डबलरोटी पर पाँव रखने वाली लड़की कहानी
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शायद तुमने सुना होगा कि एक लड़की ने अपने जूते गंदे न होने देने के लिए डबलरोटी पर पाँव रख दिया था। उसका क्या बुरा हाल हुआ, यह कहानी उसी के बारे में लिखी और छापी गई।
वह लड़की गरीब पर घमंडी और बद्दिमाग थी। उसे बुरे चरित्र वाली कहा जा सकता था। जब वह छोटी थी तब उसे मक्खियों और तितलियों के पंख उखाड़ने में खुशी मिलती थी, जिससे वे बाद में घिसटते रहें, उड़ न पाएँ। अगर वह कीचड़ में से कोई कीड़ा पकड़ लेती थी तो उसके बदन में पिन चुभो देती थी; फिर उस बेचारे कीड़े के पैरों के पास कागज़ रख देती थी जिससे वह उसे पकड़ ले; फिर उसे कागज़ समेत गोल घूमते, पलटते देखती रहती थी। कीड़ा बेचारा यह सोचता था कि शायद कागज़ की मदद से अपने को पिन से छुड़ा लेगा।
तब इंगर नाम की वह लड़की चीखती, हँसती और कहती, ‘देखो कीचड़ का कीड़ा पढ़ रहा है, देखो वह पन्ना उलट रहा है।’
बड़ी होने पर भी उसमें कोई सुधार नहीं आया; बल्कि और बिगड़ती चली गई। वह सुंदर थी और शायद यह उसकी बदकिस्मती थी; नहीं तो दुनिया उसके साथ और बुरा व्यवहार करती।
उसकी अपनी माँ उसके बारे में कहती थी कि उसका सिर रगड़ने के लिए तेज़ खारा पानी चाहिए। ‘जब तुम छोटी थीं तब तुमने मेरे एप्रन पर पैर रखा था, बड़ी होकर मुझे डर है कि तुम मेरे दिल पर पैर रखोगी।’
और उसने वही किया!
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गाँव के एक घर में उसे नौकरानी का काम दिलवाया गया। जिस परिवार के लिए वह काम कर रही थी, वे रईस और ऊँचे खानदान के थे। मालिक और मालकिन दोनों उसके साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते थे जैसे वह नौकरानी न होकर उनकी बेटी हो। वह सुंदर तो थी ही, सुंदर कपड़े भी पहनती थी। धीरे-धीरे वह ज्यादा घमंडी होती गई।
उसके एक साल काम कर लेने के बाद मालकिन ने उससे कहा कि ‘इंगर, तुम्हें अपने माता-पिता से मिलने जाना चाहिए।’
वह गई, पर इसलिए कि वह अपने कपड़े दिखाना चाहती थी। उसके गाँव में घुसते ही एक छोटा-सा तालाब था जहाँ लड़के-लड़कियाँ गप्प मारते रहते थे। जब वह वहाँ पहुँची तो उसने देखा कि एक पत्थर पर उसकी माँ बैठी थी। वह जंगल से लकड़ी बटोरकर लाई थी। गट्ठर पास में ही रखा था और अब वह आराम कर रही थी।
इंगर को शरम आई कि उसके इतने अच्छे कपड़े थे जबकि उसकी माँ चिथड़ों में थी और उसे आग जलाने के लिए लकड़ी बटोरनी पड़ती थी। लड़की अफसोस न करके गुस्से से मुड़ी और लौट गई।
छ: महीने बीत गए उसकी मालकिन ने फिर कहा, ‘एक दिन के लिए घर जाकर अपने बूढ़े माता-पिता से मिल आओ। यह बड़ी डबलरोटी लेती जाओ। मुझे पूरा विश्वास है कि वे तुम्हें देखकर खुश होंगे।’
इंगर ने अपने सबसे बढ़िया कपड़े और नए जूते पहने। वह अपनी स्कर्ट थोड़ी-सी ऊपर उठाए हुए बहुत ध्यान से कदम रख रही थी कि कहीं उसके कपड़े और जूते खराब ही न हो जाएँ। इसका किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए, पर जब रास्ता दलदली हो गया और एक जगह पानी भरा दिखा तो बजाय जूते गीले करने के उसने पानी पर डबलरोटी फेंक दी। जैसे ही उसने रोटी पर पैर रखा, वह रोटी नीचे कीचड़ में धंसती गई, उसके साथ ही इंगर और वह गायब हो गए। सतह पर जहाँ पानी इकट्ठा था वहाँ सिर्फ कुछ बुलबुले दिखाई दे रहे थे।
