पीलू हाथी चिड़ियाँ, भौंरे, परियाँ और तितलियाँ की कहानी
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एक घाटी के किनारे पीलू हाथी रहता था। घाटी के पास एक सुन्दर-सा बाग था । वहाँ चिड़ियाँ, भौंरे, परियाँ और तितलियाँ रहते थे। वे सब प्रसन्न रहते थे। तितलियाँ फूलों से शहद बनातीं । भवरें आसमान में उड़ते हुए गुनगुनाते रहते। परियाँ सुन्दर-सुन्दर फूलों पर बैठकर अपनी मीठी आवाज में गाती और चिड़ियाँ पेड़ पर बैठ कर चूँ-चूँ करती।
पीलू हाथी की इन सबसे दोस्ती थी। वह इनसे मिलने रोज बाग में जाता। वहाँ वह चिड़ियों, भवरें, परियाँ और तितलियों को अपनी पीठ पर बैठाकर घुमाता, जबकि वे उड़ सकते थे। पीलू हाथी के दोस्त उसे बहुत प्यार करते थे। तितलियाँ उसे शहद देती, परियाँ अपनी मीठी आवाज में उसे गाना सुनाती, चिड़ियाँ अपने प्यारे-प्यारे बच्चों को उसे दिखाती और भौंरों को जो भी अच्छा मिलता वह वे उसे दे देते।
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एक दिन हाथी बीमार पड़ गया। जब कुछ दिनों तक वह बाग में नहीं आया तो चिड़ियाँ, भौंरें, तितलियाँ और परियाँ घबड़ा कर उसके घर गए। उसे बीमार देखकर उन्हें बहुत बुरा लगा। सोन चिड़िया अपनी दादी को बुला लाई। दादी ने चश्मा लगाकर हाथी को देखा और मुस्कुराकर कहा, ‘डॉक्टर को बुलाने की जरूरत नहीं है। गरम पानी में नींबू और शहद डालकर पिला दो गुनगुने पानी में नमक डालकर दिन में दो-तीन बार गरारा करा दो। कल तक ठीक हो जाएगा।’ दादी तो अपना नुस्खा बताकर चली गई, पर परियाँ मानी नहीं। वे डॉक्टर को बुला लाईं। डॉक्टर ने नब्ज देखी और कागज पर दवाई का नाम लिख दिया। परियाँ जल्दी से दवाई ले आर्इं। उन्होंने हाथी की बहुत सेवा की। वह कुछ दिनों में ठीक हो गया।
परियों ने हाथी के अच्छे हुए की खुशी में दावत दी। अपनी रानी को भी निमंत्रण दिया। परियों ने हाथी के लिए इन्द्रधनुष की टोपी बना दी और गुलाबी बादलों का कोट बना दिया। हाथी इन्हें पहनकर दावत में आया। अपनी सूँड में वह रानी के लिए कमल के फूलों की एक माला लाया। परियों ने रानी को समझा दिया था कि पीलू हाथी कैसा दिखता है और वह कितना स्नेही है। फिर भी रानी हाथी को देखकर डर गई। उसने इतना बड़ा जानवर कभी नहीं देखा था। वह उसे दैत्य-सा लगा। पर परियों के बहुत समझाने पर उसने माला ले ली और हाथी को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘परियाँ तुम्हारी बहुत तारीफ करती हैं। मैं परीलोक में जादू से तुम्हारे लिए एक घर बना दूँगी। तुम वहाँ रहना।’ यह सुनकर हाथी ने सूँड़ उठाकर कहा, ‘रानी की जय हो !’
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हाथी की चिंघाड़ सुनकर रानी बेहोश हो गई। परियों ने घबड़ा कर रानी को हरसिंगार के फूलों के पलंग पर लिटाया और मुँह पर पानी के छींटें डाले, गुलाब की पंखड़ियों के पंखे से हवा की। रानी ने आँखें खोलीं तो तितलियों ने झट से फूलों का शहद रानी को खिलाया। शहद से रानी को फायदा हुआ। वह ठीक हो गई और बैठ गई।
हाथी को बहुत बुरा लगा कि रानी उसकी आवाज सुनकर बेहोश हो गई। वह चुपचाप अपने घर वापस आ गया। उसने सोच लिया कि अब वह परीलोक नहीं जाएगा, क्योंकि उसकी आवाज सुनकर वहाँ की परियाँ बेहोश हो जाएँगी। उसे यह भी डर लगा कि उसकी दोस्त परियाँ उससे परीलोक जाने को कहेंगी। उसे लगा कि उसे अपना घर जल्दी-से-जल्दी छोड़कर दूर चले जाना चाहिए। वह चलता गया, चलता गया। चलते-चलते उसे एक पहाड़ मिला।
पहाड़ के अन्दर एक गुफा थी । हाथी उस गुफा में रहने लगा। यहाँ उसका कोई दोस्त नहीं था। इतना अकेला रहना उसे अच्छा नहीं लगा। अक्सर उसे अपने मित्रों की याद आती और उसकी आँखों से आँसू गिरने लगते, टप टप टप टप! जितने अधिक उसकी आँखों से आँसू गिरते उतनी ही उसकी आँखें छोटी होती जातीं। कुछ दिनों के बाद उसके आँसुओं के हीरे बन गए। हीरों का प्रकाश गुफा से बाहर दूर-दूर तक फैल गया।
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एक दिन जब परियाँ अपनी रानी से मिलने परीलोक जा रही थीं, तो उन्होंने गुफा से प्रकाश बाहर आते देखा। वे गुफा के पास आईं तो प्रकाश से उनकी आँखें खुल नहीं पाईं। इतने में उन्हें पीलू हाथी का सिसकना सुनाई दिया। वे चीखीं, ‘पीलू दादा, पीलू दादा ।’ हाथी आश्चर्यचकित होकर गुफा से बाहर निकला। परियों को देखकर वह खुशी से नाच उठा, ‘प्यारी मित्रों मैं तुम लोगों के बिना बहुत दुःखी था ।’ परियाँ हाथी की पीठ पर बैठ गईं और उसे बहुत प्यार किया। उन्होंने हाथी को राजी कर लिया कि वह फिर घाटी के पास अपने पुराने घर में ही रहेगा। अब हाथी बहुत खुश हो गया। वह गुफा से हीरे निकालकर लाया। उसने परियों को एक-एक हीरा दिया और बचे हीरे रानी के लिए भिजवा दिए।