
गुलाब की सुगन्ध गोनू झा की कहानी
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मिथिला के लोग पाक-कला में निपुण होते हैं । तीज -त्योहारों पर तो प्रायः हर घर में तरह- तरह के पकवान बनते हैं । आम दिनों का भोजन भी सुस्वादु होता है ।
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रंगों से मिथिलांचल के लोगों का खास लगाव है । कला- प्रेमी ऐसे कि अपनी चित्रकारी में प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग प्राचीन काल से करते आ रहे हैं । सुगन्ध-प्रेमी भी हैं मिथिलावासी । प्रायः हर घर के अहाते में बेला, चमेली, कचनार , जूही , कनक, कटेली चम्पा, रातरानी जैसे पुष्पों के पौधे मिल ही जाएँगे ।
एक दिन मिथिला नरेश अपनी पुष्पवाटिका में टहल रहे थे। उनके साथ थे उनके मंत्री । किसी कारणवश गोनू झा महाराज से मिलने आए तो महाराज ने उनको भी पुष्पवाटिका में ही बुला लिया ।
महाराज अपने मंत्री से कुछ बातें करते रहे , कुछ निर्देश देते रहे। गोनू झा उन दोनों के साथ टहलते रहे । मंत्री मन ही मन खुश हो रहा था कि महाराज गोनू झा को महत्त्व नहीं दे रहे हैं । मंत्री को निर्देश दे चुकने के बाद महाराज अचानक मंत्री से कहने लगे -” मंत्री जी , इस पुष्पवाटिका में मैं जब कभी आता हूँ तो मुग्ध हो जाता हैं । जिस पौधे के पास जाओ, उसी पौधे से एक विशेष सुगंध का अहसास मन में भर जाता है। लेकिन मुझे इन सभी फूलों में गुलाब अधिक पसन्द है । देखने में भी सुन्दर और सुगन्ध ऐसी कि म्लान मन को भी आनन्दित कर दे। क्या ऐसा कोई उपाय है कि मैं जिस पौधे के पास जाऊँ , वहाँ से मुझे गुलाब की सुगन्ध ही मिले?”
मंत्री ने जब महाराज की बातें सुनीं तो वह अवाक रह गया । उसकी समझ में नहीं आया कि वह महाराज को क्या उत्तर दे। भला कचनार से गुलाब की सुगन्ध कैसे आ सकती है ? कोई भी फूल अपना ही सुवास देगा । महाराज को यह क्या सूझी ? अचानक मंत्री को आई बला को टालने की तरकीब सूझ गई। उसने तुरन्त महाराज से कहा -” महाराज! गोनू झा के रहते हुए इस प्रश्न का उत्तर मैं दूँ, उचित नहीं लगता !”
महाराज समझ गए कि मंत्री उन्हें कोई उपाय बताने की स्थिति में नहीं है, इसलिए वह बात टाल रहा है। वे मन ही मन मुस्कुराए और फिर गोनू झा की ओर देखा ।
गोनू झा ने एक पल भी गँवाए बिना कहा -“महाराज ! शाम ढल रही है । आपको ठंड लग सकती है। मैं तुरन्त आपका दुशाला लेकर आता हूँ,” और महाराज की स्वीकृति के बिना ही मुड़े और महल की ओर चले गए ।
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महाराज मंत्री के साथ पुष्पवाटिका में टहलते रहे, जैसे पहले टहल रहे थे।
थोड़ी ही देर में गोनू झा मंद -मंद मुस्कुराते हुए वहाँ आए । महाराज के पास रुके और सम्मानपूर्वक दुशाला उनके कंधों पर फैलाकर डाल दिया । महाराज ने दुशाले के एक छोर को खुद सीने से लपेटते हुए दूसरे छोर को अपने कंधे पर रख लिया । उस समय महाराज गुलाबों के बीच ही थे। गुलाब की सुंगध से सराबोर !
थोड़ी देर वहाँ टहलते रहे महाराज और उसके बाद दूसरे फूलों की ओर बढ़ते हुए उन्होंने गोनू झा से पूछा -” पंडित जी ! क्या कोई उपाय है कि मैं जिन फूलों के पास जाऊँ उनसे गुलाब की सुगंध ही आए ?”
गोनू झा मुस्कुराए और बोले -“उत्तर मिल जाएगा महाराज !”
थोड़ी देर में ही वे लोग पुष्पवाटिका के ऐसे छोर पर पहुँच गए जहाँ बेला-जूही- चमेली जैसे श्वेत पुष्पों की निराली छटा बिखरी हुई थी मगर महाराज को वहाँ भी गुलाब की सुगन्ध मिल रही थी । भीनी-भीनी सुगंध ! महाराज ने मंत्री से पूछा -” इन फूलों से कैसी सुगन्ध आ रही है ?”
मंत्री ने कहा -” बेला- जूही की मिली -जुली सुगन्ध !”
महाराज ने गोनू झा से भी वही सवाल दुहराया ।
गोनू झा महाराज के पूछने का अर्थ समझ गए । उन्होंने कहा -” महाराज , फूलों में तो वही सुगन्ध है जो नैसर्गिक रूप से उनमें विद्यमान है लेकिन आप जहाँ कहीं भी जाएँगे वहाँ आपको गुलाब की भीनी सुगन्ध मिलेगी । आपने आज्ञा दी थी कि मैं कुछ ऐसा उपाय बताऊँ कि आप इस पुष्पवाटिका में जहाँ कहीं भी जाएँ, आपको गुलाब की सुगन्ध मिले । मैंने वह उपाय कर दिखाया है ।”
अब तक मंत्री गोनू झा को इसी उपाय के मामले में मुँह लटकाए देखने की उम्मीद कर रहा था लेकिन गोनू झा की बातें सुनकर उसके चेहरे का रंग उतर गया ।
महाराज ने पूछा -” क्या सच आपने ऐसा कुछ किया है ? मैं अब भी गुलाब की सुगन्ध का अनुभव कर रहा हूँ ।”
गोनू झा ने मुस्कुराते हुए कहा -”मैंने कुछ नहीं किया है। बस, थोड़ा-सा गुलाब का इत्र आपके दुशाले पर लगा दिया है ।”