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हेनरी फोर्ड : एक ऐसा अमेरिकी जिसे हिटलर अपना प्रेरणा स्रोत मानता था

प्रथम विश्वयुद्ध खत्म करवाने के लिए फोर्ड ने एक शांति दल के साथ यूरोप का दौरा किया था, लेकिन यह वो वजह नहीं थी जिसने हिटलर को उनका मुरीद बनाया

साल 1923. अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव होने वाला था. जाहिर है कि हर बार की तरह इस बार भी प्रत्याशियों की स्थिति जानने के लिए चुनावी सर्वे करवाए गए. लेकिन इस साल हुए सर्वे के नतीजे आने पर सभी की सांसें मानो रुक सी गई थीं. वजह थी, पहले विश्वयुद्ध के बाद देश के बदलते हालात के बीच एक उद्योगपति दावेदार की अप्रत्याशित ढंग से बढ़ी लोकप्रियता. संभावनाएं जताई गईं कि अगर यह व्यवसायी चुनाव जीत गया तो अमेरिका का वर्तमान और भविष्य दोनों बदलकर रख देगा.

बीते साल उद्योगपति डोनाल्ड ट्रंप जब राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हुए थे, तब भी अमेरिकी मीडिया अतीत की उस घटना का जिक्र करते हुए कह रहा था कि इतिहास एक बार फिर अपने को दोहराने जा रहा है. जिस उद्योगपति की वजह से 1923 में अमेरिका की मीडिया और राजनीति में हलचल मची हुई थी, और जिससे डोनाल्ड ट्रंप की तुलना की गई, वे थे आधुनिक कारों के जनक कहे जाने वाले हेनरी फोर्ड.

अपने नाखूनों की मदद से दोस्तों की घड़ियां रिपेयर करते-करते दुनिया के सबसे बड़े उद्योगपतियों में शुमार होने वाले हेनरी फोर्ड को उनके पिता किसान बनाना चाहते थे. लेकिन हेनरी की चाहत जमीन नहीं बल्कि आसमान नापने की थी इसलिए वे घर छोड़कर चले गए. 1891 में थॉमस एडिसन की कंपनी में बतौर इंजीनियर नौकरी की शुरुआत की और 1896 में वहीं काम करते हुए फोर्ड ने अपनी पहली चार पहियों की गाड़ी तैयार कर ली थी. इस उपलब्धि पर बल्ब के आविष्कारक और वैज्ञानिक-उद्योगपति एडिसन ने फोर्ड को जमकर सराहा था.

बाद में कुछ पैसा इकठ्ठा होने पर फोर्ड ने 16 जून 1903 को दुनिया के ऑटोमोबाइल क्षेत्र की तकदीर हमेशा के लिए बदल देने वाली फोर्ड मोटर कंपनी की स्थापना की. इसके बाद हेनरी फोर्ड ने कभी पलटकर नहीं देखा. कड़ी मेहनत और अपनी दूरगामी रणनीतियों के चलते फोर्ड अमेरिका समेत दुनियाभर के शीर्ष उद्यमियों में शुमार हो गए. लेकिन उनका कद चाहे जितना ऊंचा हो गया हो, उनके कदम हमेशा जमीन पर ही टिके रहे. वे मानते थे कि विकास के कामों में ग्रामीण क्षेत्रों को तवज्जो मिलनी चाहिए और किसानों को हमेशा सम्मान की नजर से देखा जाना चाहिए. वे किसानों के साथ-साथ मजदूरों के भी पक्के हिमायती थे और उनकी सहूलियतों का पूरा ख्याल भी रखते थे.

हेनरी फोर्ड का मानना था कि जब तक कामगार का दबाव कम नहीं किया जाता, तब तक उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों नहीं सुधर सकतीं. इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मूविंग असेंबली लाइन को विकसित किया. यह एक ऐसी तकनीक थी जिसके सहारे मजदूरों को काम तक नहीं, बल्कि मशीनों के जरिए काम उन तक आता था. इस तरह मजदूरों का आधे से ज्यादा समय और ऊर्जा, जो फैक्ट्री के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने में खर्च होती थी, वह बचने लगी. जाहिर था कि इससे उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में खासा सुधार आया.

