
खेत जोत गए चोर गोनू झा की कहानी
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खेत भी तरह-तरह के होते हैं । सब कुछ मिट्टी पर निर्भर है कि किस खेत का क्या नाम होगा और किस तरह की मिट्टी वाले खेत को क्या कहेंगे।
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गोनू झा के घर के पिछवाड़े में खुली जमीन थी । पथरीली और कंकड़ीली जमीन होने के कारण उसे बंजर परती की संज्ञा दी जाती थी । प्रायः वहाँ अकवन , चिरचिरी, सरकंडे जैसी वनस्पति उग जाती थी , या फिर उग जाती थी कंटैया । इस तरह की वनस्पतियों का कोई घरेलू उपयोग नहीं था जिसके कारण इसी तरह के झार झंकार से गोनू झा के घर का पिछवाड़ा भरा हुआ था । पहले गोनू झा अपने घर के अहाते का ध्यान रखते भी थे किन्तु जब से वे मिथिला नरेश के दरबार में विदूषक बनाये गए तब से उन्हें मौका ही नहीं मिलता कि कहाँ क्या करना है ।
एक बार महाराज भवसिंह तीर्थाटन के लिए निकले तो गोनू झा को अपने घर पर रहने का अवसर मिला। एक दिन वे अपनी पत्नी के साथ अपने घर के अहाते का परिभ्रमण कर रहे थे कि उनकी नजर घर के पिछवाड़े की खुली जमीन पर पड़ी। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा -” तुमने कभी बताया नहीं कि घर के पिछवाड़े में झाड़ियों का जंगल- सा बन चुका है ? इस खर-पतवार में तो साँप -बिच्छू, सियार सब की बहार हो जाएगी । चोर-उच्चके यदि इसमें छुप जाएँ तो पता भी लगाना मुश्किल होगा।”
पंडिताइन चुप रही। कुछ बोली नहीं ।
गोनू झा ने फिर कहा -” देखो पंडिताइन , इतनी समझदार तो हो ही कि समझ सको कि अपनी सुरक्षा और अपनी हिफाजत के लिए हर व्यक्ति को स्वयं सतर्क रहना चाहिए। ऐसे भी मिथिला के शातिर चोरों और ठगों की मुझसे सीधे-सीधे ठनी हुई है। जो चोर -उचक्के कारावास में कैद हैं , उनके सगे-सम्बन्धी तो होंगे ही । क्या पता , उनमें से कोई ताक लगाए बैठा हो कि कब मौका मिले कि गोनू झा को सबक सिखाया जाए ।…मैं जल्दी ही इस खर पतवार को साफ करवाऊँगा। जब इस बंजर जमीन पर खर- पतवार पैदा हो सकता है तो कुछ और भी पैदा हो सकता है । पहले मैं पता कर लेता हूँ कि यहाँ पर और क्या-क्या पैदा हो सकता है…”
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बात आई- गई हो गई। गोनू झा दूसरे घरेलू कार्यों को निपटाने में लग गए। बंजर को आबाद करने का खयाल उनके दिमाग से ही निकल गया । गाँव में वे इधर-उधर जाते । हमजोलियों से मिलते । दरबार के औपचारिक जीवन से मुक्त , ठेठ अपनी शैली में ठहाकेबाजी करते । कहीं उनके लिए भात -मछली और पकौड़े तले जाते तो कहीं भाँग घोंटा जाता । एक रात , इसी तरह की मटरगश्ती करके भाँग के तरंग में नचारी गाते हुए गोनू झा अपने घर की ओर लौट रहे थे कि उनकी नजर चार -पाँच हिलते-डुलते सायों पर पड़ी ।
गोनू झा ने सोचा-यह उनका भ्रम हो सकता है क्योंकि उन्होंने भाँग पी रखी है । मगर फिर भी वे आँखें फाड़े अँधेरे में देखते रहे । अन्ततः गोनू झा ठमक गए। उन्हें स्पष्ट भान हुआ कि हिलते-डुलते साए चार-पाँच नहीं, आठ-दस हैं और उनके घर के आस-पास मंडरा रहे हैं । उन्होंने दो सायों को तेजी से अपने घर के पिछवाड़े जाते देखा। गोनू झा जहाँ थे वहीं एक पेड़ की ओट में खड़े होकर इन सायों की गतिविधियाँ देखने लगे। उन्होंने देखा कि शेष रह गए साये दो भागों में बँट गए । प्रत्येक भाग में चार-चार साए थे। तेजी से चार गोनू झा के घर के उत्तर , खुले स्थान में लगाए गए फलदार वृक्षों के बगीचे में घुस गए और चार घर के दक्षिण भाग में लगे आम के बगान में घुस गए।
