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Jarevna Mendhaki: Folk Tale in Hindi ज़ारेवना मेंढकी: रूसी लोक-कथा

Jarevna Mendhaki: Folk Tale in Hindi ज़ारेवना मेंढकी: रूसी लोक-कथा

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पुराने ज़ार के राज्य में, मुझे मालूम नहीं कब, एक राजा अपनी पत्नी राजकुमारी के साथ रहा करता था। उनके तीन बेटे थे तीनों नौजवान थे तीनों बहादुर थे इतने कि कोई उनकी बहादुरी का वणन नहीं कर सकता था।

उन तीनों में से जो सबसे छोटा राजकुमार था उसका नाम था इवान ज़ारेविच। एक दिन उनके पिता ने उनसे कहा कि — “मेरे प्यारे बच्चों तुम लोग अपने अपने तीर कमान लो, अपने मजबूत कमान की डोरी खींचो और अपने तीरों को जाने दो। जिसके आँगन में तुम्हारा तीर जा कर पड़ेगा उसी घर की लड़की से तुम्हारी शादी कर दी जायेगी।

सबसे बड़े ज़ारेविच का तीर एक बोयर के घर में जा कर पड़ा जहाँ स्त्रियाँ रहती थीं। दूसरे ज़ारेविच का तीर एक बहुत ही अमीर सौदागर के लाल छज्जे पर जा कर पड़ा जहाँ एक बहुत ही सुन्दर लड़की खड़ी थी।

सबसे छोटे ज़ारेविच इवान का तीर बदकिस्मती से एक दलदल में जा कर पड़ा जहाँ उसे एक टर्राती हुई मेंढकी ने पकड़ लिया।

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इवान ज़ारेबिच अपने पिता के पास आया और वोला — “पिता जी मैं एक मेंढकी से शादी कैसे कर सकता हूँ। क्या वह मेरे बराबर की है? नहीं पिता जी निश्चित रूप से वह मेरे बराबर की नहीं है।”

पिता ने कहा — “चिन्ता मत करो। तुमको तो अब मेंढकी से ही शादी करनी पड़ेगी क्योंकि ऐसा लगता है कि यही तु,म्हारी किस्मत है।”

इस तरह तीनों भाइयों की शादी कर दी गयी। सबसे बड़े बेटे की बोयर की वेटी से दूसरे बेटे की अमीर सौदागर की बेटी से और सबसे छोटे बेटे इवान की एक मेंढकी से।

कुछ समय वाद राज्य के राजा ने अपने तीनों बेटों को फिर बुलाया और कहा — “अपनी अपनी पत्नियों से कहो कि वे कल सुबह को मेरे लिये एक डबल रोटी बना कर रखें।”

इवान घर लौटा तो उसके चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं थी और उसकी भौंहें सिकुड़ी हुई थीं।

मेंढकी ने राजकुमार से बड़े प्यार से पूछा — “टरटर्र । ओ मेरे प्रिय ज़ारेविच इवान, तुम इतने दुखी क्यों हो? क्या आज महल में कोई खराब बात हो गयी है?”

इवान ज़ारेविच बोला — “हाँ खराब बात ही तो हो गयी है। मेरे पिता ज़ार चाहते हैं कि तुम कल सुबह को उनके लिये एक डबल रोटी बनाओ।”

“ज़ारेविच तु,म बिल्कुल चिन्ता न करो। तुम आराम से जा कर सोओ। सुबह का समय काली शाम के समय से ज़्यादा अच्छा सलाहकार होता है।”

अपनी पत्नी की सलाह मान कर ज़ारेविच सोने चला गया। ज़ारेविच के जाने के बाद मेंढकी ने अपनी मेंढकी वाली खाल निकाल दी और अब वह एक बहुत सुन्दर लड़की बन गयी थी। उसका नाम था वासिलीसा।

