंदी रहो या मुझसे विवाह के लिए हां करो।”
अक्का ने जब यह सुना तो आंसुओं से बनाई लकीर की ओर देखा, देखते ही देखते वह लकीर सचमुच के सांप में बदल गई। अगले ही क्षण उस सांप ने राक्षस राजा को डस लिया। राक्षस राजा मर गया। राजा के मरते ही लकीर सूख गई और सांप अदृश्य हो गया।
अक्का ने राजा की पहली रानी को कैद से छुड़ाकर राक्षस राजा का राज्य उन्हें सौंप दिया। कढ़ाई वाला मोर सजीव मोर बनकर अक्का और उसके माता-पिता को पीठ पर बैठाकर आसमान में उड़ गया। इसके बाद अक्का को किसी ने नहीं देखा। लोगों का विश्वास है कि अक्का आसमान में आज भी उसी तरह सुंदर-सुंदर कशीदाकारी करती रहती है, जो हमें वर्ष के बाद आसमान में रंग-बिरंगे इंद्रधनुष के रूप में दिखाई देती है।