सुकरात का जीवन परिचय-
सुकरात (469 ई. पू.-399 ई. पू.) महान यूनानी दार्शनिक थे। उन्हें पश्चिमी दर्शन का जनक भी कहा जाता है। पश्चिमी सभ्यता के विकास में उनकी अहम भूमिका रही है। प्लेटो सुकरात के शिष्य थे, जो महान दार्शनिक अरस्तू के गुरु थे।
• सूफ़ियों की भाँति साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देते थे और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करते थे। सुकरात के द्वारा कोई भी ग्रंथ नहीं लिखा गया। सुकरात के बारे में हमें जानकारी प्लेटो की रचनाओं से मिलती है। प्लेटो की रचनाओं का मुख्य वक्ता सुकरात है।
• कई अन्य दार्शनिकों की भांति सुकरात भी ग्रंथ नहीं लिखकर, शिष्यों को शिक्षा देना पसंद करते थे।
• सुकरात की विधि को व्यंग्य या प्रश्नावली विधि भी कहा जाता है।
• सुकरात सीधा जवाब नहीं देकर प्रश्नोत्तर के जरिए सवाल के जवाब ढूंढते थे।
• तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष सुकरात पर लगाया गया और इसके लिए उन्हें मृत्युदंड मिला।
सुकरात कौन था , सुकरात का परिचय
सुकरात का जन्म प्राचीन एथेन्स (यूनान) प्रान्त के एक गांव में हुआ। सुकरात के समय में स्पार्टा और एथेंस के मध्य संघर्ष चल रहा था।
उनके पिता सोफ्रोनिसकस संगतराश(कारीगर) थे और उनकी माँ दाई का काम करती थी। सुकरात ने अपना ज्यादातर जीवन एथेंस में व्यतीत किया था। अन्य लोगों की तरह उन्होंने मातृभाषा, यूनानी कविता, गणित, ज्यामिति और खगोल विज्ञान की पढाई की थी। प्रारंभ में सुकरात ने अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाया और बाद में वे सेना में भर्ती हो गए। जो एक युद्ध में वीरतापूर्वक लड़े भी थे।
• सुकरात के जीवनकाल में एथेंस में भारी राजनीतिक उथल-पुथल मची हुए थी। क्योंकि देश को पेलोपोनेशियन युद्ध में भारी हार से अपमानित होना पड़ा था। इससे लोगों में राष्ट्रीयता की भावना और वफादारी गहरा गयी थी। लेकिन सुकरात देशवासियों की परीक्षा लेते थे। वो किसी सम्प्रदाय विशेष के पक्ष के खिलाफ थे और स्वयं को विश्व का नागरिक मानते थे।
• सुकरात अपनी वार्ताओं के कारण ही अपने समय के सबसे अधिक ज्ञानी व्यक्ति माने जाते थे। कुछ समय तक सुकरात एथेंस की काउंसिल के सदस्य भी रहे थे। जहां उन्होंने पूरी इमानदारी एवं सच्चाई के साथ काम किया और उन्होंने कभी भी गलत का साथ नहीं दिया। चाहे अपराधी हो या निर्दोष, उन्होंने किसी भी व्यक्ति के साथ गलत नहीं होने दिया।
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सुकरात पर मुक़दमा–
सुकरात ने यूनान में नवयुवकों को तार्किक ज्ञान प्राप्त करने की प्रेरणा दी। जिससे सुकरात के विचारों से एथेन्स का राजतंत्र घबरा गया और उन पर देशद्रोह का इल्जाम लगा कर गिरफ्तार कर लिया गया। इस कारण सुकरात की गतिविधियों से क्रोधित होकर तत्कालीन शासक वर्ग ने सुकरात पर मुकदमा चलाया और उसे मृत्युदंड दे दिया।
• सुकरात पर मुख्य रूप से तीन आरोप लगाये गए थे-
प्रथम आरोप:- यह था कि वह मान्य देवताओं की उपेक्षा करता है और उनमें विश्वास नहीं करता।