वह घर के बाहर निकली और उसने आवाज लगायी — “ओ मेरी आयाओ और नौकरानियों तुरन्त आओ और मेरे लिये कल सुबह के लिये एक सफेद डबल रोटी बनाओ। बिल्कुल ऐसी ही डबल रोटी जैसी मैं अपने पिता के शाही महल में खाया करती थी।”

सुबह को जब इवान ज़ारेविच मुर्गे की बाँग के साथ सो कर उठा, और यह तो तुमको मालूम ही कि मुर्गे कभी अपनी बाँग लगाने में देर नहीं करते तो उसकी डबल रोटी तैयार थी।

वह डबल रोटी इतनी बढ़िया थी कि उसका वणन करना मुश्किल था। क्योंकि ऐसी डबल रोटियाँ तो केवल परियों के देश में हीं मिलती हैं। वह दोनों तरफ बहुत सुन्दर सुन्दर मूर्तियों और शहरों और किलों से सजी हुई थी और अन्दर वह बरफ की तरह से सफेद और पंखों की तरह मुलायम थी।

पिता ज़ार उसको देख कर बहुत खुश हुआ और ज़ारेविच को खास धन्यवाद मिला।

ज़ार फिर मुस्कुराते हुए बोला — “अब एक दूसरा काम और है। तुम सब अपनी अपनी पत्नियों से मुझे कल सुबह तक एक एक कालीन बना कर दो।”

ज़ारेविच इवान फिर मुँह लटकाये हुए घर आया तो उसकी मेंढकी पत्नी ने राजकुमार से बड़े प्यार से पूछा — “टरटर्र । ओ मेरे प्रिय ज़ारेविच इवान, तुम इतने दुखी क्यों हो? क्या तुम्हारे पिता उस डबल रोटी को देख कर खुश नहीं हुए?”

इवान ज़ारेविच बोला — “नहीं उससे तो वह बहुत खुश थे पर अब मेरे पिता ज़ार चाहते हैं कि तुम उनके लिये कल सुबह तक एक कालीन बनाओ।”

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“तुम चिन्ता न करो ज़ारेविच और सोने जाओ। सुबह का समय हमारी जरूर ही सहायता करेगा।”

यह सुन कर ज़ारेविच इवान सोने चला गया। मेंढकी फिर से वासिलीसा में बदली और बाहर आ कर ज़ोर से आवाज लगायी — “ओ मेरी प्यारी आयाओ और वफादार नौकरानियों, अब की बार तुम मेरे पास मेरे एक नये काम के लिये आओ। और मेरे लिये एक ऐसा रेशम का कालीन बनाओ जैसे कालीन पर मैं अपने पिता राजा के महल में बैठा करती थी।”

जैसे ही वासिलीसा ने यह कहा कि तुरन्त ही उन्होंने उसके लिये रेशम का कालीन बना दिया।

सुबह को जब मुर्गों ने बाँग दी तब ज़ारेविच इवान जागा और लो वहाँ तो दुनियाँ का सबसे सुन्दर रेशम का कालीन रखा हुआ था। एक ऐसा कालीन जिसका कोई वर्णन नहीं कर सकता था। उस कालीन में चमकीले रेशम के तारों के बीच सोने चाँदी के तार भी बुने हुए थे। और वह कालीन तो बस सिवाय तारीफ के और किसी काबिल था ही नहीं।

ज़ार पिता उस कालीन को देख कर बहुत खुश था और अपने बेटे को इतने सुन्दर कालीन के लिये बहुत धन्यवाद दिया। इसके बाद उसने एक नया हुकुम जारी किया।

अबकी बार वह अपने सुन्दर बेटों की सुन्दर पत्नियों को देखना चाहता था। और इसके लिये उनको उन्हें अगले दिन पेश करना था।

“टरटर्र । प्रिय ज़ारेविच, तुम इतने दुखी क्यों हो? क्या किसी ने तुमको महल में कोई बुरी बात कह दी है?”