कहानी ज्यादातर ऐसे सुनाई जाती है। पर लड़की का क्या हुआ? वह कहाँ गायब हो गई? वह दलदल की चुडैल के पास पहुंच गई। चुडैल बौनों की बुआ थी। बौनों को सब जानते हैं। उनके बारे में कविताएँ लिखी गई हैं, उनकी तसवीरें बनाई गई हैं पर कीचड़ की चुडैल के बारे में ज्यादातर लोगों को बहुत नहीं पता।
जब कीचड़ के ऊपर कोहरा छा जाता है तब लोग कहते हैं, ‘देखो, दलदल की चुडैल शराब बना रही है।’ इसी शराब की भट्ठी में इंगर डूब गई। वह रहने के लिए अच्छी जगह नहीं है। चुडैल की शराब की भट्ठी की तुलना में मैला रखने की हौदी कहीं ज्यादा हल्की और हवादार होती है। पर हर हौदी से आने वाली बू इतनी बुरी होती है कि आदमी को उसका हल्कासा झोंका भी बेहोश कर सकता है। ये इतने पास-पास होते हैं कि इनके बीच में से निकला नहीं जा सकता। अगर आप किसी तरह थोड़ी-सी जगह में से निकलने की कोशिश भी करोगे तो वह जगह फिसलते साँपों और मेंढकों से भरी होंगी। इंगर इस जगह पहुँच गई। ठंडे साँप और मेंढक जब उसके शरीर को छूते तो वह काँप उठती। पर बहुत देर ऐसा नहीं रहा। इंगर को लगा उसका शरीर अकड़ता जा रहा है, आखिर वह एक बुत जैसी अकड़ गई। डबलरोटी अभी भी उसके पाँव से चिपकी थी, छूट ही नहीं रही थी।
दलदल की चुडैल उस दिन घर पर ही थी; शैतान की परदादी शराब खाने के मुआयने के लिए आने वाली थी। वह बहुत पुरानी और द्वेषपूर्ण बुढ़िया है जो ज़रा भी वक्त खराब नहीं करती। वह जब घर से निकलती है तो कुछ सिलाई का काम साथ ले जाती है। उस दिन वह झूठ की कटाई कर रही थी और साथ ही कुछ गिरे हुए बेकार शब्दों को क्रोशिया कर रही थी। वह परदादी अच्छा सीना, काढ़ना और क्रोशिया करना जानती है।
उसने इंगर को देखा और चश्मा निकालकर दुबारा उसे देखा, ‘इस लड़की में गुण हैं! मैं इसे यहाँ आने की यादगार के तौर पर ले जाऊँगी, यह मेरे परपोते के महल में घुसने वाले कमरे में एक चौकी पर अच्छी रहेगी।’
चुडैल ने शैतान की परदादी को इंगर दे दी। और इस तरह वह नरक में पहुँच गई। ज्यादातर आदमी सीधे वहाँ जाते हैं। पर अगर आप इंगर जैसे होशियार हों तो घूम कर जा सकते हैं।
शैतान के घर में घुसने वाला गलियारा कभी न खत्म होने वाला था और उसकी तरफ देखने से चक्कर आने लगते थे। उस बड़े हॉल को सजाने वाली एक इंगर ही नहीं थी; वह जगह ऐसे आकारों से भरी पड़ी थी जो दया के दरवाजे के खुलने का इंतज़ार कर रहे थे, और बड़ी देर से खड़े थे। उनके पैरों के इर्द-गिर्द बड़े मोटे मकड़ों के बनाए जाले थे जो बेड़ियों जैसे लग रहे थे और इतने मजबूत थे जैसे ताँबे की जंजीर हों, वे एक हज़ार साल तक रह सकते थे। हर बुत में आत्मा थी। शरीर सख्त और जमे हुए थे पर आत्मा बेचैन थी। कंजूस का बुत जानता था कि उसकी चाभी भूल से तिजोरी में लगी रह गई है और वह कुछ नहीं कर सकता। सबकी परेशानियों और यातनाओं के बारे में बताने में बहुत वक्त लग जाएगा। इंगर को लग रहा था कि डबलरोटी से जुड़े पैरों के साथ बुत की तरह खड़ा रहना कितना मुश्किल होगा।
वह अपने आप से बोली, ‘पैर साफ रखने की कोशिश में यह होता है। देखो, सब कैसे मुझे घूर रहे हैं!’ यह सच था, क्योंकि सब नए आए बुत की तरफ देख रहे थे। उनकी दुष्ट इच्छाएँ उनकी आँखों से और उनके भयानक बिना आवाज़ के होंठों से पता चल रही थीं। वह एक डरावना दृश्य था!