द्वितीय आरोप:- उसने राष्ट्रीय देवताओं के स्थान पर कल्पित देवता को स्थापित किया है।
तृतीय आरोप:- वह नगर के नवयुवकों को पथभ्रष्ट कर रहा है।
• जब सुकरात पर मुक़दमा चल रहा था, तब उसने अपना वकील करने से मना कर दिया और कहा कि
“एक व्यवसायी वकील पुरुषत्व को व्यक्त नहीं कर सकता है।” सुकरात ने अदालत में कहा- “मेरे पास जो कुछ था, वह मैंने एथेंसवासियों की सेवा में लगा दिया। मेरा उद्देश्य केवल अपने साथी नागरिकों को सुखी बनाना है। यह कार्य मैंने परमात्मा के आदेशानुसार अपने कर्तव्य के रूप में किया है। परमात्मा के कार्य को आप लोगों के कार्य से अधिक महत्व देता हूँ। यदि आप मुझे इस शर्त पर छोड़ दें कि मैं सत्य की खोज छोड़ दूँ, तो मैं आपको धन्यवाद कहकर यह कहूंगा कि मैं परमात्मा की आज्ञा का पालन करते हुए अपने वर्तमान कार्य को अंतिम श्वास तक नहीं छोड़ सकूँगा। तुम लोग सत्य की खोज तथा अपनी आत्मा को श्रेष्ठतर बनाने की कोशिश करने के बजाय सम्पत्ति एवं सम्मान की ओर अधिक ध्यान देते हो। क्या तुम लोगों को इस पर लज्जा नहीं आती।”
” सुकरात ने यह भी कहा कि “मैं समाज का कल्याण करता हूँ, इसलिए मुझे खेल में विजयी होने वाले खिलाड़ी की तरह सम्मानित किया जाना चाहिए।”
सुकरात को मृत्युदंड:-
सुकरात का भाषण सुनकर न्यायाधीश नाराज हो गए। क्योंकि सुकरात ने न्यायालय के प्रति अवज्ञा दिखाई थी। न्यायाधीशों का अंतिम फैसला था कि सुकरात को मृत्यु दंड दिया जाए और उनको विष का प्याला पीना होगा।
सुकरात के दोस्तों ने गार्ड को रिश्वत देकर अपनी ओर मिला लिया। उन्होंने सुकरात को इसके लिए राजी करने का प्रयास किया कि वह जहर का प्याला पीने की जगह एथेन्स छोड़कर कहीं और भाग जाए।
• लेकिन सुकरात ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वह मौत से नहीं डरता है और कहा कि अगर वही कानून का पालन नहीं करेगा, जो सत्य और न्याय की बात करता है, तो कानून और न्याय पर से जनता का विश्वास उठ जाएगा। उन्होंने महसूस किया कि निर्वासन से बेहतर है कि वह एथेंस के एक वफादार नागरिक होने की मिसाल कायम करे, जो उसके कानूनों का पालन करने के लिए तैयार है।
• विषपान करते हुए सुकरात जरा भी अवसादग्रस्त नहीं थे । वे अपने लिए रोते हुए लोगों को शान्त कर रहे थे । विष का प्रभाव धीरे-धीरे सुकरात के जीवन को शून्य बना रहा था। इस तरह ई.पू. 399 में वे इस संसार को हमेशा के लिए अलविदा कह गए।
सुकरात के विचार और सिद्धांत:-
- द्वंद्वात्मक सिद्धांत– जिसमें वाद विवाद के माध्यम से मूल प्रश्नों और समस्याओं को हल करने का प्रयास किया जाता है। द्वंद्वात्मक प्रणाली का आगे चलकर हीगल तथा कार्ल मार्क्स ने विशेष रूप से प्रयोग किया।
- कार्य की प्रयोजनमूलक व्याख्या:- कार्य कारण संबंधों की व्याख्या करने के लिए सुकरात कार्य की प्रयोजनमूलक व्याख्या प्रस्तुत करता
- आकृति सिद्धांत:- के माध्यम से सुकरात ने सत्य की प्राप्ति के लिए ज्यामितीय दृष्टिकोण को स्पष्ट किया।
सुकरात ने अपने नीति शास्त्र के अंतर्गत तीन महत्वपूर्ण विचार दिए-
1 . सद्गुण ही ज्ञान है (वर्च्यू इज नॉलेज)
2 . सद्गुण एक है।
3. बुराई अनैच्छिक है।
