शैतान के तीन सोने के बाल कहानी
बहुत पुराने समय की बात है। एक बहुत गरीब औरत ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया। उस बच्चे के हाथ पर नीले रंग का एक बड़ा सा दाग था, जो पंडितों के अनुसार उसे भाग्यवान् बना रहा था। उसके जन्म के साथ ही उस गाँव के ज्ञानी-ध्यानी पंडित ने भविष्यवाणी की कि यह बच्चा चौदह साल की उम्र में एक राजकुमारी से विवाह करेगा और खुद राज करेगा। एक दिन ऐसा हुआ कि एक राजा शिकार खेलते हुए रास्ता भूलकर उसी गाँव में आया, जहाँ उस बालक का जन्म हुआ था। गाँव वालों ने उस राजा को पहचाना नहीं, क्योंकि उन लोगों ने कभी उसे देखा ही नहीं था। गाँव के एक बूढ़े ने बातों-बातों में राजा को बताया कि कुछ दिनों पहले उनके गाँव में एक ऐसा बच्चा पैदा हुआ है, जो चौदह साल की अवस्था में इस राज्य के राजा की लड़की से विवाह करेगा। राजा को यह बात सुनकर बहुत गुस्सा आया, क्योंकि कुछ दिन पहले उसके घर में एक बेटी का जन्म हुआ था। राजा वैसे भी बहुत ही घमंडी और कठोर हृदय का व्यक्ति था।
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राजा ने सोचा कि क्यों न मैं उस गरीब औरत को कुछ धन देकर इसका बच्चा इससे ले लूं और इसका काम तमाम कर दें, तो न ही यह भाग्यवान् बच्चा रहेगा और न ही मेरी राजकुमारी से विवाह कर पाएगा। वह गाँव के उस बूढ़े से बोला, ‘बाबा, तुम मुझे उस औरत के पास ले चलो। वह उस बच्चे को ठीक ढंग से नहीं पाल पाएगी। मैं उस बच्चे को अच्छे ढंग से पालकर बड़ा करूँगा।’
बूढ़ा उस राजा को उस भाग्यवान् बच्चे की माँ के पास ले गया। राजा ने उससे अपना बच्चा देने की विनती की और बोला, ‘तुम बहुत गरीब हो। इस बच्चे को कैसे पाल सकोगी? यह बच्चा मुझे दे दो, मैं इसे बहुत अच्छी तरह पालूँगा।’
वह गरीब औरत उसे अपना बच्चा देने से इनकार करती रही। तब राजा ने उसे बहुत सा धन दिया और बोला, ‘इस धन से तुम अपना पेट पालना और जब यह तुम्हारा भाग्यवान् बेटा बड़ा हो जाएगा तो खुद ही तुम्हारे पास आ जाएगा।’
गरीब माँ ने सोचा, चूँकि यह बहुत ही भाग्यशाली बच्चा है इसीलिए यह अमीर आदमी इसे लेने मेरे घर आ पहुँचा है। शायद यही ईश्वर की इच्छा है। बहुत सोच-विचार के बाद उस गरीब औरत ने अपना बच्चा राजा को दे दिया। राजा ने उस बच्चे के लिए एक लकड़ी का संदूक खरीदा और उस संदूक में डालकर बहते हुए पानी में छोड़ दिया। उसने सोचा कि दम घुटने से बच्चा इस संदूक के अंदर ही मर जाएगा। वह यह सोचकर मन-ही-मन बहुत खुश हो रहा था कि उसने अपनी प्यारी सी बेटी को उस अनचाहे पति से बचा लिया।
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मारनेवाले से बचानेवाला बड़ा होता है। यही उस बच्चे के साथ भी हुआ। वह लकड़ी का संदूक बहते-बहते एक पनचक्की में जाकर अटक गया। उस पनचक्की पर काम करनेवाले नौकर ने जब वह लकड़ी का बक्सा देखा तो बहुत खुश हुआ, उसने सोचा कि उस बक्से में जरूर ढेर सारा धन होगा। उसने पानी में घुसकर इस संदूक को बाहर निकाला। जब उसने संदूक को खोला तो देखा कि गंदे से कपड़े पहने एक बच्चा उसमें सो रहा था।
