
पंचायत के पंचों का फैसला गोपाल भाँड़ कहानी
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एक बार गोपाल भांड ने राजा से प्रार्थना की जब मुझसे कोई कसूर हो जाए तो उसका निपटारा वही लोग कर सकें जिनकी मैं स्वयं कहूँ।
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राजा कृष्णचंद्र ने गोपाल की बात मान ली क्योंकि राजा तो अपने बात के पक्के थे और उन्हें गोपाल पर पूरा विश्वास भी था। एक बार गोपाल से कोई कसूर हो गया। राजा ने कानून की दृष्टि से गोपाल को भी सजा देने का निश्चय किया।
गोपाल को किसी तरह पता चल गया कि राजा उसे जरूर दण्ड देंगे।अपने इरादे के मुताबिक राजा कृष्णचंद्र ने गोपाल को एकांत में बुलाकर सारी बातें कह दीं कि तुमने जो कसूर किया है। उसके लिए तुम्हें सजा मिलेगी।गोपाल को उस प्रतिज्ञा की याद आई जिसमें राजा ने गोपाल को वचन दिया था कि तुम्हारा न्याय तुम्हारे ही पंचों द्वारा होगा। उसे मौके पर उपाय सूझा और राजा के आदेश पर गोपाल ने अपना पंच चमारों को चुना।
इस चुनाव से राजा को आश्चर्य हुआ कि ये चमार क्या न्याय करेंगे?किसी बड़े महाजन को चुनना चाहिए था।खैर,चमार बुलाए गए। दो गाँवों से पाँच चौधरी आए। राजा ने उन चमारों को गोपाल के अपराध के संबंध में सारी बातें समझा दीं तथा न्याय करने का हुक्म दिया।पंचों द्वारा यह बात सोची गई कि गोपाल से बदला लेने का यही मौका है। ऐसा मौका हाथ से नहीं निकलना चाहिए और ऐसा दण्ड देना चाहिए कि जिससे गोपाल जन्म भर याद रखे तथा आगे भी हम लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करने का साहस न करे।
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उन पंचों में पहले एक बोला – भाइयों ! अपराध तो गोपाल का बहुत बड़ा है। अतएव सात बीसी और दस रुपये जुर्माना करना चाहिए। दूसरे ने सोचा – इतनी बड़ी सजा और फिर भी जुर्माना। इतने जुर्माने की कल्पना कर दूसरा पंच सिहर उठा- गोपाल के बाल – बच्चों पर इसका क्या परिणाम होगा ? घर – बार नष्ट हो जाएगा। यह बात सोचकर उसने सजा घटाकर पाँच बीसी रुपये जुर्माना करने का फैसला किया।
तीसरे को इतना जुर्माना भी अधिक मालूम हुआ और उसने चकित होते हुए सजा घटाकर तीन बीसी रुपये का प्रस्ताव रखा,फिर भी उसने कहा- यह जुर्माना भी काफी है,फिर भी यदि पंच लोग चाहें तो और कुछ कम कर दें क्योंकि इतना दाखिल करने में गोपाल की हालत खराब हो जाएगी।अब चौथे चौधरी की बारी आई।उसने अब तक सभी सलाहों का विरोध किया और कहा कि इतना बहुत अधिक है। इसमें अधिक से अधिक कमी होनी चाहिए।
चौथे चौधरी के प्रस्ताव का पाँचवे चौधरी ने अनुमोदन किया और सर्व सम्मति से थोड़ी देर की बहस के बाद यह तय हुआ किदीवान गोपाल को दो बीसी तथा दस रुपये दण्ड के देने होंगे क्योंकि यह दण्ड अधिक है , इसलिए हम पंचगण राजा से यह प्रार्थना करते हैं कि दो बीसी तथा दस रुपये दण्ड लिए जाएँ। लेकिन इसकी वसूली में सख्ती न की जाए। राजा कृष्णचंद्र ताड़ गए कि गोपाल ने बुद्धिमानी से ही इन चमार चौधरियों को अपना पंच चुना था।

उधर मामला निपटाकर पंचों ने राजा से जाने की आज्ञा माँगी।आज्ञा पाकर वे वहाँ से चले गए। राजा की नजरों में पचास रुपये का जुर्माना क्या था?लेकिन चमारों की गरीबी व परिस्थिति का ख्याल करो कि साल भर जी – जान से परिश्रम करने के बाद भी ये गरीब जातियाँ इतना भी तो नहीं बचा पातीं कि वर्ष की समाप्ति पर बस पचास रुपये पास रहें।
इसीलिए उनकी नजर में दो बीसी अर्थात चालीस रुपये और दस रुपये कुल पचास रुपये बहुत ही कठिन जुर्माना था।राजा का हृदय दया से भर गया और गोपाल मन ही मन प्रसन्न था। गोपाल का फैसला स्वयं राजा ही सुनाने जा रहे थे कि गोपाल को देखकर राजा अपनी हँसी न रोक सके।
गोपाल को दण्ड से मुक्त कर दिया। गोपाल को यह पहले से ही ज्ञात था कि गरीब जातियाँ इतना रुपया नहीं बचा सकतीं, इसीलिए कम से कम जुर्माना ही करेंगे जो हमारे लिए कठिन नहीं होगा और वैसा ही हुआ। गोपाल ने इसीलिए अपना न्यायकर्त्ता चमारों को बनाया था।