इसलिए सुकरात ने घोषणा की कि “आत्मज्ञान प्राप्त करो”।
सुकरात :- “मैं एक बात जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता।”
• सुकरात ने यह मान्यता प्रतिपादित की कि नागरिकों को विधि अथवा कानून का पालन करना चाहिए। सुकरात का विश्वास था कि अगर कोई सजा या दंड विधि या कानूनी तरीके से दिया गया है (चाहे वह अन्याय पूर्ण क्यों नहीं हो) नागरिकों को पालन करना चाहिए। इसीलिए सुकरात ने झूठे मुकदमे से मिली कानूनी सजा को स्वीकार किया था।
• सुकरात अपनी विशिष्ट द्वंद्वात्मक शैली में ‘सत्य की खोज’ का प्रयास करता है, इसलिए महात्मा गांधी ने सुकरात को सबसे बड़ा सत्याग्रही कहा।
• सुकरात के विचारों में सृष्टि के मूल प्रश्नों जैसे- जगत, जीव, ब्रह्मांड आदि के बारे में विचार किया जाता है। इसलिए इसे सोक्रेटिक मेथड कहा जाता है।
• सोक्रेटिक आयरनी– मैं एक बात जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता।
• सुकरात कभी भी किसी प्रश्न का एक उत्तर देने की बजाय उस सवाल के सभी संभावित उत्तरों के ऊपर चर्चा करते थे। वह कभी भी यह दावा नहीं कर रहे थे कि मुझे इसका उत्तर पता है ।
सुकरात के प्रेरक प्रसंग:-
1. सफलता और सुकरात –
एक बार एक नौजवान लड़का महान दार्शनिक सुकरात के पास आया और उनसे पूछा, “सफलता का रहस्य क्या है?”
सुकरात ने उससे कहा, “मैं तुम्हें कल उत्तर दूंगा. कल तुम मुझे नदी के किनारे मिलो।”
दूसरे दिन वो लड़का सुकरात से नदी के किनारे मिला. सुकरात उसे लेकर नदी में आगे बढ़ने लगे। वे दोनो नदी में तब तक आगे बढ़ते रहे, जब तक नदी का पानी उनके गले तक न आ गया। वहाँ पहुंचकर अचानक ही सुकरात ने उस लड़के का सिर पकड़कर पानी में डुबो दिया। पानी के भीतर साँस लेने में अक्षम होने के कारण वह लड़का पानी से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा। लेकिन सुकरात की मजबूत पकड़ के सामने उसका यह संघर्ष विफल रहा।
सुकरात ने उसे तब तक पानी में डुबोये रखा, जब तक वह नीला न पड़ गया। उसे नीला पड़ता देख सुकरात ने उसका सिर पानी से बाहर निकाला। पानी से बाहर निकलते ही वह लड़का हांफते हुए तेजी से साँस लेने लगा।
उसे ऐसा करते देख सुकरात ने पूछा, “ये बताओ, जब तुम पानी के भीतर थे, तब सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”
उस लड़के ने उत्तर दिया, “साँस लेना।”
सुकरात ने कहा, “यही सफलता का रहस्य है। जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह चाहोगे, जितना साँस लेना, तो वो तुम्हे मिल जाएगी। इसके अतिरिक्त सफलता का कोई और रहस्य नहीं है।”
2. सुकरात और आईना-
यूनान के महान दार्शनिक सुकरात सुदर्शन नहीं थे।उनका चेहरा कुरूप था। एक दिन अपने कक्ष में बैठकर वह आईने में अपना चेहरा देख रहे थे, तभी उनके एक शिष्य ने कक्ष में प्रवेश किया।
सुकरात को आईना देखते हुए पाकर शिष्य के होंठों पर मुस्कराहट तैर गई। यह देख सुकरात समझ गए कि उसके मस्तिष्क में क्या चल रहा है। उन्होंने उससे कहा, “तुम्हारे मुस्कुराने का अर्थ मैं समझ गया हूँ शिष्य। तुम अवश्य सोच रहे हो कि मुझ जैसा कुरूप व्यक्ति आईना क्यों देख रहा है?”