फोर्ड को फैक्ट्री के बाहर भी अपने कर्मचारियों की निजी जिंदगी की खूब परवाह थी. उन्होंने अपने यहां एक समिति बना रखी थी. इसका काम सिर्फ यही था कि वह फोर्ड के लिए काम कर रहे लोगों के जीवन स्तर का अध्य्यन करे और उसे सुधारने के लिए सुझाव दे. यह समिति फोर्ड मोटर्स में काम करने वाले कामगारों के बच्चों के स्वास्थ्य और उनकी पारिवारिक जिम्मेदारियों तक पर अपनी नजर रखती थी. उस जमाने में जब मजदूरों का मेहनताना न के बराबर हुआ करता था, फोर्ड ने अपने यहां काम करने वालों की दिहाड़ी पांच डॉलर प्रतिदिन तय कर दी थी. फोर्ड का मानना था कि जो लोग कार बनाते हैं, वे भी कम से कम इस लायक होने चाहिए कि इसे खरीद भी सकें. उनके इस कदम से दूसरी छोटी-बड़ी सभी औद्योगिक इकाइयों में हड़कंप सा मच गया था.

हेनरी फोर्ड को जितना ख्याल इन पिछड़ों और मजदूरों का था, उतना ही वे विश्व में शांति के पक्षधर भी थे. पहले विश्वयुद्ध के समय (1915 में) उन्होंने यूरोप में अपने साथ एक प्रतिनिधिमंडल ले जाकर शांति स्थापित करने की कोशिश की थी. इस जहाज को उन्होंने ‘पीस शिप’ (शांति का जहाज) नाम दिया था. अमेरिकी अखबार शिकागो डेली ट्रिब्यून के मुताबिक फोर्ड इस जहाज में 63 शांति समर्थकों, 54 पत्रकार और चार बच्चों को अपने साथ लेकर गए थे. उनके इस कदम पर न्यूयॉर्क टाइम्स ने मुख्य पृष्ठ पर एक खबर प्रकाशित की थी. इसका शीर्षक था, ‘क्रिस्मस के दिन विश्वयुद्ध खत्म होगा, फोर्ड युद्ध रोकेंगे’. लेकिन इस प्रयास को लेकर यूरोपीय मीडिया ने उनका खूब मजाक उड़ाया. लंदन स्टैण्डर्ड ने इस जहाज को ‘प्रो जर्मन पीस क्रूज’ कहकर जर्मनी समर्थक बताया था और कई अखबारों ने इसे ‘शिप ऑफ फूल्स‘ (मूर्खों का जहाज) तक की संज्ञा तक दे दी थी. यूरोपीय बुद्धिजीवियों के इस रवैए से फोर्ड काफी आहत हुए और कुछ ही दिन बाद अमेरिका वापस चले आए.

हेनरी फोर्ड के 'पीस शिप' पर मीडिया में प्रकाशित हुआ कार्टून
हेनरी फोर्ड के ‘पीस शिप’ पर मीडिया में प्रकाशित हुआ कार्टून

काम करने के तरीकों और विचारों को देखा जाए तो हेनरी फोर्ड एक हद तक साम्यवाद से प्रभावित पूंजीवादी लगते हैं. हालांकि उनका राजनैतिक तौर पर किसी पार्टी से जुड़ाव नहीं था फिर भी लोगों में उनके लिए बेइंतिहा दीवानगी थी. आम लोग ही नहीं अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति वुडरो विल्सन तक उनके मुरीद थे. जब फोर्ड ने आम आदमी की कार ‘टी’ बनाई तभी से लोगों ने इस बात की उम्मीद लगा ली थी कि यही वह इंसान है जो अमेरिकियों के जीवन को बदल देगा.

यही कारण था कि जब राष्ट्रपति विल्सन के कहने पर उन्होंने 1918 में सीनेट का चुनाव लड़ा तब बिना किसी कैंपेनिंग के उन्हें जनता का भरपूर समर्थन मिला. हालांकि वे मामूली अंतर से चुनाव हार गए. इसके बावजूद उनके समर्थकों का हौसला कम नहीं हुआ. कहा जाता है कि इस चुनाव के बाद फोर्ड की लोकप्रियता में और इजाफा हो गया. ऐसा माना जाने लगा कि अमेरिका का आम आदमी फोर्ड को अपना अगला राष्ट्रपति बनते देखना चाहता था. और जब 1924 में राष्ट्रपति पद के लिए फोर्ड की दावेदारी की खबरें जैसे ही सामने आईं उनके समर्थकों ने देशभर में फोर्ड-फॉर-प्रेसिडेंट क्लबों की स्थापना कर दी. ये क्लब फोर्ड के लिए चुनावी जनसमर्थन जुटाने के लिए बनाए गए थे.