नौकर ने सोचा कि यह बच्चा मेरे किस काम का। क्यों न मैं इस बच्चे को पनचक्की के मालिक के पास ले जाऊँ। वह जरूर इसे अपने पास रख लेगा, क्योंकि उसका अपना कोई बच्चा नहीं है। ऐसा सोचकर वह नौकर उस बच्चे को अपने मालिक के पास ले गया। पनचक्की का मालिक उस बच्चे को देखकर बहुत खुश हुआ। उसने सोचा कि शायद ईश्वर ने उसकी पत्नी की प्रार्थना सुन ली और इस बच्चे को उसके पास भेज दिया। उन दोनों पति-पत्नी ने बड़े प्यार और लगन से उस बच्चे को पालना शुरू किया। जैस-जैसे कह बच्चा बड़ा होता गया उसके चेहरे पर तेज आता गया। उसे कोई भी देखता तो देखता ही रह जाता।
एक दिन एक घटना ऐसी घटी, जिसने उस बच्चे के जन्म के समय की भविष्यवाणी को सच्चा सिद्ध कर दिया। राजा किसी काम से उसी रास्ते से बाहर जा रहा था, जिस रास्ते पर वह पनचक्की थी। रास्ते में अचानक बहुत बड़ा तूफान आ गया, तो राजा को उसी पनचक्की के पास रुकना पड़ा। राजा ने उस सुंदर से युवक को दुकान पर बैठे देखा तो उस पनचक्की के मालिक से पूछा, ‘क्या यह तुम्हारा बेटा है? यह तो बहुत ही सुंदर है।’ चक्की का मालिक बोला, ‘यह मेरा बेटा ही है, क्योंकि हमने ही इसे पालपोसकर बड़ा किया है। आज से करीब चौदह साल पहले यह बच्चा हमें एक लकड़ी के संदूक में मिला था।’ राजा को पुरानी बातें एकदम ताजा हो गई। उसे चक्की के मालिक की बात सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ कि वह बच्चा, जिसे वह अब तक मरा हुआ समझ रहा था, अभी तक जिंदा है। उसने उस लड़के को खत्म करने की तरकीब फिर सोची। वह पनचक्की के मालिक से बोला. ‘क्या आप इस लड़के को मेरा एक काम करने की आज्ञा दे सकते हैं? मैं रानी के पास एक पत्र भिजवाना चाहता हूँ। यह पत्र बहुत ही जरूरी है। मैं इस काम के लिए इसे सोने के दो सिक्के दूंगा।’ लड़के ने फौरन ‘हाँ’ कर दी और चक्की का मालिक भी उसे भेजने के लिए तैयार हो गया। राजा ने झट से अपनी रानी को एक पत्र लिखा। उसने लिखा, ‘जैसे ही यह लड़का तुम्हारे पास मेरा यह पत्र लेकर पहुंचे, तुम इसे मरवा देना और महल से दूर दफना भी देना। यह सबकुछ मेरे वापस आने से पहले हो जाना चाहिए।’ इतना लिखने के बाद उसने मुहरबंद वह पत्र उस लड़के को दे दिया।
लड़का उस पत्र को लेकर राजमहल की ओर चल दिया। वह आज तक अपने घर से कहीं बहुत दूर नहीं गया था। अतः राजमहल का रास्ता नहीं ढूँढ़ सका और जंगल में ही भटकने लगा। शाम ढल चुकी थी, तभी अँधेरे में उसे दूर से रोशनी आती दिखाई दी। वह दौड़कर उस रोशनी की तरफ गया तो देखा कि वहाँ पर एक छोटा सा कच्चा घर था। उस घर में कोई दरवाजा नहीं था। जब वह उस घर में घुसा तो उसने देखा कि एक बूढ़ी औरत आग जलाए, बिलकुल अकेली बैठी है। वह औरत उस लड़के को अपने सामने देखकर डर गई। उसने लड़के से पूछा, ‘बेटा, तू कहाँ से आ रहा है और तुझे कहाँ जाना है?’ लड़के ने जवाब दिया, ‘मैं पास के गाँव की पनचक्की से आ रहा हूँ और रानी माँ को यह खत देने जा रहा हूँ। पर मैं इस जंगल में अपना रास्ता भूल गया हूँ। रास्ता ढूँढ़ते-ढूँढ़ते शाम हो गई। अँधेरे में मुझे यही घर दिखाई दिया। इसलिए मैं रात गुजारने के लिए यहाँ आ गया।’ उस बूढ़ी औरत को उस लड़के पर बहुत दया आई, क्योंकि वह डाकुओं के ठहरने की जगह थी और वह बूढ़ी औरत उन डाकुओं की नौकरानी थी। उसे डर था कि अगर डाकुओं ने उसे देख लिया तो उसे मार डालेंगे। लड़के को यह जानकर पहले तो कुछ डर लगा कि वह डाकुओं के घर में घुस गया है, पर अँधेरे में कहीं और जाना भी आसान काम नहीं था। और दिन भर चलते रहने के कारण वह बहुत थक चुका था, सो उसे बहुत जोरों की नींद आ रही थी। वह उस बुढ़िया के कहने पर घर के एक कोने में चुपचाप जमीन पर सो गया। आधी रात के बाद जब डाकू उस घर में आए तो किसी और को अपने घर में सोता देखकर अपनी नौकरानी पर बहुत गुस्सा करने लगे। बूढ़ी नौकरानी ने उन्हें सारी बात बता दी और वह चिट्ठी भी डाकुओं के सरदार के हाथ पर रख दी जो उस लड़के ने उसे दिखाई थी। राजा की मोहर देखकर उन डाकुओं को उस चिट्ठी पर कुछ शक हुआ। सरदार ने बड़ी सावधानी से उस चिट्ठी को खोलकर पढ़ा तो सोते हुए उस लड़के पर उसे बहुत तरस आया। उसने उस चिट्ठी को फाड़ दिया और एक दूसरी चिट्ठी उसमें रख दी। उस चिट्ठी में लिखा था, ‘जैसे ही यह लड़का राजमहल में पहुँचे, तुम इस लड़के से अपनी राजकुमारी का विवाह कर देना। यह काम मेरे वापस आने से पहले ही पूरा हो जाना चाहिए।’
यह खत उन्होंने उस लड़के के सामने रख दिया और सुबह होने से पहले ही डाकू वहाँ से चले गए। सुबह जब वह लड़का सोकर उठा तो उस बूढ़ी ने उसे कुछ जलपान कराया।
फिर वह लड़का राजमहल की ओर चल पड़ा। राजमहल पहुँचकर उसने वह खत रानी माँ तक पहुँचा दिया। रानी ने जब खत पढ़ा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि राजा ने यह कैसी आज्ञा दी है। एक अनजान लड़के से वह अपनी राजकुमारी का विवाह कर दे। खत पर राजा की मोहर लगी हुई थी। अतः यह कोई धोखा भी नहीं हो सकता। राजा के वापस आने से पहले ही उसे अपनी बेटी का विवाह इस लड़के से करना था। रानी ने लड़के को अपने पास बुलवाया, उसका भोला-भाला और सुंदर चेहरा उसे बहुत पसंद आया और उसने अगले ही दिन उससे अपनी बेटी का विवाह कर दिया।
