सुकरात की शिक्षाएँ क्या थीं?
यह जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि ऑरकल ओफ़ ड़ेल्फ़ी के समक्ष सुकरात ने स्वयं हीं कहा कि वे कुछ भी नहीं जानते, तब ड़ेल्फ़ी ने कहा कि इसी वजह से वे दुनिया के सब से बुद्धिमान व्यक्ति हैं।
शिक्षा ग्रहण करने से पहले अपने अज्ञान के विषय में चैतन्य होना आवश्यक है, नहीं तो ज्ञान वस्तुतः एक रेगिस्तान की तरह हो सकता है , जहाँ जानने का भ्रम रेगिस्तान में मृगमरीचिका जैसा हो, दूर से तो पानी का अथाह भंडार जैसा दिखे और नज़दीक जाने पर वहाँ रेत के अतिरिक्त कुछ भी न हो।
तब प्रश्न यह उठता है कि ज्ञान का वास्तविक अर्थ क्या है?!
वह यह है कि ज्ञान के मरीचिका से दूर रहना, अंतिम बूँद तक अपने भीतर से भ्रमित करने वाले ज्ञान को निकाल फेंकना, और जो बचा वह ज्ञान है, शून्य है या शुद्ध बुद्धि है, प्रज्ञा है।
इसलिए सावधानीपूर्वक सुकरात प्रश्नों के माध्यम से हीं शिक्षा देते थे, जिस से जो ज्ञान का भ्रम है वह छन कर बाहर आ जाए, प्रश्न करने पर सुकरात प्रतिप्रश्न करते थे, उत्तर नहीं देते थे , क्योंकि उत्तर देने का अर्थ है, हाँ भई यही अंत है, अब यह प्रश्न ख़त्म हुआ अब मैं इस विषय को जान गया, जबकि वास्तविकता यह है कि अपने पुराने रेत को नए रेत से भर लिया और कुछ नहीं, पानी तो मिला हीं नहीं।
शायद निरंतर प्रश्न करने की यह विधा हीं हमें ज्ञान के मरीचिका से दूर रख सकती है, और यही सीखने योग्य है।
सुकरात की एक छोटी प्रश्नों की कहानी – सुकरात के विचार
सुकरात एक महान ज्ञानी थे। एक दिन कोई उन्हें देखने आया और उनसे कहने लगा:
– क्या आप जानते हैं कि, मैंने आपके दोस्त के बारे में क्या सुना है?
– ज़रा रुको – सुकरात ने कहा – इससे पहले कि तुम मुझे मेरे दोस्त के बारे में बताओ, मैं तुम्हारी परीक्षा करना चाहूँँगा, तीन सवालों से।
तीन सवाल? – उस व्यक्ति ने कहाँ।
– दूसरों के बारे में एक बात बताने से पहले यह जान लेना अच्छा है कि आप क्या कहना चाहेंगे? पहली सवाल सच्चाई है। क्या आपने सत्यापित किया है कि जो आप मुझे बताएंगे वह सच है? सुकरात ने पूछा।
– नहीं! मैंने केवल इसके बारे में सुना है …
– बहुत अच्छा। तो आप नहीं जानते कि यह सच है या झूठ। अब मैं आपसे दूसरा सवाल करता हूँ, जो अच्छाई की पुष्टि करेगा। क्या आप मुझे मेरे दोस्त के बारे में कुछ अच्छा बताना चाहते हैं?
– नहीं! बल्कि इसके विपरीत – उसने कहा
– तो तुम मुझे उसके बारे में बुरी बातें बताना चाहते हो और तुम सच भी नहीं जानते। हो सकता है कि आप अभी भी परीक्षा पास कर सकते हैं, तीसरी सवाल अभी बाकि है, जो आपकी बात की उपयोगिता को दर्शायेगा। क्या यह जानना मेरे लिए मददगार होगा है?
– ज़रुरी नहीं। उसने उत्तर दिया
– तो सुकरात ने फ़ौरन निष्कर्ष निकाला और कहने लगे – जो तुम मुझसे कहना चाहते थे वह न तो सत्य है, न अच्छा, न उपयोगी; आप मुझे क्यों बताना चाहते थे?
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