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इंगर ने सोचा, ‘मैं कम से कम देखने में तो अच्छी हूँ। मैं सुंदर हूँ, सुंदर कपड़े पहने हुए हैं।’ उसने अपनी आँखें घुमाईं। उसकी गरदन इतनी अकड़ी हुई थी कि घुमाई नहीं जा सकती थी। हे भगवान, वह कितनी गंदी हो गयी थी! चुडैल की शराब की भट्ठी में वह जिस गंदगी और फिसलन में पड़ी थी,वह उसे भूल गई थी। उसके कपड़े इतने कीचड़ से सने थे कि लग रहा था उसने कीचड़ ही पहनी है। एक साँप उसके बालों में घुसकर गरदन से लटक रहा था। बड़े-बड़े मेंढक उसके कपड़ों में से उसकी तरफ झाँककर कुत्तों की तरह भौंक रहे थे। सब कुछ बहुत बुरा था। पर उसे इस बात की तसल्ली थी कि बाकी लोग उससे बेहतर नहीं दिख रहे थे।
सबसे बुरी बात यह थी कि उसे बहुत ज़ोर की भूख लगी थी। वह अपने ही पैरों के नीचे दबी डबलरोटी का टुकड़ा तोड़ने के लिए झुक भी नहीं सकती थी। उसकी पीठ, बाँहें, टाँगें सब अकड़ी हुई थीं। वह मानो पत्थर का बुत बन गयी थी। सिर्फ उसकी आँखें हिल सकती थीं। आँखें सब तरफ देख सकती थीं, यहाँ तक कि उसके अंदर भी और वहाँ भी कोई अच्छी चीज़ नहीं थी। फिर मक्खियाँ आ गईं; वे उसके चेहरे पर चढ़ गईं। उसकी आँखों के सामने कभी आगे जा रही थीं कभी पीछे। उसने पलक झपकाईं जिससे वे डर कर उड़ जाएँ पर वे उड़ ही नहीं सकती थीं क्योंकि उनके पंख उखड़े हुए थे। वह भी दर्द-भरी बात होगी, पर भूख तो उससे भी बुरी थी। इंगर को लग रहा था जैसे उसके पेट ने अपने आपको खा लिया हो। उसके अंदर और भी ज्यादा खालीपन आता गया, भयानक खालीपन।
‘अगर यह ज्यादा देर चला, तो मैं सह नहीं पाऊँगी!’ उसने अपने आप से कहा। पर वह खालीपन रुका नहीं, बढ़ता गया; और उसे वह सहना पड़ा।
उसके सिर पर एक आँसू गिरा जो उसके चेहरे और छाती से होता हुआ डबलरोटी पर गिर गया। उसके बाद और बहुत-से आँसू गिरे। इंगर के लिए कौन रो रहा था? धरती पर उसकी माँ थी, वही जो रो रही थी। जब कोई माँ अपने बुरे बच्चे की वजह से रोती है तो वे आँसू बच्चे तक पहुँच जाते हैं, पर उससे बच्चे को कोई मदद नहीं मिलती बल्कि उसका दर्द और परेशानी और बढ़ जाते हैं। ओह, यह भयानक भूख खत्म नहीं हो रही। काश, वह जिस रोटी पर खड़ी थी उस तक पहुँच पाती। उसे लग रहा था कि उसके अंदर का सब कुछ खा लिया गया है, वह खोखले खोल की तरह रह गई है जिसमें धरती पर उसके बारे में कही जाने वाली सारी बातें गूंज रही थीं। उसे सब सुनाई दे रहा था, पर कुछ भी अच्छा नहीं था। उसके बारे में कही गई हर बात बड़ी सख्त और बुरी थी। उसकी माँ उसके लिए रो रही थी, पर साथ ही कह रही थी कि अहंकार का सिर नीचा होता है ! इंगर यही तुम्हारी बदकिस्मती है!! तुमने अपनी बिचारी माँ को कितना दुःख पहुँचाया है!’