लड़का राजकुमारी के साथ सुख से उस महल में ही रहने लगा। कुछ महीनों बाद राजा वापस अपने राजमहल में आया तो उस लड़के के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक था, पर उसे जब यह पता लगा कि रानी ने राजकुमारी का विवाह उसी लड़के से करवा दिया है तो उसे बहुत गुस्सा आया। जिस बात को वह नहीं होने देना चाहता था, उसकी पत्नी ने वैसा ही कर दिया। उसने अपनी पत्नी से वह खत माँगा। राजा ने उसमें उस लड़के से राजकुमारी के विवाह की बात लिखी देखकर हतप्रभ रह गया। उसे लड़के पर शक हुआ कि वह पढ़ा-लिखा है, जरूर रास्ते में खत बदल दिया होगा। उसने लड़के को अपने पास बुलवाया और उसे सच्चाई बताने की आज्ञा दी। लड़का बोला, ‘हे राजन्! मुझे कुछ नहीं पता कि इस खत में आपने क्या लिखा था, क्योंकि मैं तो इसे ऐसा ही लेकर आ गया। हाँ, जंगल में मैंने एक पुराने घर में रात जरूर गुजारी थी, क्योंकि मैं राजमहल का रास्ता नहीं ढूँढ़ पाया था और जंगल में भटक गया था।’
राजा को उस लड़के की बात पर विश्वास नहीं हुआ। वैसे भी राजा को उस लड़के से बहुत नफरत थी। वह नहीं चाहता था कि उसकी बेटी से शादी करने के बाद वह इस राज्य का राजा बने। वह लड़के से बोला, ‘मेरी गैरहाजिरी में रानी ने मेरी बेटी की शादी तुझ कंगाल से कर दी है, पर मैं इस शादी को तब तक अपनी सहमति नहीं दूंगा जब तक तू मुझे शैतान के तीन सोने के बाल नहीं लाकर देगा। जब तू ये तीन सोने के बाल मुझे देगा, तभी सही मायने में उसका पति बन पाएगा।’
राजा ने ऐसी असंभव शर्त इसलिए रखी थी कि तीन सोने के बाल ढूँढ़ते-ढूंढ़ते ही यह लड़का कहीं मर-खप जाएगा। इस प्रकार उसे इस लड़के से अपने आप छुटकारा मिल जाएगा। अब लड़के के आगे राजा की आज्ञा का पालन करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था, क्योंकि अगर वह राजा की आज्ञा का उल्लंघन करेगा तो भी राजा उसे मरवा देगा। इससे अच्छा है कि बाहर जाकर ढूँढ़ने पर शायद वह तीन सोने के बाल लाने में सफल हो जाए। वह अगले दिन मुँहअँधेरे ही शैतान के सोने के बाल ढूँढ़ने निकल पड़ा। चलते-चलते वह एक बड़े शहर में पहुँचा। शहर की सीमा पर एक बड़ा सा गेट था, जिसपर हथियारबंद सिपाही पहरा दे रहा था। सिपाही ने उस लड़के से पूछा, ‘यहाँ तुम्हारा क्या काम है? क्या तुम कुछ समझते और जानते हो?’
लड़का बोला, ‘मैं सबकुछ समझता और जानता हूँ।’
सिपाही बोला, ‘अगर तुम सबकुछ जानते हो तो हमपर भी एक मेहरबानी करो। हमें भी बताओ कि शहर की सीमा पर यह जो कुआँ है, पहले इससे मीठा पानी निकलता था, पर अब इसमें पानी ही नहीं है। यह सूख गया है, क्यों?’
लड़का बोला, ‘अभी तुम थोड़ा सब्र करो। जब मैं अपना काम खत्म करके वापस आऊँगा तो तुम्हें बताऊँगा।’ इतना कहकर वह गेट से निकलकर आगे गया। उसके बाद वह दूसरे शहर के बड़े से गेट के पास पहुँचा तो वहाँ पर भी एक हथियारबंद सिपाही पहरा दे रहा था। उस सिपाही ने भी उस लड़के से पहलेवाले सिपाही जैसा सवाल पूछा, तो लड़के ने उसे भी वही जवाब दिया।
सिपाही बोला, ‘अगर तुम सबकुछ समझते और जानते हो, तो कृपा करके मुझे इतना बताओ कि इस शहर की सीमा पर जो सेब का पेड़ लगा है, उसमें पहले सोने के सेब लगते थे, पर अब यह पूरी तरह सूख गया है, अब इसमें पत्तियाँ भी नहीं लगती। ऐसा क्यों?’