अब गोनू झा खुद ऐसे लड़खड़ाते हुए चलने लगे मानो बहुत नशे में हों । वे गुनगुनाते भी जा रहे थे। कभी-कभी वे बहुत ऊँची आवाज में गुनगुनाते मगर यह समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या गुनगुना रहे हैं । उनकी नशे में डूबी आवाज रात के सन्नाटे में कुछ ज्यादा ही तेज प्रतीत होती थी । अपने दरवाजे पर वे पहुँचे ही थे कि पंडिताइन हाथ में दीया लिए घर से बाहर निकली। गोनू झा को इस हालत में देखकर पंडिताइन को काठ मार गया । वह समझ नहीं पा रही थी कि पंडित जी आज इतने तरंग में कैसे आ गए । ये तो कभी इतनी भाँग पीते नहीं कि चढ़ जाए । होली में जब सारा गाँव भंगियाया रहता है तब भी पंडित जी पूरे होश में रहते हैं । पंडिताइन को दीया लिये आते देखकर गोनू झा ने लटपटाती हुई आवाज में कहा,” अरे भाग्यवान, जरा दूरा पर के छोटकी कोठरिया खोल के जितना कुदाल , फावड़ा है सब निकाल लाओ।… अरे नहीं, तुम कोठरी खोल दो , जरूरत का सामान निकालकर मैं ही रखता हूँ।”
पंडिताइन झल्ला गई। अब आधी रात में इनको यह क्या धुन सवार हो गई है ? पंडिताइन को विश्वास हो गया था कि गोनू झा इस समय नशे में हैं । इसलिए उसने उनसे कुछ नहीं कहा । चुप-चाप कोठरी खोल दी । इस कोठरी में खेती के उपकरण थे। गोनू ने चार गैंता निकालकर दरवाजे पर रखा । फिर चार कुदाल निकाले । फिर दो फावड़ा। बेंत की चार पाँच टोकरियाँ भी उन्होंने निकालीं । सारा सामान बाहर रखकर वे दरवाजे पर खुले स्थान पर खड़े हो गए और पत्नी से कहा -“जाओ आधा डोल पानी ले के आओ।”
पंडिताइन मन-ही-मन चिढ़ रही थी । कुछ बोली नहीं । पानी लेकर आ गई ।
गोनू झा ने कुल्ला किया । हाथ -पैर धोए। फिर सिर पर दो लोटा पानी डाला और कंधे पर रखे गमछा से सिर पोंछते हुए घर में घुस गए।
डोल-लोटा लेकर उनके पीछे-पीछे पंडिताइन भी घर में घुसकर दरवाजा बन्द कर लिया । गोनू झा के लिए पंडिताइन ने खाना परोस दिया । उन्हें देखकर समझने की कोशिश करने लगी कि गोनू झा क्या सचमुच नशे में हैं या यूँ ही नशे में होने का स्वाँग कर रहे हैं । अभी पंडिताइन इस उधेड़बुन में थी कि उन्हें महसूस हुआ कि घर के पिछवाड़े की जो खिड़की आँगन से खुलती है वहाँ से कुछ खटर -पटर की आवाजें आ रही हैं ।
उसी समय गोनू झा ने पंडिताइन को आवाज लगाई और ऊँची आवाज में बोले -” अरे भाग्यवान ! कुदाल-फावड़ा निकालने के लिए तुमने दीया दिखाया है। इसका जो ईनाम तुम्हें कल मिलने वाला है उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकती हो ।
पंडिताइन उत्सुकता से भरकर आँगन में आ गई और पूछने लगी-“ऐसा क्या ?…मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है कि रात में कुदाल, गैंता क्यों निकलवा रहे हैं आप। कम से कम पन्द्रह जन के औजार आपने निकलवाए हैं । क्या होगा इनका ?”
