उड़ने वाला बक्सा कहानी- Udne Wala Baksa
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एक बहुत रईस व्यापारी था। अगर वह चाहता तो आसानी से एक पूरी सड़क और एक छोटी गली चाँदी के सिक्कों से मढ़वा सकता था, पर वह ऐसा बेवकूफ नहीं था। वह अपने पैसे का अच्छा इस्तेमाल करता था। वह एक ताँबे का सिक्का भी तब तक नहीं देता था जब तक कि बदले में चाँदी का सिक्का न मिल जाए। वह एक होशियार व्यापारी था, पर वह भी हमेशा जिंदा नहीं रह सकता था।
उसके मरने के बाद उसके बेटे को उसका सारा पैसा मिला। वह जमा करने से ज्यादा खर्च करने में होशियार था। वह हर रात को पार्टियों में जाता था, रुपयों से पतंगें बनाता था, यही नहीं जब समुद्र के किनारे जाता था तो पत्थर तैराने की जगह सोने के सिक्के तैराता था। जल्दी ही उसके सब रुपए खत्म हो गए। अब उसके पास सिर्फ चार आने, एक जोड़ी घिसा हुआ जूता और एक पुराना कोट बचा। उसके सब दोस्त उसे छोड़ गए। वे ऐसी अजीब पोशाक वाले आदमी के साथ दिखना भी पसंद नहीं करते थे। उसका एक दोस्त इतना दयालु था कि उसने उसे एक पुराना बक्सा दिया और कहा कि ‘इसमें अपना सामान डाल कर निकल जाओ।’ उसके पास बक्से में डालने के लिए कुछ नहीं बचा था, इसलिए वह खुद ही उसमें बैठ गया।
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यह एक अजीब बक्सा था। उसका ताला दबाने पर वह उड़ सकता था। व्यापारी के बेटे ने वही किया, और बक्सा उसे लेकर उड़ने लगा। वह चिमनी में से निकलकर ऊपर बादलों में दूर, बहुत दूर, उड़ता गया। बक्सा चरमरा रहा था। उसमें बैठा लड़का डर रहा था कि कहीं उसका तला ही न निकल जाए, क्योंकि तब वह बहुत ऊँचाई से गिर जाता। पर ऐसा नहीं हुआ। बक्सा उड़ता हुआ सीधा तुर्कों की जमीन पर जाकर उतरा।
व्यापारी के बेटे ने बक्सा जंगल में पत्तों के नीचे छिपा दिया और पैदल शहर की तरफ चल दिया। किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया क्योंकि टर्की में सभी कोट और स्लीपर पहने घूमते हैं।
रास्ते में उसे बच्चे को उठाए हुए एक आया मिली। वह बोला, ‘ओ तुर्की आया, शहर के बाहर दाहिनी तरफ यह कैसा किला है जिसकी खिड़कियाँ इतनी ऊँची हैं कि राक्षस के अलावा वहाँ कोई झाँक नहीं सकता ?’
उसने जवाब दिया, ‘वहाँ राजकुमारी रहती है। इस भविष्यवाणी के बाद कि एक प्रेमी उसे बहुत दुःख पहुँचाएगा, उसे वहाँ रखा गया है, जिससे कि राजा-रानी के महल में न होने पर कोई उससे न मिल सके।’
व्यापारी के बेटे ने उसे ‘धन्यवाद’ कहा, और वापस जंगल की तरफ भागा जहाँ उसने अपना बक्सा छिपाया था। वह उसमें चढ़ा और उसे महल की छत तक ले गया, फिर एक खिड़की से राजकुमारी के पास पहुँचा।
वह एक सोफे पर सो रही थी। वह इतनी सुंदर थी कि व्यापारी का बेटा उसे चूमे बिना नहीं रह सका। वह जाग गई और एक अजनबी को देखकर डर गई। पर लड़के ने उसे बताया कि वह तु्र्कों का भगवान है और हवा में उड़कर उससे मिलने आया है। राजकुमारी यह सुनकर खुश हो गई।
दोनों सोफे पर पास-पास बैठे रहे। लड़का उसे कहानियाँ सुनाता रहा। उसने एक कहानी उसकी आँखों पर बनायी और कहा कि उसकी आँखें जंगल के बेहद सुंदर तालाब जैसी थीं जिनमें विचार जलपरियों की तरह तैरते रहते थे। उसने कहा कि राजकुमारी का माथा बर्फ के पहाड़ों जैसा था, जिसमें बड़े-बड़े सुंदर कमरे थे जिनकी दीवारें सुंदर तसवीरों से सजी थीं। उसने उन सारसों की कहानी सुनाई जो छोटे-छोटे, भोले-भाले, प्यारे बच्चे लेकर आते थे। उसकी कहानियाँ बड़ी अच्छी थीं। कहानियाँ सुनाने के बाद उसने राजकुमारी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा और उसने हामी भर दी।
