चोरी हुआ टापू हिन्दी लोक कथा
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बहुत समय पहले काकना गाँव के पास एक छोटा-सा टापू था। छोटा होने पर भी वह एक दर्शनीय टापू था। उस पर कोई रहता नहीं था। लोग उस पर सिर्फ घूमने और शिकार करने के लिए जाते थे।
टापू पर ‘साका’ नाम का एक पक्षी भी आता-जाता था। पूरी दूनिया में वह एक ही पक्षी था। वह छोटा परन्तु बहुत चतुर-चालाक था।
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वर्षों तक साका टापू में उड़ान भरता रहा । उसको टापू इतना अधिक भाया कि उसने उसे अपने साथ ले जाने की योजना बनाई ताकि उसके रहने की जगह हमेशा खूबसूरत बनी रहे । उसके सिवा कोई और वहाँ न हो ।
एक रात, जब सारी दुनिया सोई हुई थी, साका ने सोचा– अच्छा मौका है। ऐसे में मुझे इस टापू को ले उड़ना चाहिए।
साका कल्पना में खो गया। उसे लगा कि पूरा टापू उसके घर में है और वह आराम से टापू में उड़ान भर रहा है। वहाँ उसका एक प्यारा घोंसला है। तरह-तरह के दूसरे पक्षी आसपास चहक रहे हैं।
सभी उस टापू की प्रशंसा कर रहे हैं और वहाँ रुक जाना चाहते है। अचानक उसकी तन्द्रा टूटी और वह उस छोटे टापू को पीठ पर लादकर अपने निवास की ओर उड़ चला।
साका छोटा था। वह बड़ी सावधानी के साथ उस भारी-भरकम टापू को लेकर उड़ रहा था। दिन निकलने से पहले वह अपने निवास पर पहुँच जाना चाहता था। लेकिन समय उसकी उड़ान की तुलना में तेजी से गुजर रहा था।
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जैसा कि उसको डर था, रात समाप्त हो गई।
दिन निकल आया।
लोग जाग उठे। उन्होंने साका को टापू लेकर जाते हुए देख लिया।
पूरब की ओर से आती सूरज की पहली किरण पड़ते ही साका ने टापू को नीचे फेंक दिया और तेजी से अपने निवास की ओर उड़ गया।
टापू उलटकर समुद्र में जा गिरा।
लोगों का मानना है कि चौरा के रास्ते में सागर के बीच झाँकता ‘छोटा टापू’ ही वह चोरी हुआ टापू है।