
खरगोश और कछुआ ईसप की कहानी
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दो मित्र थे—खरगोश और कछुआ। खरगोश अपनी तेज तथा कछुआ अपनी धीमी चाल के लिए प्रसिद्ध था।
एक बार दोनों आपस में बातें कर रहे थे।
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खरगोश कछुए की धीमी गति का मजाक उड़ाने लगा। कछुआ खरगोश की बातें सुनकर चिढ़ गया, मगर फिर भी बोला—‘‘मैं धीमी गति से चलता हूं तो क्या हुआ, यदि हमारी आपसी दौड़ हो जाए तो मैं तुम्हें पराजित कर दूंगा।’’
कछुए की बातें सुनकर खरगोश आश्चर्य करने लगा, बोला—‘‘मजाक मत करो।’’
‘‘मजाक नहीं, मैं गंभीर हूं।’’ कछुआ बोला—‘‘मैं निश्चित रूप से तुम्हें पराजित कर दूंगा।’’
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‘‘अच्छा ! खरगोश कछुए की बातें सुनकर हंसता हुआ बोला—‘‘तो फिर दौड़ हो जाए। हम एक रेफरी रख लेंगे और दौड़ का मैदान निश्चित कर लेंगे।’’

कछुआ खरगोश की बात पर राजी हो गया।
दूसरे दिन चूहे को रेफरी नियुक्त किया गया। नदी के किनारे पड़ने वाले एक मैदान को दौड़ के लिए चुना गया।
वहां से एक मील दूर स्थित बरगद के पेड़ को वह स्थान माना गया जहां दौड़ समाप्त होगी।
दौड़ आरम्भ होने से पहले रेफरी चूहा आया। उसने दोनों को नियत स्थान पर खड़ा किया—‘‘हाँ ! सावधान हो जाओ…और दौड़ो।’’ चूहा बोला।
दौड़ आरम्भ हो गई।

वह सोचने लगा—‘अभी तो उसका दूर-दूर तक पता नहीं है। क्यों न तब तक मैं थोड़ी-सी घास खा लूं और आराम कर लूं। जब कछुआ नजर आएगा तो मैं उठकर दोबारा तेजी से दौड़ लूंगा।’ खरगोश ने तब थोड़ी हरी घास खाई। पानी पिया और एक पेड़ के नीचे लेटकर आराम करने लगा।
खरगोश लेटकर सोना तो नहीं चाहता था, परंतु नदी किनारे से आती ठंडी हवा ने उसे गहरी नींद सुला दिया। खरगोश खर्राटे लेकर सोता रहा।
दूसरी ओर कछुआ धीमी गति से मगर लगातार बिना रुके अपनी मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा था।
खरगोश बहुत देर तक सोता रहा। जब वहा जागा तो उसे कछुआ कहीं नजर नहीं आया। चूंकि वह खूब सो चुका था, इसलिए उठते ही बहुत फुर्ती और तेजी से बरगद के पेड़ की ओर दौड़ने लगा। मगर पेड़ के पास पहुँचते ही मानो उस पर बिजली-सी गिरी। वह यह देखकर दंग रहा गया कि कछुआ तो वहां पहले से ही उपस्थित था। खरगोश दौड़ में हार चुका था। उसने भी अपनी पराजय स्वीकार कर ली।
उसने दोबारा कभी कछुए का मजाक उड़ाने का प्रयत्न नहीं किया।
निष्कर्ष : सफलता की राह में आलस सबसे बड़ी बाधा है।