वह बोली, ‘तुम शनिवार को फिर आना। उस दिन राजा-रानी शाम की चाय के लिए आते हैं । उन्हें बड़ा गर्व होगा कि मैं तु्र्कों के भगवान से शादी कर रही हूँ। पर ध्यान रखना कि उन्हें अच्छी-सी परियों की कहानी सुनानी होंगी। मेरी माँ को अच्छी नीतिपरक कहानियाँ पसंद हैं और पिताजी को मज़ेदार हँसाने वाली कहानियाँ।’
व्यापारी के लड़के ने खूब मुस्कुराकर कहा, ‘मैं शादी के तोहफे के तौर पर कहानियाँ ही लाऊँगा।’ अलग होने से पहले राजकुमारी ने उसे एक तलवार दी जिसकी मूठ पर बहुत-से सोने के सिक्के लगे थे; उसे उन्हीं की ज़रूरत थी।
व्यापारी का बेटा उड़कर वापस चला गया। उसने अपने लिए एक नया कोट खरीदा। फिर जंगल में लौटा और शनिवार को सुनाने के लिए परियों की कहानियाँ बनाने लगा। यह काम आसान नहीं था, पर उसने कहानियाँ बना ही लीं। तब तक शनिवार आ गया।
राजा-रानी अपनी पूरी सभा के साथ राजकुमारी के पास बैठे चाय पी रहे थे। उन्होंने बड़ी अच्छी तरह उसका स्वागत किया।
फिर रानी बोली, ‘अब तुम हमें एक परियों की कहानी सुनाओ जिसमें गहराई और कुछ सीख हो।’
राजा ने जोड़ा, ‘पर साथ ही वह मज़ेदार भी हो।’
व्यापारी के बेटे ने कहा, ‘मैं कोशिश करूँगा।’
उसकी कहानी इस तरह थी; ध्यान से सुनने पर समझ में आ जाएगी।
‘एक वक्त की बात है, कुछ गंधक की माचिसें थीं। उन्हें अपने ऊँचे कुल का गर्व था। उनके परिवार का पेड़ जंगल का सबसे बड़ा चीड़ का पेड़ था और वे उसके छोटे टुकड़े भर थे। ये माचिसें ताक पर रखे एक पुराने लोहे के बरतन और एक चकमक डिबिया के बीच में रखी हुई थीं। उन्होंने अपने बचपन और जवानी की कहानी ऐसे सुनाई।
‘तब हम ऊँचाई पर रहते थे। हमें हर सुबह और शाम को हीरों की, चाय जिसे ओस कहते हैं, दी जाती थी। सूरज जब भी निकलता हमारे ऊपर ही चमकता था। सारी छोटी चिडियाँ हमें कहानी सुनाती थीं। हम रईस थे क्योंकि हम पूरा साल अपने हरे कपड़े पहन सकते थे जबकि बेचारे दूसरे पेड़ों को सर्दियों में नंगे खड़ा होना पड़ता था। वे ठंड से जम जाते थे। फिर एक दिन लकड़हारा आया और सब उलट- पलट हो गया! सारा परिवार बँट गया। हमारे परिवार के पेड़ के तने को एक बड़े जहाज के मस्तूल पर नौकरी मिली; अब वह सारी दुनिया की सैर कर सकता है। हमें ठीक से नहीं मालूम कि टहनियों का क्या हुआ, पर हमें मामूली लोगों के लिए आग जलाने का काम मिला। ऊँचे कुल के हम लोगों का अंत रसोई में हुआ।’
ताक पर रखे लोहे के बरतन ने कहा, ‘मेरा जीवन अलग रहा। जन्म से ही मुझे रगड़कर आग पर रखकर उबाला गया। कितनी बार ऐसा हुआ, इसकी मुझे गिनती भी याद नहीं है। मैं यहाँ बड़ा ज़रूरी और पक्का काम करता हूँ। इसलिए तुम सबमें मेरा नंबर अव्वल होना चाहिए। इसके अलावा मेरा एक ही शौक है। वह यह है कि मैं साफ-सुथरा, ताक पर बैठा, अपने दोस्त से अच्छी-अच्छी बात करूँ। हम सब यहाँ घर में रहने वाले हैं, सिवाय पानी की बाल्टी के जो बार-बार कुएँ तक जाती है या वह टोकरी जो बाज़ार जाने की वजह से शहर की खबरें लाती है। पर जहाँ तक मेरा सवाल है, मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता। वह टोकरी सिर्फ लोगों और सरकारों की बातें करती है। एक दिन बेचारा मिट्टी का घड़ा इतना डर गया कि गिरकर टुकड़े- टुकड़े हो गया। बाजार की टोकरी ज़रा आज़ाद किस्म की है।’
चकमक डिबिया बड़बड़ाई, ‘तुम ज्यादा ही बोलते हो। हमें एक अच्छी शाम बितानी चाहिए।’ स्टील चकमक पर बजा और चिंगारी निकलने लगी।
माचिस बोली, ‘हाँ, हम यह बात करते हैं कि कौन सबसे बड़ा है?’
