महाबलि का आगमन हिन्दी कहानी
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आपने केरल के प्रसिद्ध त्योहार ओणम के विषय में अवश्य सुना होगा। श्रावण मास में आने वाला यह त्यौहार अपने साथ बहुत-सी खुशियाँ लाता है। केरल राज्य पूरे चार दिन तक आमोद-प्रमोद में डूब जाता है।
इस त्यौहार से एक रोचक प्रसंग भी जुड़ा है।
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कहते हैं कि प्राचीनकाल में केरल राज्य में महाबलि असुर का राज्य था। राज्य में चारों ओर समृद्धि और खुशहाली थी। महाबलि अपनी प्रजा को बहुत चाहते थे। किंतु देवों को महाबलि की बढ़ती लोकप्रियता से चिंता होने लगी। वे नहीं चाहते थे कि असुरों का शासन फले-फूले।
महाबलि ने अपनी योग्यता के बल पर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। तब तो भगवान इंद्र का सिंहासन भी डोल गया। वे भागे-भागे महाविष्णु के पास पहुँचे और प्रार्थना की। तब महाविष्णु ने उन्हें विश्वास दिलाया-
‘मैं पृथ्वी पर वामन का अवतार लेकर जाऊँगा और महाबलि से उसका राज्य छीन लूँगा।’
महाविष्णु ने ठिगने कद के एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और महाबलि के महल में जा पहुँचे। महाबलि ब्राह्मण अतिथियों का बहुत आदर करते थे। उन्होंने वामन के चरण धोए और स्वागत-सत्कार के बाद पूछा-
‘मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?’
‘मुझे केवल तीन कदम धरती चाहिए।’ वामन ने उत्तर दिया।
‘केवल तीन कदम धरती से क्या करेंगे?’ महाबलि ने आश्चर्य से पूछा।
‘मुझे वहाँ बैठकर तपस्या करनी है?’
वामन कुमार का उत्तर सुनकर महाबलि ने प्रसनन्नतापूर्वक तीन कदम धरती देने का वचन दे दिया।
असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने वामन वेषधारी महाविष्णु को पहचान लिया। उन्होंने महाबलि से अकेले में कहा-
‘अपना वचन वापिस ले लो। यह वामन तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेगा।’
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महाबलि अपने वचन के पक्के थे। वे बोले-
‘अब तो मैं बचन दे चुका हूँ। जो भी होगा, देखा जाएगा।’
अगले दिन राजसभा लगी। महाबलि अपने सिंहासन पर बिराजे। वामन कुमार ने एक बार फिर पूछा-
‘क्या मैं तीन पग धरती ले लूँ?’
‘हाँ अवश्य, जहाँ आपका जी चाहे।’ महाबलि ने उत्तर दिया।
देखते-ही-देखते वामन कुमार का शरीर विशाल रूप धारण करने लगा। उनका कद इतना बढ़ गया कि तीन लोक तो दो कदमों में ही आ गए। उन्होंने हँसकर महाबलि से पूछा-
‘अब मैं तीसरा कदम कहाँ रखूँ?’
महाबलि ने अपना सिर झुका दिया और वामन ने अपना तीसरा पग उस पर रख दिया। महाबलि पाताल लोक में चले गए।
जाने से पहले उन्होंने वर माँगा-
क्या मैं वर्ष में एक बार अपनी प्यारी प्रजा को देखने आ सकता हूँ?’
महाविष्णु ने कहा-
हाँ, तुम प्रतिवर्ष श्रावण मास में अपनी प्रजा का हाल-चाल जानने आ सकते हो।’
तब से प्रतिवर्ष श्रावण मास के श्रवण नक्षत्र में महाबलि केरल आया करते हैं। उन्हीं के आने के उपलक्ष्य में ओणम मनाया जाता है। प्रजा अपने राजा को विश्वास दिलाती है कि वे सभी सुखी हैं।