
गाय, बछड़ा और बाघ हिन्दी लोक कथा
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किसी गांव में एक गाय और उसका बछड़ा रहता था। गाय रोज हरी घास चरने जंगल जाया करती थी ताकि उसके बछड़े को दूध मिलता रहे।
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बछड़े को अधिक दूध पिलाने की इच्छा गाय को दूर दूर तक जंगल में घास चरने जाने के लिए प्रेरित करती। घास चरते चरते गाय एक दिन बहुत दूर तक निकल गयी। चरते चरते गास एक बाघ के इलाके तक पहुंच गयी। बाघ की नजर जैसे ही गाय पर पड़ी वह उसकी तरफ आगे बढ़ा। गाय बाघ को आता देख भयभीत होने लगी, वह बाघ से बोली- दाज्यू, मुझे जाने दो, घर पर मेरा बछड़ा मेरा इंतजार कर रहा है। वह भूखा होगा। मुझे आज जाने दो मैं वादा करती हूं उसे दूध पिलाकर वापस यहां आ जाऊंगी तब तुम मुझे खा लेना।
गाय की बात सुनकर बाघ हंसने लगा। और बोला – मैं बेवकूफ लगता हूं क्या? तुम एक बार गयी तो वापस नहीं आओगी, यह बातें तुम सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए कह रही हो। मुझे भूख लगी है, मैं तुम्हे खाकर रहूंगा।
गाय ने बहुत मिन्नतें की, बछड़े की दुहाई दी। पर बाघ नहीं माना। लेकिन गाय निरन्तर मिन्नत करने लगी। आखिर बाघ का मन पसीज गया और उसने गाय को जाने की इजाजत दे दी। और कहा कि अगर तू कल वापस नहीं आयी तो तेरे वहां आकर तुझे और तेरे बछड़े दोनों को खा जाऊँगा।
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गाय ने उस समय तो राहत की सांस ली परन्तु जैसे जैसे वह घर की तरफ बड़ती जा रही थी उसे अपने दिये वचन का ख्याल आते ही उदास हुये जा रही थी। आखिराकर गाय घर पहंची, बछड़ा गाय को देखकर खुश हुआ और दूध पीने लगा। गाय उसे प्यार करती, पुचकारती। मां को उदास देखकर बछड़े ने उदासी का कारण पूछा। गाय ने सारी बात बता दी।
बछड़े ने पूरी बात ध्यान से सुनी और कुछ देर सोचने के बाद बोला- मां इसमें उदास क्यूं होना हुआ, कल मुझे भी लेके चलना मैं बाघ मामा को समझा दूंगा।
गाय ने समझाया कि बाघ एक जंगली जानवर है और उनमें दया भाव नहीं होता, पर बछड़ा नहीं माना। गाय के लाख मना करने के बाद भी जब बछड़ा नहीं माना तो गाय ने साथ आने की इजाजत दे दी।

दूसरे दिन गाय और बछड़ा जंगल की तरफ चल दिये। थोड़ी देर में वह बाघ के सामने पहुंच गये। अब गाय को अपने बछड़े के मारे जाने का भय अधिक सताने लगा। वह विवश थी। गाय बोली- बाघ दाज्यू मैं अपने कहे वचन के मुताबिक आ गई। मुझे खालो और मेरे बछड़े को जाने दो।
इतने में बछड़ा बोला – नहीं बाघ जी आप पहले मुझे खालो।
गाय, बछड़े को चुप कराते हुये बोली- नहीं, नहीं आप मुझे खालो। बछड़े को जाने दो।
नहीं नहीं कहते बछड़ा बाघ के सामने चला गया।
इतने में बाघ हंसते हुये बोला कि न मैं तुझे खाऊँगा न ही तेरी मां को। जो अपने वचन पर अपनी जान की परवाह न करते हुये यहां तक आगयी उसको मैं क्या हरा पाउगां। और दूसरी तरफ तू है जो अपनी मां के बदले अपनी जान देने के लिये तैयार है। मुझे खाना होता तो मैं गाय को कल ही खा लेता । मैं तो बस यह देखना चाह रहा था कि गाय अपना वचन निभाती है कि नही।
बाघ ने बछड़े को बहुत प्यार किया। और उन दोनों को घर तक छोड़ने भी गया।