मिट्टी का घड़ा बोला, ‘मुझे अपने बारे में बात करना अच्छा नहीं लगता। इससे अच्छा कहानियाँ कहते हैं। मैं एक कहानी कहता हूँ जो हममें से किसी के साथ भी हो सकती है। ऐसी कहानी मेरे ख्याल से सबको अच्छी लगेगी। बाल्टिक समुद्र के पास जहाँ डेनिश बीच के पेड़-‘
प्लेटें बोलीं, ‘शुरुआत सुंदर है। मुझे विश्वास है कि कहानी हमें अच्छी लगेगी।’
मिट्टी का घड़ा बोलता गया, ‘एक शांत घर में मेरी जवानी बीती। हर हफ्ते मेज़- कुर्सियों पर पॉलिश की जाती थी। हर दूसरे दिन फर्श धोए जाते थे और हर पंद्रह दिन बाद पर्दे धोकर, प्रेस किए जाते थे।’
पंखों वाले झाड़न ने कहा, ‘तुम बड़े रोचक ढंग से कहानी सुनाते हो। तुम्हारी बातचीत में ऐसी सफाई है जैसे कोई औरत कहानी कह रही हो।’
पानी की बाल्टी खुशी के साथ हवा में उछलती हुई बोली, ‘सच, बिल्कुल सच !’
मिट्टी के घड़े ने अपनी कहानी सुनाई; शुरू की तरह बीच और आखिर भी मनोरंजक था।
सारी प्लेटों ने एक साथ ऐसी आवाज़ की जैसे तारीफ कर रही हों, पंखों वाले झाड़न ने अजवायन के पौधे की माला सी बनाकर घड़े को पहनाने की तैयारी की। उसे पता था कि बाकी सब चिढ़ जाएँगे, पर उसे लगा कि ‘आज किसी की इज़्ज़त करो तो कल वह तुम्हारी इज्जत करेगा।’
बड़ा चिमटा बोला, ‘चलो नाचते हैं’ और वे सब नाचने लगे। हे भगवान, वे कैसे टाँगें फैला सकते थे। कोने में रखी कुर्सी का कवर उन्हें देखने की कोशिश में बीच में से दो टुकड़ों में फट गया। नाचना खत्म होने पर चिमटा बोला, ‘ हमारे लिए पत्तों की माला कहाँ है ?’ तब उन्हें भी माला पहनाई गई।
माचिसों ने कहा कुछ नहीं, पर मन में सोचा, ‘ओछे छोटे लोगों की भीड़ ।’
समोवर भी गाने वाली थी। फिर बोली कि उसे ठंड लग गई है। पर यह सच नहीं था। वह घमंडी है; सिर्फ खाने वाले कमरे में मालिक-मालकिन के सामने गाती है।
खिड़की की चौखट पर एक पुराना कलम रखा था जिससे नौकरानी लिखा करती थी। उसमें कोई खास बात नहीं थी सिवाय इसके कि उसे दवात में ज़रा ज्यादा डुबो दिया गया था। कलम इसे अपनी ख़ासियत समझकर इस पर गर्व करता था। वह बोला, ‘अगर समोवर नहीं गाती तो हमें उसकी खुशामद नहीं करनी चाहिए। खिड़की के बाहर के पिंजरे में कोयल है, क्यों न उससे गाने को कहें। सच है कि उसने न गाना सीखा है, न पढ़ी- लिखी है, पर फिर भी उसके गाने में जो सादगी है वह शांति देने वाली है।’
चाय की केतली ने शिकायती आवाज़ में कहा, ‘मैं नहीं सोचती कि यह ठीक है।’ वह समोवर की सौतेली बहन थी।’ हम किसी बाहर की चिड़िया का गाना क्यों सुनें ? क्या यह देशभक्ति है ? बाज़ार की टोकरी इसका फैसला करे ।’
टोकरी बोली, ‘मुझे बहुत गुस्सा और खीझ आ रही है। यह कोई तरीका है शाम बिताने का? सब चीज़ों को उनकी जगह वापस रखो फिर मैं फैसला दूँगी।’