“अरे भाग्यवान । कल इस कुदाल-फावड़े से समझो कि अपनी कंगाली जड़ से खुद जाएगी । इतना धन इन औजारों से प्राप्त होने वाला है जिसकी तुम कल्पना नहीं कर सकतीं । मुझे तो बहुत पहले यह कदम उठा लेना चाहिए था मगर अक्ल आती है आते आते …”
” मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा… तुम कैसी पहेलियाँ बुझा रहे हो !” धन की बात सुनकर पंडिताइन की उत्सुकता जग चुकी थी ।
गोनू झा ने तपाक से कहा -” पगली! धन-वैभव की बात तुम्हें यहाँ खुले में बताऊँ ? इतना तेज नशा नहीं हुआ है अभी कि अपना होश गँवा बैठूँ । तुम मेरी अर्धांगिनी हो । तुम्हें सब बता देना मेरा धर्म है । अग्नि के सात फेरों में लिए जाने वाले सात संकल्पों में एक संकल्प यह भी तो होता है। लेकिन यहाँ नहीं, चलो, कमरे में बताता हूँ।” इतना कहकर गोनू झा मुस्कुराते हुए पत्नी का कंधा पकड़कर कमरे में आ गए और गुनगुनाने लगे ।
पंडिताइन कुछ देर तो शान्त रहकर उनके चुप होने की प्रतीक्षा करती रही लेकिन जब उससे नहीं रहा गया तब बोली -” अरे बताओ भी कि किस धन की बात कर रहे थे और उस धन का इन खेती के औजारों से क्या सम्बन्ध है ?”
गोनू झा कुछ कहते , उससे पहले ही कमरे की खिड़की के पास खटका हुआ । गोनू झा अभी उस आवाज पर ध्यान दे रहे थे कि पंडिताइन बोली -“अरे कुछ नहीं है। बिल्ली रात -बेरात इसी तरह उछल- कूद के शिकार करती रहती है । तुम बताओ न, क्या बतानेवाले थे?”
गोनू झा चलते हुए खिड़की के पास पहुँच गए और ऊँची आवाज में बोलने लगे -” मेरे पिताजी ने मरने से पहले मुझे बताया था कि पिछवाड़े की जमीन को उन्होंने जान-बूझकर बंजर रख छोड़ा है ताकि किसी को भी इस जमीन में छुपे खजाने का पता न चल सके । इस जमीन में सात स्थानों पर पिताजी ने सोने की मोहरों से भरे घड़े गड़वा रखे हैं । मुझसे उन्होंने कहा था कि जब बहुत जरूरत महसूस हो तब इन खजानों का उपयोग करना । मैंने भी उनके मरने के बाद पिछवाड़े की जमीन पर कुदाल नहीं चलवाई । सोचा, इस दो कट्टे में बाड़ी न भी लगे तो क्या है? मगर आज भाँग छाँकते समय अचानक मेरे मस्तिष्क में यह विचार कौंधा कि इतना सोना रहते हुए मेरी पंडिताइन एक पतली सिकड़ी पहनती है । खपरैल घर में रहती है । मुझे अपने धन का वैभवपूर्ण उपयोग करना चाहिए । जानती हो न … सोम का धन शैतान खाता है । तब से ही मैं इन घड़ों को निकलवाने के लिए बेचैन हूँ । खैर , आज नहीं, तो कल सही । कल पौ फटते ही मैं पन्द्रह-बीस मजदूरों को पकड़ लाऊँगा। घंटे-दो घंटे में जमीन के खर- पातर की सफाई और जमीन खोदकर स्वर्ण- मुद्राओं से भरे घड़ों को निकालकर आराम की जिन्दगी !” इसके बाद गोनू झा खूब जोर-जोर से हँसने लगे” हा … हा … हा ! फिर महाराज की चाकरी करने की जरूरत नहीं। नगर सेठों में बैठूँगा । मैं तुम्हें रानी की तरह सजाकर रखूँगा। हा … हा … हा …!” हँसी का अटूट सिलसिला- सा चल पड़ा ।
गोनू झा को इस तरह हँसते देख पंडिताइन भयभीत हो गई कि कहीं गोनू झा को भाँग तो नहीं चढ़ गई! वह बेचैन हो गई । और गोनू झा को अनुनय -विनय के साथ बिस्तर पर ले आई। गोनू झा जल्दी ही गहरी नींद में सो गए। पंडिताइन की भी आँखें लग गईं।
सुबह पौ फटने से पहले ही पंडिताइन जग गई । नारी सुलभ जिज्ञासा उसे बेचैन किए थी कि इतना सोना जब घर में आएगा तब वह क्या-क्या करेगी? कई बार उसका मन हुआ कि गोनू झा को जगा ले और उन्हें मजदूर लाने के लिए भेज दे। सबेरा हो जाने के बाद जन कमाने निकल जाते हैं क्या पता पंडित जी अगर देर से जगें तो कोई मजदूर मिले न मिले। एक की बात रहती तो चलो , कोई बात नहीं थी , जरूरत तो दस -पन्द्रह मजदूरों की है … घंटा भर में दो कट्ठे जमीन की सफाई और कोड़ाई तो दस-पन्द्रह आदमी कर ही लेंगे… हाँ , उस समय खुद भी सतर्क रहना होगा । घड़ा मिलने पर तुरन्त खेत से घड़े को ले आना होगा। किसी को भनक भी न लगे कि उन घड़ों में सोना है।
पंडिताइन की नींद खुली तो फिर दुबारा आँखें नहीं लगीं। गुन-धुन लगा रहा कि सोना घर में आ जाएगा तब वह क्या करेगी ।
चिड़ियों की चहचहाहट ने पंडिताइन को बेचैन कर दिया … और वह अपने को रोक नहीं पाई । गोनू झा का कंधा हिलाते हुए धीमे-धीमे आवाज देने लगी -” पंडित जी , जागिए। सबेरा हो गया ।”
गोनू झा की नींद खुली। आँखें मलते हुए वे बिस्तर से उठे । कुल्ला किया । फिर पंडिताइन से पूछने लगे – “अरे भाग्यवान ! इतनी जल्दी क्यों जगा दिया …?”