धरती पर सब लोग–यहाँ तक कि उसकी माँ भी उसके पाप के बारे में जानते थे कि कैसे उसने डबलरोटी पर पैर रखा और दलदल में गायब हो गई। एक गड़रिये ने यह होते हुए देखा था और उसने सबको बता दिया था।
‘तुमने मुझे बहुत दुखी किया है, इंगर,’ माँ ने ठंडी साँस भरते हुए कहा, ‘पर मुझे ऐसा ही कुछ होने का डर था।’
इंगर सोच रही थी, ‘काश मैं पैदा ही नहीं हुई होती। कितना अच्छा होता। अब मेरी माँ के रोने से क्या होगा।’
उसने अपने मालिक-मालकिन को जो उसे माता-पिता की तरह प्यार करते थे, बात करते सुना, ‘वह एक बुरी लड़की थी। उसने भगवान की देन को तारीफ करने के बजाय उस पर पाँव रखा, उसे आसानी से माफी नहीं मिलेगी।’
इंगर सोच रही थी, ‘उनको मेरे साथ सख्ती करनी चाहिए थी। मेरे अंदर की बेवकूफियों को निकाल देना चाहिए था।’
उसने सुना कि उसके बारे में गाना बनाया गया था, ‘बददिमाग लड़की जिसने सुंदर जूतों को सूखा रखने के लिए डबलरोटी पर पाँव रखा।’ यह गाना बड़ा लोकप्रिय हुआ। सब उसे गाते थे।
इंगर सोचने लगी, ‘बताइए ज़रा-सी गलती के लिए इतना सुनना और सहना पड़ रहा है। औरों को भी तो उनके पापों की सजा मिलनी चाहिए। तब बहुत-से ऐसे होंगे जिन्हें सज़ा देनी पड़ेगी। आह! मुझे कितना भुगतना पड़ रहा है।’
और उसकी आत्मा भी खोल जितनी या उससे भी ज्यादा सख्त हो गई। ‘ऐसे लोगों के साथ क्या बेहतर हो सकता है?’ वह सोचती रही। पर मैं अच्छी नहीं बनना चाहती! देखो, कैसे घर रहे हैं!’ और उसका मन सारे इंसानों के लिए नफरत से भर उठा। ऊपर वाले बातें बना रहे हैं। आह! मैं कितना भुगत रही हूँ!’
हर बार जब किसी छोटे बच्चे को उसकी कहानी सुनाई जाती थी तब इंगर को भी वह सुनाई पड़ती थी। उसने अपने बारे में कभी एक अच्छा शब्द नहीं सुना। वैसे भी बच्चे बड़े निष्ठुर होते हैं। वे कहते थे वह बहुत बुरी थी, यहाँ तक कि वे खुश थे कि उसे सज़ा मिल रही थी।
पर एक दिन जब उसके अंदर गुस्से और भूख से सब खत्म हुआ जा रहा था, उसने सुना कि एक प्यारी भोली बच्ची को उसकी कहानी सुनाई जा रही थी, वह बच्ची ज़ोर से रो पड़ी। वह बददिमाग, अच्छी चीज़ों से प्यार करने वाली इंगर के लिए रो रही थी। उसने पूछा, ‘क्या वह फिर कभी धरती पर नहीं आएगी?’
जो बड़ा आदमी उसे कहानी सुना रहा था, बोला, ‘नहीं, वह फिर कभी धरती पर नहीं आएगी।’
‘पर वह माफी माँग ले और कहे कि वह फिर ऐसा नहीं करेगी?’