सब चिल्लाने लगे, ‘हल्ला करो, हल्ला करो।’
उसी वक्त दरवाज़ा खुला, नौकरानी अंदर आई। सब फौरन अलग होकर चुपचाप खड़े हो गए। सबसे छोटा होते हुए भी मिट्टी का घड़ा यही सोच रहा था कि मैं रसोई में सबसे ज़रूरी हूँ। मैं चाहता तो शाम मज़ेदार बन सकती थी।
नौकरानी ने एक माचिस उठाकर आग जला दी। तीली सोचने लगी, ‘अब सब देख सकते हैं कि हम ही यहाँ बड़े हैं। क्या आग जलाते हैं! क्या रोशनी है|’ तभी तीली का अंत हो गया, वह जल गई।
कहानी खत्म होते ही रानी बोली, ‘यह बहुत सुंदर कहानी थी। मुझे लगा जैसे मैं रसोई में माचिस के साथ थी। हम तुम्हें अपनी बेटी देंगे।’
राजा ने कहा, ‘बिल्कुल, हम सोमवार को शादी करेंगे।’ और उसने व्यापारी के बेटे की पीठ थपथपाई क्योंकि अब वह उन्हीं के परिवार का हो गया था।
इतवार की शाम को आने वाली शादी की खुशी में पूरा शहर रोशनी से सजाया गया। सब लोगों में ‘बन’ और बिस्कुट बाँटे गए। गली के आवारा लोग उँगलियों के बीच से सीटी बजा रहे थे। बड़ा अच्छा दृश्य था।
व्यापारी के बेटे को लगा, “मैं भी इस मौके पर कुछ करूँ” वह गया और ढेर सारी आतिशबाज़ी खरीद लाया, उसे लेकर बक्से में बैठा और हवा में उड़ गया।
वह खूब ऊँचा उड़ा वहाँ से आतिशबाज़ी चलाई, खूब धमाके हुए। चमक फैल गई। किसी ने पहले ऐसा दृश्य नहीं देखा था। सारे तुर्क ज़मीन से ऊपर उछल पड़े। उनके स्लीपर खो गए। अब उन्हें विश्वास हो गया कि वाकई तुर्कों का भगवान उनकी राजकुमारी से शादी कर रहा था।
जब व्यापारी का बेटा अपने ट्रंक में बैठकर जंगल में लौटा तो उसने सोचा कि शहर में जाकर लोगों की बातें सुने। पता तो चले कि सब उसके कारनामों के बारे में क्या सोच रहे हैं।
लोग जो-जो बातें कर रहे थे! सब अलग-अलग बातें थीं, पर सबका मानना था कि पूरा दृश्य बहुत बढ़िया था।
एक बोला, ‘मैंने स्वयं भगवान को देखा। उसकी आँखें सितारों जैसी और दाढ़ी उफनते समुद्र जैसी थी।’
दूसरा बोला, ‘वह आग का चोगा पहने था, जिसकी तहों से सुंदर प्यारे देवदूत झाँक रहे थे।’
लड़के को सब सुनना बड़ा अच्छा लग रहा था; कल उसका शादी का दिन था!
वह जल्दी से जंगल में लौटा ताकि आराम से अपने बबसे में सो सके। पर बक्सा था कहाँ?
वह तो जलकर राख हो गया था। आतिशबाज़ी से निकली एक चिगारी ने उसे जला दिया था, और बक्से का अंत हो गया। उसके साथ ही व्यापारी के लड़के का भी अंत हो गया! अब वह उड़कर अपनी दुलहन तक नहीं पहुँच सकता था।
बेचारी राजकुमारी सारा दिन छत पर उसका इंतज़ार करती रही। वह आज भी इंतज़ार कर रही है; जबकि वह लड़का दुनिया-भर को काल्पनिक कहानियाँ सुनाता फिर रहा है। पर अब उसकी कहानियाँ गंधक की माचिस की कहानी की तरह हल्की-फुल्की नहीं होती हैं।