फोर्ड मीडिया में बयान देते समय भी खासा ध्यान रखते थे कि उनके शब्द आम आदमी तक पहुंच सकें. जहां तक अमेरिकी राजनीति की बात है तो उनका कहना था कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक, दोनों दलों के नेता सिर्फ अपने निजी हितों के गुलाम हैं. इन बयानों से आम लोगों को इस बात का पूरा यकीन हो गया था कि सिर्फ फोर्ड ही हैं जो उन्हें देश में फैले भ्रष्टाचार से मुक्त करवा पाएंगे. इस बात को लेकर अमेरिकी कांग्रेस के एक सदस्य ने शिकायत भी की थी कि गरीब किसान दिनभर इस बात की रट लगाए रहते हैं, ‘जब फोर्ड आएंगे….जब फोर्ड आएंगे. मानो पृथ्वी पर क्राइस्ट दुबारा आ रहे हैं.’

फोर्ड को मिल रहे जबरदस्त समर्थन को देखते हुए कोलियर्स नाम की मैग्जीन ने घर-घर अपने एजेंट भेजकर एक सर्वे करवाया. इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक फोर्ड को 34 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिल रहा था जो तब के हिसाब से स्पष्ट बहुमत था. वहीं तत्कालीन राष्ट्रपति वारेन हार्डिंग को सिर्फ 20 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल था. वहीं एक दूसरी रिपोर्ट बताती है कि फोर्ड के समर्थकों में सबसे ज्यादा मूल अमरिकी शामिल थे. इसके तहत दो हजार से ज्यादा ग्रामीण अखबारों के संगठन ने अपने पाठकों के बीच सर्वे करवाया था. इसमें फोर्ड को 41 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला था. इस पूरे मामले की सबसे दिलचस्प बात यह है कि तब तक यह साफ नहीं था कि हेनरी फोर्ड किस पार्टी से चुनाव लड़ेंगे, और लड़ेंगे भी कि नहीं.

हालांकि बाद में फोर्ड ने खुद चुनाव न लड़ते हुए कैल्विन कूलीज को अपना समर्थन दे दिया था. उनके इस फैसले की वजह कभी साफ नहीं हो पाई. कुछ लोग कहते हैं कि उन्हें हार का डर था. जबकि कुछ का मानना है कि फोर्ड किंग से ज्यादा किंगमेकर बनने में विश्वास रखते थे. कुछ राजनीतिकार यह भी कहते हैं कि फोर्ड का सपना था कि वे अल्बामा प्रांत के मसल शोल्स में एक ऐसा कस्बा विकसित करें जो प्रकृति की गोद में बसा हो. इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने राजनीति का दामन छोड़ा था. हालांकि उनके समर्थन के चलते कूलीज राष्ट्रपति बन गए थे और इस तरह फोर्ड उस समय के सबसे ताकतवर लोगों में शुमार हो गए.

हर कामयाब व्यक्ति के जीवन में निर्णायक उतार-चढ़ाव आते हैं और इससे हेनरी फोर्ड भी बचे हुए नहीं थे. कुछ सालों के बाद बाजार में फोर्ड कमजोर पड़ने लगे. उनकी प्रतिद्वंदी कंपनियां कारों को सुविधाजनक वाहन से ज्यादा शान की वस्तु बनाकर पेश करने लगीं. ऐसे में हेनरी फोर्ड पर अपनी कार मॉडल ‘टी’ को बदलने का दबाव दिन-ब-दिन बढ़ता गया. लेकिन फोर्ड के लिए यह कार सिर्फ कमाई और अमेरिका का सबसे अमीर इंसान बनने का जरियाभर नहीं थी. इसके साथ उनकी यह उम्मीद जुड़ी थी कि एक दिन हर अमेरिकी के पास अपनी कार होगी.

लेकिन अफसोस कि कारोबार में कोरी भावनाएं काम नहीं आतीं. 1927 आते-आते फोर्ड को मॉडल टी का उत्पादन बंद करना पड़ा. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. कारोबारी दुनिया में फोर्ड का कद कम हो चुका था. इस बात से परेशान फोर्ड को धीरे-धीरे तनाव घेरने लगा था. वक्त के साथ उनमें नकारात्मकता भी बढ़ने लगी. उन्होंने कहीं सुना था कि अमेरिका के महानतम राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की हत्या के पीछे यहूदियों का हाथ था. उम्र के इस दौर में यह बात उनके दिल-दिमाग में ऐसी बसी कि उन्होंने यह साबित करने में खुद को झोंक दिया. धीरे-धीरे यहूदियों के प्रति उनके मन में नफरत बढ़ती ही चली गयी. यही एक समानता थी जो उन्हें और हिटलर को एक जगह लाकर खड़ा करती है.