“हाँ बुरी बात तो कह दी है। मेरे पिता ज़ार ने हम सबको यह हुकुम दिया है कि हम तीनों अपनी अपनी पत्नियों को उनके सामने ले जा कर पेश करें। अब बताओ कि मैं तुम्हारे साथ कैसे जा सकता हूँ।”

मेंढकी धीरे से टर्रायी और बोली — “यह कोई बहुत बुरा तो नहीं हो सकता पर उससे बुरा भी हो सकता है। ऐसा करो कि तुम अकेले ही जाओ और मैं तुम्हारे पीछे पीछे आऊँगी।

जब तुम ज़ोर की आवाज सुनो तो तुम उससे डर मत जाना बस यही कहना “एक बदकिस्मत मेंढकी एक बदकिस्मत बक्से में आ रही है।”

इवान राजी हो गया हालाँकि उसकी समझ में कुछ नहीं आया। ज़ार के महल में उसके दोनों बड़े भाई अपनी अपनी सुन्दर चमकती हुई खुश बढ़िया कपड़े पहने पत्नियों के साथ पहले आये। दोनों ने आ कर इवान ज़ारेविच का बहुत मजाक बनाया क्योंकि वह तो अकेला ही आया था।

उन्होंने उससे हँसते हुए पूछा — “भाई तुम अकेले क्यों आये हो? अपनी पत्नी को साथ ले कर क्यों नहीं आये? क्या तुम्हारे पास उसको ढकने के लिये कोई फटा कपड़ा भी नहीं था? तुम्हें ऐसी सुन्दरता मिल भी कहाँ सकती थी ? हम इस बात की शर्त लगाते हैं कि उसके पिता के पूरे दलदल के राज्य में ऐसी सुन्दरता कोई दूसरी नहीं होगी।”

और फिर वे हँसते रहे हँसते रहे। और फिर एक बहुत ज़ोर का शोर सुनायी दिया। सारा महल काँप गया वहाँ बैठे सारे मेहमान डर गये। अकेला ज़ारेविच शान्त खड़ा रहा फिर बोला — “डरने की कोई बात नहीं है। मेरी मेंढकी अपने बक्से में आ रही है।”

सबने देखा कि लाल पोर्च में छह सफेद घोड़ों से जुती हुई एक उड़ने वाली सुनहरी गाड़ी रुकी और उसमें से सुन्दर वासिलीसा ने अपना हाथ अपने पति की तरफ बढ़ाया।

इवान उसका हाथ पकड़ कर उसको ओक की लकड़ी की बनी हुई भारी भारी मेजों की तरफ ले गया जिन पर बरफ की तरह से सफेद मेजपोश बिछे हुए थे और जिन पर बहुत सारे स्वादिष्ट खाने लगे हुए थे जो केवल परियों के देश में ही मिलते थे और वहीं खाये जाते थे। मेहमान लोग भी वहाँ खुशी से खाना खा रहे थे और बात कर रहे थे।

वासिलीसा ने गिलास में से थोड़ी सी शराब पी और जो बाकी बची वह उसने अपनी बाँयी आस्तीन में डाल ली। फिर उसने तले हुए हंस के कुछ टुकड़े खाये और उनकी हड्डियाँ अपनी दाँयी आस्तीन में डाल लीं। दोनों बड़े भाइयों की पत्नी ने यह देख लिया तो उन्होंने भी उसकी नकल करते हुए वैसा ही किया। जब खाना खत्म हो गया तो सब लोग नाचने के लिये उठे।

सुन्दर वासिलीसा जो वहाँ एक चमकता तारा लग रही थी सबसे पहले आगे आयी। पहले वह अपने राजा ज़ार के सामने झुकी फिर उसने मेहमानों के सामने सिर झुकाया उसके बाद अपने खुश पति ज़ारेविच इवान के साथ नाचने लगी।

