
गुण का महत्त्व गोपाल भाँड़ कहानी
Gun Ka Mahatva Gopal Bhand Story in Hindi ,moral stories for kids, hindi stories, hindi kahaniya, bacho ki kahaniya, kids stories, bachcho ki kahani, hindi moral stories,गोपाल भाँड़ की कहानी , motivational Story , kids Story ,
राजा कृष्णदेव का दरबार मनोरंजक तथा विद्वत्तापूर्ण चर्चाओं के लिए प्रसिद्ध था । महाराज अपने खाली समय में तरह-तरह की बातें कर अपने दरबारियों की बुद्धि की परीक्षा लेते रहते थे।
हमारे इस कहानी को भी पड़े : प्रथम पुरुष गोपाल भाँड़ कहानी
एक दिन महाराज कृष्णदेव अपने दरबार में बैठे थे । उन्होंने यूँ ही दरबारियों से पूछ लिया- “सबसे बड़ा पत्ता किसका होता है ?”
दरबारियों ने तरह-तरह की अटकलें लगानी शुरू कर दीं। किसी ने अरबी के पत्ते को बड़ा बताया तो किसी ने ढाक के पत्ते को। किसी ने केले के पत्ते को बड़ा कहा तो किसी ने मान कच्चू के पत्ते को सभी वनस्पतियों में सबसे बड़ा पत्ता बताया । दरबार में तरह-तरह की राय आने लगी मगर गोपाल भाँड़ अपने आसन पर चुपचाप बैठा रहा ।
महाराज कृष्णदेव ने उसे चुप देखकर कहा- “गोपाल ! क्या बात है? तुम चुप क्यों बैठे हो ? तुम भी तो कुछ बताओ !”
तब गोपाल ने कहा- “महाराज ! मेरे दरबारी मित्रों ने अब तक जो कुछ भी बताया, उससे मैं सहमत नहीं हूँ।”
महाराज ने पूछा – “फिर तुम ही बताओ, सबसे बड़ा पत्ता किसका होता है?”
गोपाल अपने आसन से उठकर महाराज के आसन तक आया और उनसे विनम्रतापूर्वक कहा – “महाराज! मैं कद में आपसे लम्बा हूँ और तगड़ा भी । है न?”
महाराज ने कहा, “हाँ, सो तो है ।”
हमारे इस कहानी को भी पड़े : रास्ते का पत्थर गोपाल भाँड़ कहानी
गोपाल ने फिर कहा – “महाराज, मेरा शरीर आपके शरीर से स्थूल है । है न?”
महाराज हँस दिए और कहा – “इसमें क्या शक है !”
इसके बाद गोपाल दरबारियों की तरफ मुड़ गया और पूछा-
“भाइयो, बताओ, क्या मैं महाराज से बड़ा हूँ?”
दरबारी गोपाल भाँड़ के सवाल से हत्प्रभ रह गए और सभी ने समवेत स्वर में कहा- “नहीं ।”
तब गोपाल भाँड़ ने कहा – “महाराज, इस समय ये लोग ठीक कह रहे हैं कि मैं आपसे बड़ा नहीं हूँ और न हो सकता हूँ। महज कद-काठी या आकार-प्रकार में बड़ा होने से कोई बड़ा नहीं होता । पत्ते को बड़ा बताने में ये लोग यही भूल कर रहे थे । इन लोगों ने किसी पत्ते को बड़ा बताने में उसके आकार-प्रकार, उसकी लम्बाई- चौड़ाई पर ही ध्यान दिया। किसी ने पत्ते के गुणों पर ध्यान नहीं दिया ।”
थोड़ा रुकने के बाद गोपाल भाँड़ ने फिर कहा – “महाराज ! मेरी समझ से सबसे बड़ा पत्ता पान का पत्ता है । पान अमीर और गरीब सबके लिए उपलब्ध है। यह औषधि भी है और नैवेद्य भी । देवताओं से लेकर मानव जाति के हर वर्ग में पान किसी-न-किसी रूप में उपयोगी है। महिलाओं के होंठों का शृंगार है पान तो ब्राह्मणों और विद्वतजनों के मुखशुद्धि का साधन भी ।”
इस तरह गोपाल भाँड़ ने पान के विविध गुणों का बखान करते हुए महाराज से कहा- “महाराज ! बड़ा या छोटा होना व्यक्ति या वस्तु के गुणों पर निर्भर करता है – लम्बाई, चौड़ाई या मोटाई पर नहीं । पान में बहुत सारे गुण हैं जो अन्य पत्तों में नहीं । इसलिए मेरी समझ से पान ही सबसे बड़ा पत्ता है।”
महाराज गोपाल के उत्तर से बहुत खुश हुए। दरबारियों ने भी गोपाल की तर्क-बुद्धि की सराहना की।