लड़का बोला, ‘थोड़ा इंतजार करो। अपना काम पूरा करके आने पर मैं इसका जवाब तुम्हें बताऊँगा।’ इतना कहकर वह आगे चल दिया और चलते-चलते तीसरे शहर की सीमा पर पहुंचा, तो वहाँ पर एक बड़ी सी नदी थी, जिसमें एक छोटी सी नाव थी और एक नाविक उसपर बैठा था, नाविक ने उससे पूछा, ‘तुम यहाँ क्यों आए हो और यहाँ के बारे में क्या समझते-जानते हो?’
लड़का बोला, ‘मैं सबकुछ जानता हूँ।’ नाविक बोला, ‘अगर तुम सबकुछ समझते और जानते हो तो कृपा करके मुझे बताओ कि आने-जाने के इस काम से मुझे छुटकारा कैसे मिलेगा?’
लडका बोला, ‘इस सवाल का जवाब मेरे वापस आने पर तुम्हें जरूर मिलेगा, पर पहले तुम मुझे नदी पार करवाओ।’
नाविक ने उसे अपनी नाव पर बैठाकर दूसरे किनारे पर छोड़ दिया। जैसे ही वह नदी के दूसरे किनारे पर गया, उसे वहाँ नीचे की ओर जानेवाला कच्चा और अँधेरा सा रास्ता दिखाई दिया। वह उसी रास्ते पर चल पड़ा। काफी नीचे पहुँचने पर उसे एक बूढ़ी औरत आँगन में बैठी हुई दिखाई पड़ी। जैसे ही उसने उस घर में प्रवेश किया तो उस बूढ़ी औरत ने उससे पूछा, ‘अरे बच्चे, तू कौन है? और यहाँ पर क्यों आया है? तुझे पता नहीं कि यहाँ पर शैतान रहता है?’
लड़का बोला, ‘मैं ठीक जगह पर आ गया हूँ। अब तुम मेरी सहायता करो। मुझे शैतान के सिर के तीन सोने के बाल चाहिए, नहीं तो मुझे मेरी पत्नी वापस नहीं मिलेगी।’
बूढ़ी औरत बोली, ‘बेटा, यह तो तेरी बहुत बड़ी माँग है। इसे पूरा करना इतना आसान नहीं है। जब राक्षस घर वापस आकर तुझे यहाँ देखेगा तो कच्चा ही चबा जाएगा। इसलिए मुझे ही तेरी रक्षा करनी पड़ेगी।’ उस बूढ़ी औरत को लड़के पर तरस आ गया। उसने चींटा बनाकर उसे अपनी स्कर्ट की चुन्नटों में छुपा लिया।
लड़का बोला, ‘बूढ़ी माँ, मुझे आपसे तीन सवालों के जवाब भी पूछने हैं। पहला सवाल है, एक कुंआ, जिसमें से पहले शरबत की तरह मीठा पानी निकलता था, आजकल क्यों सूख गया है? दूसरा सवाल है कि एक सेब का पेड़, जिसपर पहले सोने के सेब लगते थे, अब उसपर पत्ते भी नहीं लगते। वह पेड़ क्यों सूख गया है? तीसरा सवाल है कि एक नाविक को क्यों हमेशा इधर-से-उधर जाना पड़ता है? उसे इससे छुटकारा क्यों नहीं मिलता?’