नाचते समय वासिलीसा ने अपनी बाँयी आस्तीन हिलायी तो उसमें से कमरे के बीच में एक झील प्रगट हो गयी जिससे वहाँ की हवा ठंडी हो गयी। फिर उसने अपनी दाँयी आस्तीन हिलायी तो उसमें से सफेद हंस निकल कर झील के पानी में तैरने लगे। ज़ार, वहाँ बैठे मेहमान, नौकर, यहाँ तक कि भूरी बिल्ली भी जो वहाँ एक कोने में बैठी थी वह भी सुन्दर वासिलीसा की सुन्दरता को देख कर हैरान रह गये।

इवान के दोनों बड़े भाइयों की पत्नियाँ तो उसको देख कर बहुत ही जल रही थीं। जब उनके नाचने की बारी आयी तो उन्होंने भी अपनी बाँयी आस्तीन हिलायी जैसे वासिलीसा ने हिलायी थी तो उन्होंने तो सारी तरफ शराब फैला दी। उसके बाद उन्होंने अपनी दाँयी आस्तीन हिलायी तो उसमें से बजाय हंसों के उनकी हड्डियाँ निकल कर पिता ज़ार के चेहरे पर जा पड़ीं। इससे पिता ज़ार बहुत गुस्सा हो गया और उसने उनको महल के बाहर निकाल दिया।

इस बीच इवान ज़ारेविच एक पल तो देखता रहा फिर वह वहाँ से किसी तरह बिना किसी के देखे निकल गया। वह तुरन्त अपने घर गया, अपनी पत्नी की मेंढकी की खाल ढूँढी और उसको आग में डाल कर जला दिया।

जब वासिलीसा घर वापस आयी तो अपनी खाल ढूँढने लगी पर वह उसको मिली नहीं तो वह बहुत दुखी हो गयी और उसकी आँखों में आँसू आ गये।

उसने अपने पति ज़ारेविच इवान से कहा — “ओ प्रिय ज़ारेविच, यह तुमने क्या किया। अब तो मेरे लिये इस मेंढक की बदसूरत खाल पहनने का बहुत थोड़ा सा ही समय बाकी रह गया था। वह समय पास ही था जब हम हमेशा के लिये एक साथ खुशी खुशी रहते। पर अब तुम्हें मुझे एक दूर देश में ढूँढना पड़ेगा जिसका रास्ता कोई नहीं जानता – अमर कोशची के महल का रास्ता।” इतना कह कर वह एक सफेद हंस में बदल गयी और खिड़की के रास्ते उड़ गयी। ज़ारेविच इवान तो यह देख सुन कर बहुत ज़ोर से रो पड़ा। फिर उसने भगवान से प्रार्थना की उत्तर दक्षिण पूर्व-पश्चिम की तरफ क्रास बनाया और किसी अनजाने सफर पर निकल पड़ा।

कोई नहीं जानता कि यह सफर कितना लम्बा था पर चलते चलते एक दिन वह एक बूढ़े से मिला। उसने बूढ़े को सिर झुकाया तो बूढ़ा बोला — “गुड डे ओ बहादुर नौजवान। तू क्या ढूँढ रहा है और किधर जा रहा है?”

ज़ारेविच इवान ने उसको बिना कुछ छिपाये हुए अपनी बदकिस्मती के बारे में सब सच सच बता दिया।

तो बूढ़े ने पूछा — “तो तूने उसकी वह मेंढकी वाली खाल जलायी ही क्यों? यह तूने कितना गलत काम किया। अब तू मेरी बात सुन। वासिलीसा अपने पिता से भी ज़्यादा अक्लमन्द पैदा हुई थी। वह अपनी बेटी की अक्लमन्दी से बहुत जलता था इसलिये उसने अपनी बेटी को तीन साल तक मेंढकी बने रहने का शाप दे दिया। पर मुझे तुझ पर दया आती है और मैं तेरी सहायता करना चाहता हूँ। ले यह एक जादू की गेंद ले। इस गेंद को अपने सामने फेंक देना और जिस तरफ यह जाये तू भी इसके पीछे पीछे चले जाना।”