‘पर वह माफी नहीं माँगेगी,’ बड़े ने कहा।
लड़की बोली, ‘काश वह ऐसा कह दे। अगर वह फिर धरती पर आएगी तो मैं उसे अपनी गुड़िया का घर दे दूंगी। मुझे लगता है, उस बेचारी इंगर को कितना बुरा लग रहा होगा।’
ये शब्द इंगर के दिल को छू गए और एक पल के लिए उसकी तकलीफ दूर हो गई। क्योंकि यह पहली बार थी कि किसी ने उसे बेचारी कहा था और उसकी गलतियों के बारे में कुछ नहीं जोड़ा था। एक छोटी भोली लड़की उसके लिए रोई थी और चाहती थी कि उसे बचा लिया जाए। उसे अजीब-सा लगा, वह खुद भी रो सकती थी, पर रो नहीं पाई, और यह भी एक सज़ा थी।
जैसे-जैसे साल बीतते गए, धरती पर उसके बारे में बातचीत कम होती गई। नीचे नरक में घुसने वाले कमरे में कुछ नहीं बदला। पर एक दिन उसने सुना, कोई ठंडी साँस लेकर कह रहा था, ‘इंगर! इंगर! तुमने मुझे कितना दु:ख दिया, पर मैं जानती थी तुम यही करोगी।’ वह उसकी मरती हुई माँ थी।
कभी-कभी उसके पुराने मालिक-मालकिन उसका नाम लेते थे; पर वे उसके बारे में दयापूर्वक बात करते थे, खासकर उसकी मालकिन। ‘पता नहीं मैं तुम्हें फिर देख पाऊँगी या नहीं इंगर! किसे पता होता है कि कौन कहाँ जाएगा।’
पर इंगर को पक्का पता था कि उसकी दयालु मालकिन उसकी तरह नहीं भुगतेगी।
समय बीतता गया; लंबे, कड़वे साल बीतते गए। आखिर फिर एक बार इंगर ने अपना नाम सुना। उसे लगा कभी न खत्म होने वाले हॉल के अँधेरे में उसके ऊपर दो तेज़ सितारे चमक रहे हैं; वे वही दो दयालु आँखें थीं जो धरती पर अब बंद होने वाली थीं। कितने साल पहले जो छोटी बच्ची ‘बेचारी इंगर’ के लिए रोई थी अब बूढ़ी औरत थी जिसे भगवान ने अपने पास बुलाया था। उस आखिरी वक्त पर, जब उसके दिमाग में लंबे जीवन की सारी बातें घूम रही थीं तब उसे यह भी याद आया कि जब वह छोटी बच्ची थी तो इंगर की कहानी सुनकर कितना रोई थी। मरने से पल-भर पहले उस औरत को वह पहले हुई बात फिर से ऐसे याद आई कि वह ज़ोर से बोल उठी, ‘ओह भगवान, क्या मैंने इंगर की तरह आपके उपहारों पर पैर नहीं रखा, और कभी यह समझा भी नहीं कि मैंने ऐसा किया है? क्या मैंने अपने अंदर अहंकार महसूस नहीं किया? पर मुझे तुमने कभी बेसहारा नहीं छोड़ा। अब भी मत छोड़ना!’
जैसे ही बुढ़िया की आँखें बंद हुईं, उसकी अंदर की आँखें खुल गईं। जो अब तक उससे छिपा था, वह अब दिखने लगा। मरते वक्त उसके ख्यालों में इंगर थी, इसलिए अब उसे इंगर का पूरा दुःख दिखाई देने लगा। यह देखकर वह फिर से बचपन की तरह फूट-फूटकर रोने लगी। उसके आँसू और प्रार्थना शैतान के घर में घुसने वाले हॉल में खड़े इंगर के बुत के खोल में गूंजने लगे। इंगर की दुखी आत्मा, ऊपर से बिना उम्मीद के आने वाले इस प्यार से गद्गद हो उठी; भगवान की एक दिव्यदूत उसके लिए रो रही थी। उसकी परेशान आत्मा धरती पर बीते अपने जीवन और सारे कामों को याद करने लगी। वह काँप उठी और आँसू बहाने लगी जो इंगर ने कभी नहीं बहाए थे। लड़की अपनी गलती समझ गई और समझते ही जान गई, ‘अब मैं कभी नहीं बच सकती!’
