
मन के लड्डू गोपाल भाँड़ कहानी
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गोपाल भाँड़ के पड़ोस में एक गरीब परिवार रहता था। पति-पत्नी दोनों मन के लड्डू खाने के आदी थे। एक दिन गोपाल ने उन्हें बात करते सुना ।
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पति कह रहा था, “मेरे पास कुछ रुपए होंगे तो मैं एक गाय खरीदूँगा ।”
पत्नी बोली, “मैं गाय को दुहूँगी। मुझे कुछ हँडियाँ लानी होंगी।”
अगले दिन वह कुम्हार के यहाँ से हँडियाँ खरीद लाई ।
पति ने पूछा, “क्या खरीद लाई ?”
“ओह ये! कुछ हँडियाँ । एक दूध के लिए, एक छाछ के लिए, एक मक्खन के लिए और एक घी के लिए।”
“बहुत खूब ! पर इस पाँचवीं का क्या करोगी?”
पत्नी ने कहा, “इसमें अपनी बहन को थोड़ा दूध भेजूँगी ।”
“क्या! अपनी बहन को दूध भेजेगी? ऐसा कब से चल रहा है? मुझसे पूछे बगैर ?”
पति चिल्लाया और उसने गुस्से में सारी हँडियाँ तोड़ दीं।
पत्नी ने जवाब दिया, “मैं गाय की देखभाल करती हूँ, उसे दुहती हूँ। बचे हुए दूध का क्या करूँ यह मेरी मरज़ी!”
“मैं दिन भर हाड़तोड़ मेहनत करके गाय खरीदता हूँ और तू उसका दूध अपनी बहन को देती है! मैं तुझे मार डालूँगा !” पति गुर्राया और बरतन – भाँडे फेंकने लगा।
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आखिर गोपाल से रहा नहीं गया। उसने पड़ोसी के घर जाकर पूछा, “क्या बात है ? बर्तन भाँडे क्यों फेंके जा रहे हैं ?”
“यह औरत अपनी बहन को हमारी गाय का दूध भिजवाती है !”
“तुम्हारी गाय ?” गोपाल ने पूछा ।
“हाँ, वही जो मैं पैसों की जुगाड़ होते ही खरीदने वाला हूँ।”
“अच्छा, वह गाय !” गोपाल ने कहा, “पर अभी तो तुम्हारे पास कोई गाय नहीं है, या है ?”
पड़ोसी ने कहा, “देख लेना, मैं गाय ज़रूर लाऊँगा ।”
“ओह सच! अब मुझे पता चला कि मेरी बाड़ी कौन बर्बाद करता है!” कहते हुए गोपाल ने एक लाठी उठाई और पड़ोसी पर लपका।
“ठहरो! ठहरो! मुझे क्यों मारते हो ?”
“तुम्हारी गाय मेरे सेम और खीरे खा गई। तुम उसे बाँधते क्यों नहीं ?”
“कैसी सेम ? कैसे खीरे ? तुम्हारी सब्ज़ियों की बाड़ी है कहाँ ?”
“वह जिसकी मैं बुवाई करने वाला हूँ! मैं महीनों से उसके बारे में सोच रहा हूँ और तुम्हारी गाय उसे तहस-नहस कर जाती है !”
अचानक पड़ोसी की आँखें खुल गईं। वे ठठाकर हँस पड़े।