ज़ारेविच इवान ने बूढ़े को धन्यवाद दिया और उसकी दी हुई गेंद अपने सामने फेंक दी। अब जिधर को भी वह गेंद चली वह उसके पीछे पीछे चल दिया।

वह चलता गया चलता गया। चलते चलते वह एक फूलों वाले मैदान में निकल आया। वहाँ उसको एक भालू मिला, एक रूसी भालू।

इवान ज़ारेविच ने अपन तीर कमान लिया और उसको मारने ही वाला था कि भालू बोला — “ओ दयालु ज़ारेविच मुझे मत मारो। कौन जानता है कि किसी दिन मैं तुम्हारे काम आ जाऊँ।” इवान ने उस भालू को छोड़ दिया।

वहाँ पर धूप में एक बतख उड़ी जा रही थी, एक सफेद प्यारी सी बतख। ज़ारेविच इवान ने उसको मारने के लिये एक बार फिर अपना तीर कमान उठाया कि वह बतख भी बोल पड़ी — “ओ भले ज़ारेविच मुझे मत मारो। मैं किसी दिन तुम्हारे काम जरूर आऊँगी।”

सो इवान ने उसको भी छोड़ दिया और आगे चल दिया। आगे चल कर उसको एक बड़ा खरगोश51 मिला तो ज़ारेविच इवान ने उसको मारने के लिये फिर से अपना तीर कमान निकाला कि तभी उसने कहा — “मुझे मत मारो ओ बहादुर ज़ारेविच मैं बहुत जल्दी ही तुम्हारी सहायता करूँगा।” सो इवान ज़ारेविच ने उस बड़े खरगोश को भी छोड़ दिया।

अब वह फिर आगे चला तो वह एक समुद्र के किनारे आ गया। उस समुद्र के किनारे पर रेत में एक मछली पड़ी थी। मुझे उस मछली का नाम तो नहीं मालूम पर वह एक बहुत बड़ी मछली थी और उस रेत पर पड़ी पड़ी मरने वाली हो रही थी।

मछली इवान से बोली — “ओ ज़ारेविच इवान मेरे ऊपर दया करो मुझे इस समुद्र के ठंडे पानी में फेंक दो।” ज़ारेविच इवान ने ऐसा ही किया और समुद्र के किनारे किनारे आगे चल दिया।

इवान के आगे चलती चलती गेंद इवान को एक झोंपड़ी के पास ले आयी। यह एक अजीब सी छोटी सी झोंपड़ी थी जो एक छोटी सी मुर्गी की टाँगों पर खड़ी हुई थी, इवान उसको देख कर बोला — “इज़बूष्का इज़बूष्का।” रूसी भाषा में इसका मतलब होता है छोटी झोंपड़ी। “इज़बूष्का मैं चाहता हूँ कि तू अपना सामने का हिस्सा मेरी तरफ कर ले।”

और लो उस झोंपड़ी ने तो अपना सामने का हिस्सा इवान के सामने कर लिया। इवान उसके अन्दर घुसा तो उसने देखा कि उसमें तो एक जादूगरनी बैठी हुई है। वह जादूगरनी तो इतनी बदसूरत थी कि उसने इससे पहले कभी इतना बदसूरत कोई देखा नहीं था। उस जादूगरनी ने उसको देखते ही पूछा — “ओ इवान ज़ारेविच तुम यहाँ क्यों आये हो?”

इवान गुस्से से चिल्ला कर बोला — “ओ बूढ़ी बुरा करने वाली, क्या रूस ने तुझे एक थके हुए मेहमान से इसी तरीके से सवाल करना सिखाया है? बजाय इसके कि तू उसको कुछ खाने को दे, कुछ पीने को दे, हाथ मुँह धोने के लिये थोड़ा सा गरम पानी दे। तू उससे ऐसा सवाल कर रही है?”

