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उपदेशी को सबक गोनू झा की कहानी Updeshi Ko Sabak Gonu Jha Story in Hindi

उपदेशी को सबक गोनू झा की कहानी Updeshi Ko Sabak Gonu Jha Story in Hindi

गोनू झा एक दिन मिथिला बाजार में चहल-कदमी कर रहे थे। वहाँ एक सेठ एक भारी बक्सा लिए बैठा था और बार-बार मजदूरों को बुलाता और उनसे कुछ बातें करता और मजदूर गर्दन हिलाते हुए या हाथ को इनकार की मुद्रा में हिलाते हुए वहाँ से चले जाते ।

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काफी देर तक बाजार चौक पर यह नजारा देखने के बाद गोनू झा ने सोचा चलो, चल के देखें कि माजरा क्या है? वैसे वे इतना समझ चुके थे कि सेठ वह बक्सा उठवाकर कहीं ले जाना चाहता है मगर मजदूर कम मेहनताना के कारण इनकार करके वहाँ से चले जा रहे हैं।

गोनू झा सेठ के पास पहुँचे और सेठ से पूछा -” क्या बात है सेठ जी, आप बहुत देर से यहाँ परेशान हाल बैठे हैं ?”

सेठ ने कहा -” हाँ, भाई ! मुझे एक मजदूर चाहिए जो यह बक्सा उठा-कर यहाँ से तीन कोस की दूरी पर जो गाँव है, वहाँ पहुँचा दे।” ।

गोनू झा ने कहा-“मैं भी यहाँ काम की तलाश में आया हूँ- चलिए, मैं ही पहुँचा दूँ! बोलिए मजूरी क्या देंगे ?”

सेठ मुस्कुराया, बोला-“मेरे पास देने के लिए तीन अनमोल उपदेश हैं जो मैं हर एक कोस पर तुम्हें एक- एक कर दूंगा !”

गोनू झा ने कहा “यानी पैसा -रुपया कुछ नहीं ? खाना-खुराकी भी नहीं ? सिर्फ उपदेश?”

सेठ ने कहा-“तीन अनमोल उपदेश, जिससे तुम्हारा जीवन बदल जाएगा।”

गोनू झा ने मजदूर की तरह ही हाव- भाव बनाते हुए कहा-“सो तो ठीक है, मगर उपदेश हर आधा कोस पर दीजिए!”

सेठ ने कहा -” ठीक है मगर तीसरा और अन्तिम उपदेश सुनने के बाद तुम्हें तीन कोस चलकर मुझे उस गाँव तक पहुँचाने का वादा करना होगा !”

गोनू झा ने वादा कर लिया । गोनू झा मन ही मन सोच रहे थे कि उपदेश लेना बुरा नहीं है । हो सकता है कि कोई काम की बात सुनने को मिल जाए और यदि सेठ ने ठगने की कोशिश की तो उसे सबक सिखाकर ही लौटूंगा …।

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जब गोनू झा बक्सा उठाने के लिए झुके तो सेठ ने कहा-“अहा ! जरा सावधानी से ! इसमें बेहद नाजुक चीजें हैं !”

गोनू झा ने सावधानीपूर्वक सिर पर बक्सा उठा लिया । आधा कोस चले तो सेठ से कहा-“सेठ जी, पहला उपदेश दे दीजिए।”

“ऐसे आदमी पर भरोसा न करना जो कहे कि केवल अपना पेट भरने से अच्छा है भूखा रह जाना ।” सेठ ने उपदेश दिया ।

गोनू झा को सेठ की बात पसन्द आई ।

जब गोनू झा दूसरे आधे कोस में प्रवेश कर गए तब दूसरा उपदेश सुनने की बेचैनी होने लगी। उन्होंने सेठ से दूसरा उपदेश देने को कहा ।

सेठ ने दूसरा उपदेश सुनाया-“ऐसा आदमी विश्वसनीय नहीं जो कहे, घोड़े पर सवार होने से अच्छा है पैदल चलना!”

गोनू झा यह सुनकर शान्त रह गए। बात ठीक भी थी कि जब घोड़ा हो तो कोई पैदल क्यों चले ?

तीसरे अधकोसी में प्रवेश के बाद गोनू झा ने सेठ से कई बार कहा कि उपदेश सुनाए मगर सेठ टालता गया । जब गन्तव्य की दूरी महज दो फर्लांग बची तो गोनू झा रुक गए और बोले-“अब तीसरा और अन्तिम उपदेश दे दीजिए सेठ जी वरना अब एक कदम आगे नहीं बढ़ाऊँगा! यदि आप यह सोच रहे हैं कि उपेदश सुनने के बाद मैं यह बक्सा आपके स्थान तक नहीं पहुचाऊँगा तो यह बात मन से निकाल दीजिए। मैं ब्राह्मण हूँ और झूठा वादा नहीं करता हूँ।”

विवश होकर सेठ ने तीसरा उपदेश सुनाया “उस आदमी पर भरोसा न करना जो कहे कि संसार में तुमसे भी बड़ा कोई मूर्ख होगा !”

गोनू झा को बात समझ में आ गई कि सेठ उससे मुफ्त में बक्सा ढुलवा कर उन्हें संसार का सबसे बड़ा मूर्ख भी बता रहा है। मगर वे चुपचाप चलते रहे ।

जब सेठ का घर आ गया तब उसने गोनू झा से कहा-“बक्सा यहाँ रख दो !”

सेठ की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि गोनू झा ने बक्सा सिर से ही धरती पर पटक दिया धड़ाम-चनन्-चनाक-छन ! की आवाज बक्सा गिरते ही पैदा हुई ।

सेठ चीखा “अरे मैंने तुम्हें सावधानी बरतने को कहा था !”

गोनू झा ने कहा-“सेठ जी ! भूलिए मत ! आपने मुझे सावधानी से बक्सा उठाने के लिए कहा था-रखने के लिए नहीं।”

सेठ वहीं सिर पकड़कर बैठ गया क्योंकि बक्से में काँच से बनी चीजें रखी थीं और गोनू झा अपने होंठों पर विजयी मुस्कान लिए वहाँ से लौट आए।

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