बूढ़ी धाय माँ बोली, ‘ये तीनों बड़े कठिन सवाल हैं। इन सवालों के जवाब भी हमें राक्षस से ही मिल सकते हैं। मैं तेरे लिए यह कोशिश भी जरूर करूँगी, पर अब तू चुपचाप छुप जा, नहीं तो जिंदा नहीं बच सकता।’
शाम को राक्षस घर पहुँचा। अंदर घुसते ही उसने शोर मचाना शुरू कर दिया, ‘मुझे अपने घर में किसी मनुष्य की गंध आ रही है। आज जरूर कुछ गड़बड़ है। यहाँ कौन आदमी आया था?’ इतना कहकर उसने पूरे घर में झाँककर देखा, पर उसे कोई भी मनुष्य नहीं मिला। उसकी धाय माँ उसपर गुस्सा करने लगी और बोली, ‘अभी कुछ देर पहले ही तो मैंने पूरा घर साफ किया है। मुझे तो यहाँ कोई मनुष्य नहीं दिखाई दिया। लगता है, तेरी नाक में ही मानस-गंध घुस गई है। चुपचाप आराम से बैठ और भोजन कर।’
राक्षस को जब कोई मनुष्य नहीं मिला तो उसे अपनी धाय माँ की बात पर विश्वास करना पड़ा। वह चुपचाप खाना खाकर वहीं जमीन पर बिछी हुई बड़ी सी चटाई पर लेट गया। लेटते ही उसे नींद आ गई। उसकी धाय माँ भी आज उसके पास बिछी दूसरी चटाई पर लेट गई, क्योंकि आज उसे उस राक्षस के बालों से उसके सोने के तीन बाल तोड़ने थे। जब राक्षस नींद में जोर-जोर से खरटि लेने लगा तो धाय माँ ने उसके सिर से सोने का एक बाल उखाड़ लिया। राक्षस दर्द से कराह उठा, ‘ओ माँ! तू यह क्या कर रही है? मेरे बाल क्यों खींच रही है।’
धाय माँ बोली, ‘बेटा, मैंने अभी भयंकर सपना देखा, तो डर के मारे तेरे बाल पकड़ लिये।’ राक्षस बोला, ‘ऐसा कौन सा सपना था, जिससे तू इतना डर गई?’ बूढ़ी धाय माँ बोली, ‘मैंने सपने में देखा कि बाजार वाला कुआँ, जिससे शरबत निकलता था, अब सूखा पड़ा है। इसमें किसका कसूर है?’
राक्षस बोला, ‘इसे सिवाय मेरे कोई नहीं जानता। उस कुएँ के नीचे एक बड़ा सा पत्थर है और उसी पत्थर के नीचे एक बड़ा सा मेढक रहता है। अगर उस बड़े से मेढक को मार दिया जाए तो उस कुएँ से फिर से शरबत निकलना शुरू हो जाएगा।’ इतना कहकर राक्षस फिर जोर-जोर से खरटि भरने लगा।
धाय माँ को जब विश्वास हो गया कि राक्षस पूरी तरह से सो गया है तो उसने उसके सिर से सोने का दूसरा बाल उखाड़ लिया। राक्षस फिर जोर से चीखा, ‘ओ माँ! यह तू क्या कर रही है?’
धाय माँ बोली, ‘बेटा, बुरा मत मान । मैंने फिर से एक अजीब सा सपना देखा था। तभी डर के मारे तेरे बाल मेरे हाथ में आ गए।’
राक्षस ने पूछा, ‘ऐसा कैसा सपना था, जिससे तू इतना डर गई थी?’ बूढ़ी माँ बोली, ‘मैंने सपने में देखा कि उस राज की सीमा पर जो सेब का एक पेड़ है, जिसपर पहले सोने के सेव लगते थे, अब सूख गया है। इसके सूखने का क्या कारण है?’