• शिष्य अपने कृत्य पर लज्जित हुआ और सुकरात से क्षमा मांगने लगा। तब सुकरात ने उससे पूछा, “जानना चाहते हो कि मैं आईना क्यों देखता हूँ?”
शिष्य ने कुछ उत्तर नहीं दिया, वह अब भी लज्जित था।
लेकिन सुकरात अपनी लय में बोलते चले गये, “मैं रोज़ आईने में अपनी कुरूपता के दर्शन करता हूँ और सोचता हूँ कि जीवन में सर्वदा सद्कर्म करूं, ताकि मेरे सद्कर्म मेरी कुरूपता को ढक सके।”
शिष्य सुकरात के विचार जानकर बहुत प्रभावित हुआ। किंतु उसके मन में एक शंका उठ खड़ी हुई। उसके निवारण के लिए उसने पूछा, “गुरूजी, फिर सुंदर लोग आईना क्यों देखते है? उन्हें तो इसकी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।”
सुकरात ने उत्तर दिया, “ऐसा नहीं है, सुंदर लोगों को आईना अवश्य देखना चाहिए और अपना सुंदर मुख देखकर यह सोचना चाहिए कि जितने सुंदर वे हैं उतने ही सुंदर और भले कर्म वे करें। ताकि बुरे कर्म उनकी सुंदरता को ढक न सकें और अपने कर्मों के कारण वे कुरूप न कहलाये जाएँ।”
सुकरात का उत्तर सुनकर शिष्य की शंका का समाधान हो गया और साथ ही उसके मन में अपने गुरु के प्रति मान और बढ़ गया।
मित्रों शारीरिक सुंदरता से कहीं बढ़कर मन और विचारों की सुंदरता होती है। इसलिए अच्छे मन से सर्वदा सद्कर्म करना चाहिए।
3. सुकरात और ज्योतिषी-
यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात एक बार अपने शिष्यों के साथ किसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा में व्यस्त थे। उसी समय एक ज्योतिषी घूमता हुआ वहां आ पंहुचा। उसका ऐसा दावा था कि वह चेहरा देखकर व्यक्ति के बारे में बता देता है। सुकरात और शिष्यों के सामने भी उसने यही दावा किया।
सुकरात अच्छे दार्शनिक थे, लेकिन वे बदसूरत थे पर लोग उनके अच्छे विचारों के कारण बहुत पसंद करते थे। ज्योतिषी सुकरात के चेहरे को देखकर कहने लगा, इसके नथुनों की बनावट बता रही हैं कि इस व्यक्ति में क्रोध की भावना बहुत प्रबल हैं।
यह सुनकर सुकरात के शिष्य नाराज हो गए, परन्तु सुकरात ने अपने शिष्यों को रोक कर ज्योतिषी को अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया। ज्योतिषी ने आगे कहा, इसके माथे और सिर की आकृति के कारण यह निश्चत रूप से लालची होगा। इसकी ठोड़ी की रचना कहती है कि यह बिलकुल सनकी हैं। इसकी होठों और दांतों की बनावट के अनुसार यह व्यक्ति सदैव देशद्रोह करने के लिए प्रेरित रहता है।
यह सुनकर सुकरात ने धन्यवाद दिया और उसे वापस भेज दिया। यह देखकर सुकरात के शिष्य भौचक्के रह गये। सुकरात ने शिष्यों की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा कि सत्य को दबाना ठीक नहीं हैं।
ज्योतिषी ने जो कुछ बताया वे सभी दुर्गुण मेरे अन्दर है। मैं उन्हें स्वीकार करता हूँ, पर ज्योतिषी से यह भूल हुई है, उसने मेरी विवेक शक्ति पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। मैं अपनी विवेक शक्ति से इन सभी दुर्गुणों पर अंकुश लगाये रखता हूँ। ज्योतिषी शायद ये बताना भूल गये हैं।