उसने अभी इतना सोचा भी नहीं था कि स्वर्ग से सूरज की किरण से भी तेज़ रोशनी उसके ऊपर पड़ने लगी। सूर्य की किरण से बर्फ का आदमी या बच्चे के गरम मुँह में पड़ी बर्फ जितनी जल्दी पिघलती है उससे भी ज्यादा जल्दी इंगर का बुत पिघला और गायब हो गया। जहाँ वह खड़ा था वहाँ से एक चिड़िया ऊपर ज़मीन की तरफ उड़ गई।
डर और शर्म से भरी वह चिड़िया एक गिरती हुई दीवार के छेद के अँधेरे में छिप गई। वह चिड़िया हर जीवित चीज़ से डर रही थी। वह चहचहा नहीं सकती थी क्योंकि उसके पास आवाज़ नहीं थी। उसने बहुत देर तक अँधेरे में बैठने के बाद बाहर झाँका और बाहर की खूबसूरती देखने लगी, क्योंकि दुनिया वाकई बहुत सुंदर है।
रात का वक्त था, आकाश पर चंद्रमा तिर रहा था। हवा धीमी और ताजी थी। चिड़िया पेड़ों और झाड़ियों की खुशबू सँघ रही थी। उसने अपनी परों वाली पोशाक को देखा और जाना कि वह कितनी सुंदर है; प्रकृति की हर चीज़ कितने प्यार से बनाई गई है। चिड़िया अपने विचारों को गीतों में बताना चाहती थी; वह बसंत में कोयल की आवाज़ खुशी-खुशी से लेती पर नहीं ले पाई। पर भगवान जो मौन कीड़े का भी अपनी प्रशंसा में गाया गया भजन सुन लेता है उसने इसको भी सुना और समझा, ठीक वैसे ही जैसे उसने डेविड की कविता को शब्दों और लय में व्यक्त होने से पहले उसके दिल में होते हुए ही समझ लिया था।
दिन और हफ्ते बीतते गए, चिड़िया में बिना आवाज़ के गीत बनते रहे। उन्हें चाहे शब्द या संगीत में अभिव्यक्ति नहीं मिली, पर वे कामों में व्यक्त होते रहे।
पतझड़ के बाद सर्दियाँ आ गईं, क्रिसमस का भोज पास आ रहा था। किसानों ने आँगन में एक ऊँचे बाँस पर जई के पौधे का गुच्छा-सा बाँध दिया ताकि ईसा के जन्मदिन के दिन आकाश में उड़ने वाली चिड़ियाँ भूखी न रह जाएँ।
क्रिसमस के दिन सुबह जब सूरज निकला तो वह जई के गुच्छे पर चमका और चहकती हुई चिड़ियाँ उसके चारों तरफ उड़ने लगीं। उस वक्त वह अकेली चिड़िया जो अब तक डर के मारे किसी के पास जाने की हिम्मत नहीं कर पाई थी और अब तक दीवार के छेद में छिपी हुई थी, एक शब्द बोल पड़ी ‘पिप्’। उसके मन में एक विचार आया! वह अपनी छिपी हुई जगह से निकली और उड़ चली, उसकी कमज़ोर-सी एक पिप् एक पूरे खुशी के गाने की तरह थी। ज़मीन पर तो वह एक चिड़िया थी पर स्वर्ग में वे जानते थे कि वह कौन-सी चिड़िया थी।
बहुत तेज़ सरदी थी। झीलें बरफ से ढंक गई थीं। जंगल के जानवरों और पक्षियों के लिए मुश्किल वक्त था; खाना मिल नहीं रहा था। बड़ी सड़क पर छोटी चिड़िया उड़ रही थी। सड़क पर जाती सवारियों के निशानों के बीच में उसे जई का एकाध दाना मिल जाता था। जहाँ यात्री आराम करते थे, वहाँ कभी-कभी उसे डबलरोटी के टुकड़े या चूरा मिल जाता था। वह खुद बहुत कम खाती थी पर बाकी भूखी चिड़ियों को बुलाती थी ताकि वे खा लें। शहर में वह उस आँगन को ढूँढ़ती जहाँ किसी दयालु हाथ ने भूखी चिड़ियों के लिए रोटी या नाज के दाने फेंके हों। ऐसी जगह मिलने पर वह एकाध दाना खाकर बाकी उन्हें दे देती थी।
सर्दियों-भर में छोटी चिड़िया ने डबलरोटी के इतने टुकड़े इकट्ठा किए और बाँटे जिनका वज़न इंगर की उस डबलरोटी जितना हो गया था जिन पर उसने जूतों को गंदा होने से बचाने के लिए पाँव रखा था। जैसे ही आखिरी छोटा टुकड़ा मिला और उसने दिया, वैसे ही छोटी चिड़िया के पंख बड़े होते गए और उसका रंग स्लेटी से सफेद हो गया।
बच्चे बोले, देखो! झील के ऊपर समुद्री बत्तख उड़ रही है। वे उस सफेद चिड़िया के पीछे दौड़ने लगे जो पानी की तरफ आती फिर वापस ऊपर आकाश में उड़ जाती थी। सूरज की धूप में उसके सफेद पंख चमक रहे थे। फिर वह चली गई। बच्चे बोले, ‘वह सूरज के अंदर चली गई।’