राक्षस बोला, ‘इस पेड़ की जड़ में एक चूहा रहता है, जो इसकी जड़ों को काटता रहता है। अगर उस चूहे को मार दिया जाए तो वह पेड़ फिर से सोने के सेब देने लगेगा। पर अब तू मुझे अपने सपनों से परेशान मत कर। मुझे चैन से सोने दे।’ इतना कहकर थोड़ी देर बाद वह राक्षस फिर जोर-जोर से खर्राटे लेने लगा।
जैसे ही बूढ़ी माँ को लगा कि राक्षस सचमुच सो गया है, तो उसने तीसरी बार सोने का बाल उखाड़ लिया। अब तो राक्षस गुस्से से आगबबूला हो गया और धाय माँ को खरी-खोटी सुनाने लगा। धाय माँ उसे शांत करने की कोशिश करने लगी, फिर बड़े प्यार से बोली, ‘बेटा, मैं इन अजीब-अजीब सपनों का क्या करूँ। अभी-अभी मैंने फिर से एक अजीब सपना देखा।’ राक्षस बोला, ‘ऐसा कौन सा सपना देखा, जल्दी कह? मुझे जोर से नींद आ रही है।’
बूढी माँ बोली, ‘मैंने सपने में देखा कि मुझसे एक नाविक शिकायत कर रहा था कि उसे हर समय इधर-से-उधर जाना पड़ता है। उसे इससे छुटकारा क्यों नहीं मिलता। इसमें उसका क्या कसूर है?’
राक्षस बोला, ‘वह नाविक मूर्ख है। जिस दिन वह किसी और आदमी के हाथ में अपना चप्पू दे देगा, उसे हर रोज के आने-जाने से छुटकारा मिल जाएगा।’
इतना कहकर राक्षस फिर से अपनी चटाई पर लेट गया और खर्राटे लेने लगा। अब धाय माँ ने उस लड़के को अपनी स्कर्ट से निकाला और उसे तीन सोने के बाल देकर बोली, ‘अपने तीनों सवालों के जवाब तो तू सुन ही चुका है। अब ये ले तीन बाल और तुरंत यहाँ से भाग जा।’
लड़के को असली रूप में करने के बाद धाय माँ ने झटपट उसे घर से बाहर निकाल दिया। लड़के ने हदय से उसको धन्यवाद दिया और अपने ससुर के राज्य की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे फिर वही नाविक और पहरा देते हुए दोनों सिपाही मिले। नाविक ने जब उसे दूसरी ओर उतारा, तो वह लड़का बोला, ‘तुम अपना यह चप्पू किसी और के हाथ में दे देना। तभी तुम्हें इस रोज-रोज के आने-जाने से छुटकारा मिल जाएगा।’
जब सिपाही को उसने उसके प्रश्न का उत्तर बताया तो उसने बहुत सा धन एक गधे पर लादकर उस लड़के को इनाम के रूप में दिया। वह उस धन से लदे हुए गधे को लेकर जब पहले सिपाही के पास पहुँचा, तो उसे भी उसके प्रश्न का उत्तर बताया। उस सिपाही ने भी बहुत सा धन एक गधे पर लादकर उसको इनाम दिया। अब वह सोने के तीन बाल और दो गधों पर ढेर सारा धन लेकर अपने ससुर के पास पहुँचा, तो उसे देखकर राजा हैरान रह गया।
तीनों बाल और धन से भरे हुए दो गधों को देखकर राजा ने उससे पूछा, ‘तुम्हें यह इतना ढेर सारा धन कहाँ से मिला?’ लड़का बोला, ‘मैं नदी के उस पार गया था। वहाँ मुझे बहुत सारा धन मिला। उसमें से कुछ धन मैं अपने साथ ले आया।’ राजा को लालच आ गया। वह लड़के से बोला, ‘क्या मैं भी नदी के उस पार से तुम्हारी तरह कुछ धन ला सकता हूँ?’ लड़का बोला, ‘क्यों नहीं? उस नदी में नाव पर एक नाविक बैठा है, जो अपनी नाव से आपको उस पार ले जाएगा, पर आप उसका चप्पू उससे लेकर नाव को खुद चलाएँगे तो नदी की दूसरी ओर पहुँचकर ढेर सारा धन ले आएँगे।
लालची राजा इतना सुनकर नदी की ओर चल पड़ा। वहाँ सचमुच ही एक छोटी सी नाव पर एक नाविक बैठा था। राजा उस नाविक के पास गया और उसके हाथ से उसका चप्पू लेकर खुद नाव चलाने लगा। अब उस नाविक को रोज के आने-जाने से छुटकारा मिल गया और राजा को उस नाविक की जगह हर समय नाव पर इधर-से-उधर जाने की सजा मिली।