1919 से लेकर 1927 के दरम्यान अपने साप्ताहिक अखबार ‘द डीयरबोर्न इंडिपेंडेंट’ के जरिए हेनरी फोर्ड ने यहूदियों के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली. यहां उनके लेख चर्चा करते थे कि कैसे यहूदियों ने अमेरिकी संस्कृति और मान्यताओं को बर्बाद कर दिया था. साथ ही इन लेखों में पहले विश्वयुद्ध के लिए भी यहूदियों को ही जिम्मेदार ठहराया जाता था. बाद में इन सभी लेखों को संकलित कर एक किताब की शक्ल दे दी गई. इसका नाम था, ‘द इंटरनेशनल ज्यूज़ : द वर्ल्ड्स फॉरमोस्ट प्रॉब्लम’. यह किताब जल्द ही नाजी जर्मनी की सर्वाधिक बिक्री वाली किताबों में शुमार हो गयी.

शांतिवादी होने का दावा करने वाले फोर्ड का इस तरह किसी समुदाय विशेष के विरोध में लिखना और उसके खिलाफ हिंसा में बढ़ोतरी का कारण बनने से बुद्धिजीवी वर्ग ने उनकी कड़ी निंदा की थी. लेकिन यहूदी विरोधी होने के कारण फोर्ड एक मात्र ऐसी अमेरिकी शख्सियत थे जिन्हें हिटलर न सिर्फ पसंद करता था बल्कि उन्हें प्रेरणा स्त्रोत भी मानता था. हिटलर ने इस बात का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘मीन काम्फ’ में किया है. साथ ही 1937 में एक सार्वजनिक मंच पर भी उसने यह बात स्वीकार की थी. हिटलर से मेल खाती विचारधारा के चलते 1938 में दूसरे विश्वयुद्ध से ठीक पहले, अपने 75वें जन्मदिन पर फोर्ड को जर्मनी की तरफ से ‘जर्मन ईगल के ग्रांड क्रॉस’ से नवाजा गया था. यह उस जमाने में किसी गैरजर्मन को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान था.

अपने जीवन के तमाम सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों के बावजूद बावजूद फोर्ड को जिस बात के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है वह आखिरकार यही है कि उन्होंने आवागमन के एक नए युग की शुरुआत की थी. कहा जाता है कि हर सदी में एक ऐसा अाविष्कारक पैदा होता है जो लोगों के जीवन को नई तकनीक से जीना सिखाता है. और बाद में ये तकनीकें हमारे जीवन का एक ऐसा हिस्सा बन जाती हैं जिनके बिना जिंदगी दुश्वार लगने लगती है. रेल की पटरियों से लेकर आज के माइक्रोप्रोसेसर तक मानव जाति की उन्नति के ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण पड़ाव हैं. इनमें एक अहम पड़ाव हेनरी फोर्ड के नाम भी है. उनकी कार ‘टी’ ने मध्यम वर्ग के यात्रा करने के तरीकों को हमेशा के लिए बदल दिया था. इन उपलब्धियों को देखते हुए उस जमाने के मशहूर अभिनेता और लेखक विल रॉजर्स ने फोर्ड से कहा था, ‘इस बात को जानने में सदियां बीत जाएंगी कि तुमने हमारी मदद की है या हमें नुकसान पहुंचाया है. लेकिन यह बात तय है, तुम हमें वहां से बहुत दूर ले आए हो जहां हम तुम्हें मिले थे.’

इस बात का फोर्ड को भी बखूबी अहसास था कि उन्होंने लोगों को क्या दिया है. यह समझने के लिए यहां एक घटना का जिक्र किया जा सकता है. अपने जीवन के आखिरी दिनों में वे जॉन नाम के एक स्कूली बच्चे से बातचीत कर रहे थे. फोर्ड उस बच्चे को बताने लगे कि कैसे उनके जमाने में लोग एक कमरे के स्कूलों में पढ़ा करते थे. उस बच्चे ने फोर्ड की बात पर हैरानी जताते हुए कहा, ‘लेकिन श्रीमान, अब समय बदल चुका है, यह आधुनिक युग है. और…’ जॉन अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि हेनरी फोर्ड ने उसे बीच में ही रोक दिया. उऩ्होंने उसे जवाब दिया, ‘बच्चे, यह आधुनिक युग है और इसे मैंने ईजाद किया है.’

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