” आपको कुछ याद भी रहता है? आपने ही तो कहा था कि सुबह में दस-पन्द्रह मजदूर लाने जाना है, भूल गए?”
“अरे , हाँ !” गोनू झा ने चौंकते हुए कहा-“चलो, तुम भी चलो मेरे साथ।”
“मैं जाऊँ ? मजदूर लाने ? लोग क्या कहेंगे ?” पंडिताइन बोली।
“अरे , बाहर तक तो चलो ।” गोनू झा ने पंडिताइन की कलाई पकड़ ली और दरवाजा खोलकर पत्नी के साथ बाहर निकले। बोले -” चलो , जरा पिछवाड़े से हो आएँ। “
वे दोनों पिछवाड़े की ओर गए तो देखा, दस आदमी जमीन की खुदाई करने में लगे हए हैं । अपने काम में वे लोग इतने तन्मय थे कि गोनू झा और पंडिताइन के पहुँचने का उन्हें पता ही नहीं चला ।
गोनू झा ने ताली बजाई। बोले, “वाह, भाइयो , तुम लोगों ने तो रात-भर में जमीन की सूरत ही बदल दी !”
इतना सुनना था कि खेत जोतने में लगे लोग कुदाल-गैंता छोड़कर भागे । मगर वे भाग के जाते कहाँ ? सवेरा हो चुका था । लोग शौचादि के लिए घरों से निकल चुके थे। गोनू झा ने चोर-चोर का शोर मचाया … चीखने लगे -” पकड़ो… कोई भागने न पाए!”
गाँववालों ने भागते चोरों में से चार को पकड़ लिया । उनकी जबर्दस्त धुनाई हुई । इस धुनाई के बाद उन्हें कोतवाल के हवाले कर दिया गया ।
उनके बयान पर शेष चोर भी पकड़ लिए गए । उनकी पिटाई और पूछताछ से मालूम हुआ कि ये सभी लोग किसी न किसी तरह लंगडू उस्ताद से सम्बन्धित हैं । लंगडू उस्ताद ने गोनू झा को सबक सिखाने का संकल्प ले रखा है। उसके कहने पर ही ये लोग गोनू झा के घर चोरी करने के इरादे से आए थे। गोनू झा को अपनी पत्नी से खेत में स्वर्ण-मुद्राओं से भरे घड़े होने की बात कहते सुनकर उन लोगों ने उसी को निकालकर ले जाने का मन बना लिया ।
कुदाल आदि तो गोनू झा निकालकर गए ही थे… वे अन्त तक यह नहीं समझ पाए कि वे गोनू झा के झाँसे का शिकार हो गए। गोनू झा ने पहले ही भाँप लिया था कि चोरों ने उनके घर पर घात लगा रखा है । इसके कारण ही उन्होंने खजाने की कहानी पत्नी को सुनाई थी ।
हवालात में बन्द चोरों को देखने के लिए गोनू झा जब पहुंचे, उस समय भी वे तरंग में उसी तरह गुनगुना रहे थे… चोरों से उन्होंने कहा -” अरे भाई लोग ! तुम लोगों ने मेरी बंजर भूमि की बढ़िया खुदाई की । कारावास की सैर से लौटकर आना तो मेहनताना ले जाना।”