वह जादूगरनी बाबा यागा थी। तब बाबा यागा ने ज़ारेविच को बहुत सारा खाना दिया बहुत सारा पीने को दिया और मुँह हाथ धोने के लिये गरम पानी दिया। ज़ारेविच इवान यह सब करके ताजा हुआ।

जल्दी ही वह बात करने के लायक हो गया तो उसने उसको अपनी शादी की अजीब कहानी सुनायी। उसने उसे बताया कि कैसे उसकी पत्नी उससे खो गयी थी और अब उसकी बस एक ही इच्छा थी और वह थी उसको पाना।

जादूगरनी बोली — “मुझे सब मालूम है। आजकल वह अमर कोशची के महल में है। और तुम्हें यह पता होना चाहिये कि वह एक बहुत ही भयानक आदमी है।

वह उसकी दिन रात रखवाली करता है और कोई भी उसे कभी भी नहीं जीत सकता। उसकी मौत एक जादू की सुई में है। वह सुई एक बड़े खरगोश के अन्दर है वह खरगोश एक बड़े बक्से के अन्दर है। वह बक्सा ओक के पेड़ की डालियों के बीच छिपा हुआ है। और वासिलीसा की तरह कोशची इस ओक के पेड़ की भी दिन रात रखवाली करता है। इसका मतलब है कि किसी भी खजाने से ज़्यादा।”

तब जादूगरनी ने इवान ज़ारेविच को बताया कि वह ओक का पेड़ उसे कहाँ मिलेगा। सुनते ही इवान उधर की तरफ चल दिया। पर जब उसने ओक का पेड़ देखा तो वह बड़ा नाउम्मीद हुआ। उसे समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे और अपना काम कहाँ से शुरू करे।

लो तभी उसका जानने वाला रूसी भालू वहाँ आ गया। वह पेड़ के पास पहुँचा और उसको जड़ से उखाड़ दिया। जड़ से उखड़ते ही वह पेड़ नीचे गिर पड़ा और उस पर रखा बक्सा भी नीचे गिर गया। नीचे गिरते ही वह बक्सा टूट गया। बक्से के टूटते ही उसमें एक बड़ा खरगोश निकल कर भाग गया। तभी इवान ने देखा कि उसका दोस्त बड़ा खरगोश कहीं से आया और उसके पीछे पीछे भागा। इवान वाले बड़े खरगोश ने कोश्ची वाले बड़े खरगोश को तुरन्त ही पकड़ लिया और उसे फाड़ दिया।

खरगोश के फटते ही उसमें से एक भूरी बतख निकल कर भागी और आसमान में बहुत ऊँची उड़ गयी और गायब हो गयी। पर इवान की सुन्दर सफेद बतख ने उसका पीछा किया और उसको मार दिया।

उसके मरते ही उसमें से एक अंडा निकल पड़ा और वह अंडा समुद्र के नीले पानी में गिर पड़ा। यह देख कर तो ज़ारेविच की जान ही निकल गयी। अब वह उसमें से सुई कैसे निकालेगा कैसे वह कोशची को मारेगा और फिर कैसे अपनी सुन्दर बासिलीसा को हासिल करेगा। कि तभी उसने देखा कि वह बड़ी वाली मछली जिसको उसने समुद्र में फेंका था समुद्र में से बतख का अंडा लिये चली आ रही है। उसने अंडा ला कर समुद्र के किनारे की रेत पर फेंक दिया। इवान ज़ारेविच ने तुरन्त वह अंडा उठाया और उसे तोड़ कर उसमें से सुई निकाल ली जिस पर कोशची की ज़िन्दगी निर्भर थी। उसी समय कोशची की सारी ताकत हमेशा के लिये जाती रही। इवान ज़ारेविच उस सुई को ले कर उसके राज्य में घुस गया और उसको उस जादुई सुई से मार दिया। उसके एक महल में उसको सुन्दर वासिलीसा भी मिल गयी।

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